लिङ्गम्
संस्कृतप्रेमियों द्वारा श्रावण शुक्ल पूर्णिमा (रक्षाबन्धन- दिवस) को संस्कृत-दिवस के रूप में मनाया जाता है। उसके पूर्व व पर के ३+३ दिन मिलाकर संस्कृत-सप्ताह मनाया जाता है। इसी प्रकार संस्कृत-पक्ष व संस्कृत-मास मनाया जाता है। अतः हम भी श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के पूर्व व पर के अमावस्या को मिला कर संस्कृत-मास की गणना करेंगे। हम भी शब्द-शृंखला में ऐसे शब्दों पर विचार करेंगे, जो हमें संस्कृत के निकट ले जाने में सहायक हों।
भाषा की शोभा यदि उसके शब्द हैं, तो भाषा में चमत्कार उसके अर्थ करते हैं। अतः प्रत्येक भाषा में ऐसे शब्द प्राप्त होते हैं, जो अनेकार्थी होते हैं। ऐसा ही अनेकार्थी शब्द है -लिङ्ग।
लिङ्ग के निम्न अर्थ प्राप्त होते हैं :
- चिह्न,लक्षण,प्रतीक, परिचायक।
- छद्मवेश- ‘क्षपणकलिङ्गधारी’ (मुद्राराक्षस १)
- लक्षण, रोग के चिह्न।
- प्रमाण अथवा प्रमाण के साधन।
- पुरुष जननाङ्ग अथवा शिश्न।
- स्त्री/पुरुष वाची शब्द – गुणा: पूजास्थानं गुणिषु, न च लिङ्गं न च वय:।
- देव-प्रतीक। यह प्रतिमा नहीं है, प्रतीक है।
यथा :
- वर्तुलाकार स्फटिक – सूर्यलिङ्ग ।
- नन्दिनी नदी ( नासिक) से प्राप्त लोहित पाषाण – गणेशलिङ्ग ।
- बीसा यंत्र – देवीलिङ्ग
- नर्मदा नदी से प्राप्त ज्योति स्वरूप पाषाण – शिवलिङ्ग ।
- शालिग्राम – विष्णुलिङ्ग ।
व्याकरण की दृष्टि से संस्कृत में लिङ्ग निर्धारण :
संस्कृत में तीन लिङ्ग होते हैं – पुल्लिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग, नपुंसकलिङ्ग ।
संस्कृतभाषा में लिङ्गभेद शब्द के अर्थ अथवा स्वाभाविक स्थिति पर निर्भर नहीं है। यहाँ सामान्यतः शब्द-निर्माण के आधार पर ही लिङ्ग का अभिज्ञान होता है। जैसे –
पत्नी अर्थ में भार्या (स्त्रीलिङ्ग ), कलत्रम् (नपुंसक लिङ्ग ) व दारा: (पुल्लिङ्ग व सदा बहुवचनान्त) शब्द हैं। नगर अर्थ में जहाँ नगरम् स्वयं नपुंसक लिङ्ग है, वहीं पुर: पुल्लिङ्ग एवं पुरी स्त्रीलिङ्ग । कहा भी है –
अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका ॥
यहाँ सभी शब्द स्त्रीलिङ्ग हैं। कैसे ज्ञात होगा? सामान्य नियम देखिए—
सामान्य अभिज्ञान :
- पुल्लिङ्ग – अकारान्त, इकारान्त व उकारान्त पद सामान्यत: पुल्लिङ्ग होते हैं। प्रयोगार्थ प्रथमा विभक्ति एक वचन में विसर्ग होता है। जैसे – सिंह:, गज:, वानर:, उलूक:, आचार्य:, कवि:, हरि:, अग्नि:, साधु:, गुरु:, भानु: आदि।
- स्त्रीलिङ्ग – सामान्यतः आकारान्त, ईकारान्त व ऊकारान्त शब्द स्त्रीलिङ्ग होते हैं। प्रथमा एक वचन में विसर्ग नहीं होता है। जैसे- सेना, नौका, सुमित्रा, रमा, नदी, स्त्री, नारी, पुरी, वधू, आदि।
- नपुंसकलिङ्ग – सामान्यतः शब्द के अंत में (म्) आने पर हम उसे नपुंसक लिङ्ग मानते हैं। जैसे कलत्रम्, पुष्पम्, फलम्, ज्ञानम्, मित्रम्, नगरम्, जलम् आदि।
यहाँ अंकनी (पेंसिल) स्त्रीलिङ्ग है, तो उसका साथी मार्जक: (पेंसिल से लिखे को मिटाने वाला रबर) पुल्लिङ्ग । सुधाखण्ड: (चॉक) पुल्लिङ्ग है, तो मार्जनी (डस्टर) स्त्रीलिङ्ग । सम्मार्जनी (झाड़ू) स्त्रीलिङ्ग ।
विद्वानों द्वारा रचे गये नये शब्दों में भी उपर्युक्त नियम ही मान्य होते हैं। जैसे – लघु मापक ‘मापिका’ (स्त्रीलिङ्ग ) कहलाता है, तो एक चरण का मापक ‘मापक:’ (पुल्लिङ्ग ) होता है। आकाशवाणी ईकारान्त शब्द होने से स्त्रीलिङ्ग है तथा दूरदर्शनम् नपुंसकलिङ्ग ।
शेष अभ्यास से ही ज्ञात हो सकता है तथा अपवाद तो कहीं भी प्राप्त हो सकते हैं।
सद् प्रयास हेतु साधुवाद।