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सुभाषितानि (विविध)
शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणं तथा ।
ऊहापोहोऽर्थविज्ञानं तत्वज्ञानं च धीगुणा: ॥
(महाभारत, कुम्भकोणं सं., 3.2.19)धी अर्थात बुद्धि के गुण हैं :
(1) शुश्रूषा – जिज्ञासा कि शब्द एवं अर्थ के गुण क्या हैं ?
(2) श्रवण – शब्द एवं अर्थ के स्वरूप सुनना ।
(3) ग्रहण – शब्द एवं अर्थ के स्वरूप को ग्रहण कर जानना ।
(4) धारण – शब्द एवं अर्थ के बारे में जो जान लिया गया है, उसे आत्मसात करना ।
(5) ऊहापोह बहुत ही अर्थवान शब्द है जिसके दो भाग हैं – ऊहा तथा अपोह।
ऊहा अर्थात अनुमान, परीक्षण, निर्धारण, समझ, तर्क एवं युक्ति का आश्रय लेना। इस प्रक्रिया में यदि कोई न्यूनता पाई जाय तो उसकी पूर्ति करना एवं यदि कुछ आवश्यक से अतिरिक्त है तो चैतन्य हो उसे हटा भी देना।
अपोह अर्थात पूर्ण विश्लेषण तथा अनुकूल एवं प्रतिकूल, दोनों स्थितियों पर पूरा सोच विचार। ऊहापोह इन दोनों का समन्वय है।
(6) अर्थविज्ञान – अर्थ तत्त्व का वास्तविक ज्ञान विवेक के साथ प्राप्त करना।
(7) तत्वज्ञान – अंतिम तत्त्व, तत् अर्थात वह, त्वम् अर्थात वही है, ऐसी स्थिति जानना।यह श्लोक महाभारत के अन्य संस्करणों में नहीं मिलता है किन्तु इससे समानता रखने वाले श्लोक अन्य संस्करणों में भी हैं।
शुश्रूषुः श्रुतवाञ्श्रोता ऊहापोहविशारदः ।
मेधावी धारणायुक्तो यथान्यायोपपादकः ॥ (भ.सं., 12.180.17½-18½)
ज्ञानविज्ञानसंपन्नानूहापोहविशारदान् ।
प्रवक्तॄन्पृच्छते योऽन्यान्स वै ना पदमर्च्छति ॥ (भ.सं., 13.134.27)
इमे मनुष्या दृश्यन्ते ऊहापोहविशारदाः ।
ज्ञानविज्ञानसंपन्नाः प्रज्ञावन्तोऽर्थकोविदाः ॥ (भ.सं., 13.133.43)द्वयक्षरस्तु भवेन्मृत्युस्त्र्यक्षरं ब्रह्म शाश्वतम् ।
ममेति च भवेन्मृत्युर्न ममेति च शाश्वतम् ॥
ब्रह्ममृत्यू ततो राजान्नात्मन्येव समाश्रितौ ।
(महाभारत, गी.प्रे. सं, 12.13.4-5½)दो अक्षरों का ‘मम’ (यह मेरा है, ऐसा भाव) मृत्यु है और तीन अक्षरोंका ‘न मम’ (यह मेरा नहीं है, ऐसा भाव) अमृत, सनातन ब्रह्म है। राजन्, इससे सूचित होता है कि मृत्यु एवं अमृत ब्रह्म, दोनों अपने भीतर ही स्थित हैं ।
अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् ।
अधनस्य कुतो मित्रम् अमित्रस्य कुतो सुखम् ॥आलसी को विद्या कहाँ ! जिसके पास विद्या नहीं, उसके पास धन कहाँ ! निर्धन को मित्र कहाँ ! एवं मित्रविहीन को सुख कहाँ !
कार्यमण्वपि काले तु कृतमेत्युपकारताम् ।
महानत्युपकारोऽपि रिक्ततामेत्यकालत: ॥
(योगवासिष्ठ, वैराग्य प्रक., 7.26)ठीक समय पर किया हुआ थोड़ा-सा भी कार्य बहुत उपकारी होता है एवं समय बीतने पर किया हुआ महान् उपकार भी व्यर्थ हो जाता है ।”
न कश्चिदपि जानाति किं कस्य श्वो भविष्यति ।
अत: श्व: करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान ॥कल किसका क्या होगा, कोर्इ भी नहीं जानता, अत: बुद्धिमान लोग कल का काम आज ही करते हैं ।
क्वाई हिन्दू आश्रम
परिचय यात्रावृत्त : अभिषेक ओझा
प्रशांत महासागर के केंद्र में हवाई द्वीप समूह का छोटा सा वाटिका द्वीप (the garden isle) है – क्वाई। लाखों वर्ष पहले ज्वालामुखी से निर्मित इस छोटे से द्वीप में उष्णकटिबंध जलवायु के साथ साथ भारी वर्षा होने के कारण अद्भुत रूप से सुन्दर घाटियों, चट्टानों, वन, नदी, जल प्रपातों, मनोहारी समुद्र तट और हरीतिमा, सब कुछ एक साथ होने के कारण इसे संसार के सबसे सुन्दर स्थानों में गिना जाता है। यही कारण है कि मनभावन नापाली समुद्र तट हॉलीवुड का प्रिय क्षेत्र रहा है जहाँ जुरासिक पार्क जैसी फिल्में बनी हैं। (https://filmkauai।com/movies-television-shows-filmed-kauai/) वाईमिया कैनियन और वाइलुआ नदी इस द्वीप की सुन्दरता को चौगुनी कर देते हैं। वर्ष भर भारी वर्षा एवं नदियों के होने से ज्वालामुखी से निर्मित भूभाग पर लाखों वर्षों से हो रहे प्राकृतिक अपरदन ने नाटकीय रूप से सुन्दर भूभाग को जन्म दिया है।
इस अतिशय सुन्दरता के मानदण्ड पर भी खरा इस द्वीप का एक अत्यंत ही मनोरम स्थान है जो क्वाई हिन्दू आश्रम, आधिनम, इराइवन मंदिर इत्यादि के नाम से जाना जाता है। इराइवन अर्थात वह जिसे पूजा जाता है – महादेव। दक्षिण भारतीय शैव परम्परा से जुड़ा यह मठ हर प्रकार से अविश्वनीय है। इस मंदिर का केंद्र है, छः स्तरों वाला कर्पूरगौर स्फटिक लिङ्ग – तीन फीट से अधिक लम्बाई एवं तीन सौ किलो से अधिक भार का, जिसकी अनुमानित प्राकृतिक आयु ५ करोड़ वर्ष है। इस अद्भुत शिवलिंग के अतिरिक्त स्वर्ण जटित नटराज की एक सौ आठ भङ्गिमाओं की प्रतिमायें तथा एक ही चट्टान से बनायी गयी सोलह टन ग्रेनाईट की नंदी की प्रतिमा है। तीन सौ बयासी एकड़ में पसरे इस मठ में अनेक वाटिकायें, सरोवर, तड़ाग, प्रवाही जल, गुञ्जलक पथ और प्रतिमायें हैं। कल कल करती वाईमिया नदी मठ से हो कर प्रवाहित होती है। हर दिशा में फलों और फूलों से लदे वृक्ष दिखते हैं एवं सुदूर क्षितिज तक पसरी क्वाई की अतिशय सुंदरता।
इस मठ में एक के बाद एक आश्चर्यचकित करने वाली बातें पता चलती हैं। मठ की स्थापना सतगुरु शिवाय सुब्रमन्यस्वामी ने की। (https://en.wikipedia.org/wiki/Sivaya_Subramuniyaswami) १९२७ में रॉबर्ट हानसेन के नाम से कैलिफोर्निया में जन्मे सुब्रमन्यस्वामी ने दक्षिण भारत और श्रीलंका में शैव परम्परा की दीक्षा ली और उसके पश्चात जीवनपर्यन्त वह हिन्दू धर्म के प्रचार में लगे रहे। उन्ही के द्वारा स्थापित कदावुल मंदिर में मंत्रोचार और पूजा विधि अत्यंत मनोरम होती है। स्पष्ट संस्कृत में यवन गौराङ्ग साधुओं को मंत्रोच्चार करते देखना अविश्वसनीय रूप से सुखद होता है। इस मठ में संन्यासी बनने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन है। स्यात 24 संन्यासी इस मठ में रहते हैं जो मठ की अनुरक्षण, पूजा, एवं ध्यान-तप करने के अतिरिक्त पत्रिकायें, पुस्तक, वेबसाईट इत्यादि का कार्य भार भी सँभाले हैं। मठ के एक संन्यासी के अनुसार संसार के कोने कोने से प्रति वर्ष हजारों की संख्या में संन्यासी बनने का अनुरोध उन्हें प्राप्त होता है। मठ के सारे संन्यासी ब्रह्मचर्य, शील, दरिद्रता एवं गोपनीयता की आजीवन प्रतिज्ञा लेते हैं। भगवा वस्त्र, श्वेत श्मश्रु और चमकती आँखों वाले संन्यासी मंत्रोच्चार करते हुए अद्भुत दृश्य उपस्थित करते हैं। संभवतः यह संसार का अकेला हिन्दू मंदिर होगा जहाँ एक भी भारतीय पुजारी नहीं !
स्वर्ण जड़ित गोपुरम वाला इराइवन मंदिर, जिसके पत्थर भारत में तक्षण के पश्चात एक एक कर समुद्रमार्ग से हवाई तक लाये गये हैं, प्राय: पूर्ण हो चुका है। एक एक पत्थर वास्तु एवं कलाकृति का अद्भुत प्रतिमान प्रतीत होता है। इराइवन मंदिर के पीछे द्वीप का केन्द्रीय पर्वत वाईयालिआले दिखता है। जहाँ तहाँ फूलों की टोकरी लिये तथा ध्यान में बैठे साधक दिख जाते हैं।
इन सबके साथ यह आश्रम एक जैविक उद्यान भी है जिसका सबसे अद्भुत अंग है रुद्राक्ष का वन, साथ ही भारत से लाये गए विभिन्न प्रकार के पेड़ों (नीम, आँवला, वट इत्यादि) के सङ्ग विभिन्न प्रकार के फूल ही फूल ! संन्यासी अपने आहार के लिये ७०% अन्न, फल, दूध एवं घी मठ में ही उपजाते हैं। अपने वस्त्र स्वयं बुनते हैं तथा साथ में कंप्यूटर पर बैठ संसार के कोने कोने में धर्म का प्रचार भी करते हैं।
एक और रोचक बात है – मंदिर में कर्गद एवं लेखनी रखी हैं, लोग अपने दुःख और समस्यायें लिख कर एक टोकरी में रख देते हैं। नटराज की विशाल फूलों से सजी प्रतिमा के सामने २ घंटे की पूजा और मंत्रोच्चार के पश्चात संन्यासी घंटे की गूँज के बीच एक एक कर समस्याओं से भरे उन लेखों को भस्म करते जाते हैं। ध्यान में बैठे साधक एक एक कर अपने दुखों को धुँआ होते देखते रहते हैं ! कल कल करती नदी, हरे भरे पहाड़, फल-फूलों से भरे उद्यान, पक्षियों की चहचाहाहट, रुद्राक्ष के वृक्षों के साथ अद्भुत मंदिर के बीच ॐ नम: शिवाय, भज विश्वनाथं एवं शिवाष्टकं की गूँज लिये यह आश्रम किसी पौराणिक कथा से निकला स्वप्न लोक सा प्रतीत होता है !
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