कविता,जेयर लिन, म्यान्मार
मैं मर चुका हूँ, मैं यह कह सकता हूँ स्वैर।
वह मैं नहीं था जिसने मेरा इतिहास लिखा
ग्यारह में से दस तो मुझे जानते ही नहीं,
इतिहासकारों को मेरे उस इतिहास का पता ही नहीं
जिसे इतिहासकारों ने ही लिखा
मेरे पास बिक्री हेतु कोई स्मारिका नहीं
पी एच डी विद्वान और पत्रकारों ने
लिखा होगा मेरा इतिहास
(किंतु मुझे उसकी स्मृति नहीं)
कोई शिलालेख नहीं
न कोई स्तूप, न अस्थियाँ
राख तक नहीं
उन अकादमिकों ने, उन सबने इसे मेरे लिये लिखा
उन सबने लिखे अपने निजी संस्करण
जो लिखे, वे थे स्वर्णधूलि सिक्त मिथ
उस धूलि में मैं हूँ ही कितना
मुझे कब्र का पता न था
उन्होंने तो मेरी मृत्यु तक लिख दी
मरण और मरणतर मौतों के बीच
मैं लगभग मृत्यु ही था नामहीन
एक विकलाङ्ग मौत
न थी मृत्य भी प्रामाणिक
मर कर भी मैं निर्वासित था
उन्होंने मेरे अवलम्ब प्रलेख भी पूरे न लिखे
मर कर भी मेरे पास
आवास अनुमति पत्र न था ।
उन्होंने मेरी मौत लिख दी है
उन्होंने मेरी मौत मरुत पर लिख दी है
उन्होंने … उन्होंने… उन्होंने मेरी मौत जल पर भी लिख दी है
मैं पुन: पढ़ता हूँ … अपना इतिहास
वर्तनी की त्रुटियाँ, व्याकरण लोप
मुझे तो ‘vocabulary’ का उच्चारण तक नहीं पता!
उन्होंने मेरा इतिहास लिखा है
तब मुझे इतिहास से हँकाल दिया है
मेरा इतिहास तो अभी आरम्भ हुआ है
मैं अपना इतिहास स्वयं लिखने जा रहा हूँ।