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सुभाषित (महाभारत, आदिपर्व से)
पाण्डवों को वारणावत जाने के धृतराष्ट्र के आदेश के पीछे उन्हें लाक्षागृह में जीवित ही जला देने का षडयंत्र था जिसकी भनक महात्मा विदुर को लग गई। सम्यक धर्म एवं अर्थ का दर्शन करने वाले बुद्धिमान विदुर ने पाण्डवों में ज्येष्ठ एवं बुद्धिमान युधिष्ठिर को कूटभाषा में सावधान किया – प्राज्ञः प्राज्ञं प्रलापज्ञः सम्यग्धर्मार्थदर्शिवान् :
विज्ञायेदं तथा कुर्यादापदं निस्तरेद्यथा
अलोहं निशितं शस्त्रं शरीरपरिकर्तनम्
यो वेत्ति न तमाघ्नन्ति प्रतिघातविदं द्विषः
आपदा की स्थिति में सोच समझ कर ऐसा कार्य करना चाहिये कि उससे बचा जा सके। एक ऐसा तीखा शस्त्र है जो लोहे का तो नहीं बना है परन्तु शरीर को नष्ट कर देता है। जो उसे जानता है, ऐसे उस शस्त्र के आघात से बचने का उपाय जानने वाले पुरुष को उसके द्वेषी नहीं मार सकते।
[सस्त्र का अर्थ घर होता है किन्तु विदुर जी ने कूट में उसे शस्त्र कहा अर्थात जिस घर में रहने जा रहे हो वह अलोहं (लाख संकेतित) का बना होने पर भी तुम्हारा नाश करने में सक्षम है। सावधान रहना।]
कक्षघ्नः शिशिरघ्नश्च महाकक्षे बिलौकसः
न दहेदिति चात्मानं यो रक्षति स जीवति
कक्षघ्न अर्थात तृण एवं सूखे वृक्षों को जला देने वाली, शीत का नाश करने वाली महाकक्ष अर्थात बड़े वन के भीतर बिल में रहने वाले (मूषक आदि) जीवों को जला नहीं सकती, इस नियम को जान कर जो अपनी रक्षा करते हैं, वही जीवित रह पाते हैं।
[महाकक्ष का अर्थ विशाल भवन भी होगा, कक्ष का अर्थ उसका कक्ष विशेष। विदुर ने यहाँ भवन में भविष्य में लगायी जाने वाली आग से सावधान किया कि विशाल भवन में आग लगने पर बिल अर्थात सुरङ्ग से हो कर बाहर आ जाने वाला बच जाता है। विदुर जी ने अपना विश्वसनीय गुप्त कुशली भेज पाण्डवों के प्रवास के समय लाक्षागृह से बाहर जाने को सुरङ्ग बनवा दिया था।]
नाचक्षुर्वेत्ति पन्थानं नाचक्षुर्विन्दते दिशः
नाधृतिर्भूतिमाप्नोति बुध्यस्वैवं प्रबोधितः
जिसकी आँखें नहीं हैं, वह पथ नहीं जान पाता; अन्धे को दिशाओं का ज्ञान नहीं होता एवं जो धैर्य नहीं रखता उसे ऐश्वर्य नहीं प्राप्त होता। इस प्रकार मेरे बताने पर तुम समझ लो।
[अर्थात पहले से ही परिवेश के पथ एवं दिशा आदि का ज्ञान ठीक से कर लेना जिससे कि समय आने पर जलते भवन से निकलने पर रात में भटकना न पड़े। समय विपरीत जान धैर्य न खोना।]
अनाप्तैर्दत्तमादत्ते नरः शस्त्रमलोहजम्
श्वाविच्छरणमासाद्य प्रमुच्येत हुताशनात्
जो पुरुष शत्रुओं द्वारा दिये गये बिना लोहे का बना शस्त्र ग्रहण कर लेता है, वह साही के घर में प्रवेश कर हुताशन से बच जाता है।
[पुन: यहाँ लाख से बने घर का शत्रु द्वारा एक शस्त्र की भाँति प्रयोग सङ्केतित है। साही का घर अर्थात दो द्वारों से युक्त सुरङ्ग, हुताशन अर्थात अग्नि।]
चरन्मार्गान्विजानाति नक्षत्रैर्विन्दते दिशः
आत्मना चात्मनः पञ्च पीडयन्नानुपीड्यते
विचरण करते रहने से मार्गों का ज्ञान हो जाता है, नक्षत्रों से दिशा को जाना जाता है। अपने पाँच को पीड़ा पहुँचाने वाला पीड़ित नहीं होता।
[अर्थात घर से बाहर हो भ्रमण कर विभिन्न मार्गों का ज्ञान कर लेना। रात में निकलने पर नक्षत्रों से दिशा का ज्ञान करना एवं तुम अपनी पाँच इंद्रियों पर संयम रख अनुशासित एवं सावधान रहोगे तो शत्रु के इस छ्ल से पीड़ित न हो उससे बच सकोगे।]