Bengal bush lark अगिन
भारतीय तथा अन्य नाम
सामान्य हिन्दी/भोजपुरी : अगिन, अगिया, चिरचिरा, भिरीरी, बंग क्षुप
संस्कृत : कृकराट
बांग्ला : ভিরিরি
नेपाली : भारद्वाज चरा
अंग्रेजी नाम : Bengal bush lark, Rofous-winged Bush lark, Mirafra assamica
वैज्ञानिक नाम (Zoological Name) : Mirafra assamica
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Passeriformes
Family: Alaudidae
Genus: Mirafra
Species: M. assamica
गण-जाति : यष्टिवासी
Clade: Perching Bird
जनसङ्ख्या : स्थिर
Population: Stable
संरक्षण स्थिति (IUCN) : सङ्कट-मुक्त
Conservation Status (IUCN): LC (Least Concern)
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची : ४
Wildlife Schedule: IV
नीड़-काल : मार्च से जून तक
Nesting Period: March to June
आकार : लगभग ६ इंच
Size: 6 in
प्रव्रजन स्थिति : अनुवासी
Migratory Status: Resident
दृश्यता : असामान्य (अत्यल्प दृष्टिगोचर होने वाला)
Visibility: Less visible
लैङ्गिक द्विरूपता : अनुपस्थित (नर और मादा समरूप)
Sexual Dimorphism: Not Present (Alike)
भोजन : बीज, अन्न, कीड़े -मकोड़े। प्रजनन काल में कीट, कीड़े आदि अधिक खाता पाया जाता है।
Diet: Seeds, Insects, insects especially during the breeding season.
अभिज्ञान एवं रङ्ग-रूप
अगिन खुले समक्षेत्रों और खेतों में पाई जाने वाली चिड़िया है, जिसे खेतों में दाना चुगते या झाड़ियों पर बैठे हुए देखा जा सकता है। इसका आवास जल-स्रोतों के निकट अधिक होता है। इसकी लम्बाई लगभग ६ इंच होती है। दिखने में इसके नर एवं मादा एक जैसे होते हैं। इसकी देह के ऊर्ध्व भाग पर रेखायें होती हैं तथा वर्ण गहन भूरा होता है। नेत्रगोलक पीतवर्ण लिए गहन भूरे होते हैं। चञ्चू का ऊपरी भाग कल्छौंह और निचला भाग पाटल (गुलाबी) वर्ण लिए होता है। अग्रपाद (टांग) भी तनु पाटल वर्ण लिए होते हैं।
निवास
अगिन पूरे भारत में पाई जाती हैं, विशेषत: भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर तक; उत्तर में हरियाणा से लेकर उत्तरप्रदेश, बिहार, उत्तरी मध्यप्रदेश, उत्तरी ओडिशा तथा उत्तरी बंगाल तक।
वितरण
अगिन भारत के अतिरिक्त बाङ्गलादेश और श्रीलङ्का में भी पाया जाता है।
प्रजनन काल तथा नीड़ निर्माण
अगिन के प्रजनन का समय मार्च से जून तक का होता है। ये अपना नीड़ किसी घनी झाड़ी में भूमि तल पर ही बनाते हैं। नीड़ को जड़ों ,पत्तियों और शुष्कतृण आदि से बनाया जाता है। समय आने पर मादा एक बार में ३ से ५ तक अण्डे देती है। अण्डों का वर्ण श्वेत धूसर होता है जिन पर बादामी या भूरी चित्तियाँ भी हो सकती हैं। अण्डों का आकार लगभग ०.८३ * ०.६१ इंच तक होता है।
सम्पादकीय टिप्पणी
अपनी पुस्तक Birds in Sanskrit Literature में दवे ने इस पक्षी के अभिज्ञान से सम्बंधित प्रचलित किञ्चित भ्रम के उल्लेख के साथ इसके अनोखे नाम ‘अगिन‘ या ‘कण्ठाग्नि‘ पर चर्चा की है। उन्होंने शब्दकल्पद्रुम की व्युत्पत्ति, कण्ठे कण्ठाभ्यन्तरे अग्नि:, पाचनरूपाऽग्निरस्य – ऐसा पक्षी जिसकी जठराग्नि उसके कण्ठ में रहती है, को हास्यास्पद बताया है। इसके विपरीत, ऋतु में इस पक्षी द्वारा उच्च स्वर में प्राय: चौबीस घण्टे शक्तिमंत गायन को वह कण्ठ की अग्नि से जोड़ते हैं, अग्नि की तीव्रता सा गुण लिये स्वर। इसके पक्ष में वह कोयल हेतु ‘मधुकण्ठ’ की सञ्ज्ञा का उदाहरण देते हैं जोकि कण्ठस्वर की विशेषता हेतु है, न कि उदरगुण हेतु। ऐसा ही एक अन्य पक्षी ‘क्रकराट’ नाम का है जोकि कर्कश स्वर के लिये जाना जाता है।
ऐतरेय उपनिषद से मुखाद्वाग्वाचोऽग्नि: एवं अग्निर्वाग्भूत्वा मुखं प्राविशत् का उदाहरण देते हुये वह व्युत्पत्ति सुझाते हैं – कण्ठदेशे अग्नि: शब्दरूपाग्निरस्य।
भरद्वाज/ भरद्वाजी/ भारद्वाज/ भारद्वाजी जैसे नामों हेतु वह शब्द व्युत्पत्ति पर जाते हैं। ‘भर‘ अर्थात प्रशंसायुक्त गीत या उच्च स्वरगमन तथा ‘वाज‘ अर्थात शक्ति। ऐसा शक्तिमान पक्षी जो उड़ते हुये गाता हो। यह sky lark के लिये प्रयुक्त हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि भर शब्द का सम्बंध अग्नि से भी है, भरतों द्वारा अग्नि का उपयोगी स्वरूप प्रचलित किया गया। अत: अग्नि भरत भी कहलाये। इस सम्बंध में इस पक्षी के अन्य नाम ‘भारती‘ को देखा जा सकता है। वेदघोष को ‘ब्रह्मघोष’ भी कहा जाता है। प्रार्थना ऋचाओं के समान सुंदर स्वर होने से इसे धन्वन्तरि निघण्टु में ‘ब्राह्मी चटी’ भी कहा गया है। त्रिकाण्डशेष में इसके लिये ‘भारती व्योमलासिका‘ प्रयुक्त हुआ है।
यदि वयस्क होने पर स्वर-वाग्मिता के गुण चाहते हों तो शिशु को अन्नप्राशन के समय भारद्वाजी का मांस खिलायें –
भारद्वाज्या मांसेन वाक् प्रसारकामस्य (पारस्कर गृह्यसूत्र, १.१९.७) ।
बृहत्संहिता में भी कहा गया है – स्वरवैचित्र्यं सर्वं भारद्वाज्या: शुभं प्रोक्तम् (८७.१५)
इसकी पूरी सम्भावना है कि अगिन या कण्ठाग्नि या भारद्वाजी क्रकराट/ कृकराट/ चरचरा/ चिरचिरा से भिन्न है तथा इनमें भेद का मुख्य कारण इनके स्वरों में भिन्नता है। पहले का स्वर वाग्मिता लिये हुये तीव्र मधुर है तो दूसरे का कर्कश।