संसार की प्रायः सभी संस्कृतियों में विवाह एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रथा तथा समाज निर्माण की मूल इकाई है। संसार में विभिन्न प्रकार की वैवाहिक विधियाँ प्रचलित हैं। सनातन ग्रंथों में विवाह के आठ प्रकारों का वर्णन मिलता है जिनमें से दो प्रमुख रूप से वर्तमान युग तक प्रचलित हैं – ब्रह्म विवाह (arranged marriage) और गंधर्व विवाह या प्रेम विवाह (love marriage)। संसार में विवाह की विधियों में वैविध्य होते हुए भी यही दो विधियाँ अधिक प्रचलित और सामान्य परिपाटी हैं। इनमें से कौन उत्तम है, इसकी चर्चा बहुधा सुनने को मिलती है। कुछ लोग प्रेम विवाह के इतने कट्टर समर्थक होते हैं कि उन्हें किसी भी मूल्य पर ब्रह्म विवाह करना स्वीकार नहीं होता। रोचक तथ्य यह है कि प्रेम और सुख की इच्छा रखने वाले ऐसे अनेक व्यक्तियों को ये संज्ञान ही नहीं होता कि प्रेम होता क्या है !
सनातन ग्रंथों में विवाह के आठ प्रकारों ब्रह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, असुर, गन्धर्व, राक्षस एवं पिशाच में से ब्रह्म विवाह को उत्तम माना गया है तथा अन्य को उत्तरोत्तर अशुभ या निम्न माना गया है, यद्यपि अवलोकन करने पर ग्रंथों में हर प्रकार के विवाहों का वर्णन मिलता है। हर प्रकार के विवाह के सफल होने का भी वर्णन है। विवाह के प्रकार का इस क्रम में होने का क्या अर्थ है? इस अवलोकन का स्पष्ट तात्पर्य है कि सनातन बोध के अनुसार औसतन ब्रह्म विवाह सफल होते होंगे? आधुनिक अध्ययनों का इस संदर्भ में क्या निष्कर्ष है?
‘सुगम वैवाहिक सुख की दुर्लभता का अनुमान ‘The Science of Happily Ever After: What Really Matters in the Quest for Enduring Love’ के लेखक ताई ताशिरो के अनुसार प्रेमी युगलों के विवाह के प्रथम वर्ष में वैवाहिक सुख औसतन ८६% होता है। विवाह के सातवें वर्ष तक ये ५०% से भी कम हो जाता है क्योंकि लगभग ५०% विवाह-विच्छेद हो जाते हैं। १०-१५% बिना क़ानूनी औपचारिकता के अलग हो जाते हैं और लगभग ७% चिरकालिक अप्रसन्नता में रहते हैं। टाइम पत्रिका में प्रकाशित एक आलेख के अनुसार दो तिहाई विवाह सुखी नहीं होते। ये आँकड़े आश्चर्यजनक प्रतीत होते हैं!
आधुनिक मनोवैज्ञान में वैवाहिक सुख के कारकों के अनेक अध्ययन हैं तथा उनमें इन दो प्रकार के विवाहों पर भी अनेक अध्ययन किए गए हैं। सांख्यिकी रूप से किए गए आधुनिक अध्ययनों के परिणाम से इस क्रम का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। वैवाहिक सुख व्यक्तिगत संतुष्टि, सामञ्जस्य, स्वभावगत विशेषताएँ, विश्वास, वित्तीय स्थिति जैसे कई कारकों पर निर्भर होता है परन्तु अध्ययनों में ब्रह्म विवाह के चिर स्थायी सुखमय होने से शोधकर्ताओं ने इस विषय में पर्याप्त रुचि दिखायी है।
इनमें एक प्रख्यात अध्ययन है वर्ष २०१३ में ‘जर्नल ऑफ कॉम्पेरेटिव फ़ैमिली स्टडीस’ में प्रकाशित डॉ रॉबर्ट एपस्टीन का शोध How Love Emerges in Arranged Marriages: Two Cross-cultural Studies। हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के शोधकर्ता तथा साइकोलोज़ी टुडे के सम्पादक रहे डॉ एपस्टीन ने अनेक लोगों के साक्षात्कार तथा सर्वेक्षण प्रपत्रों का गुणात्मक (qualitative) एवं मात्रात्मक (quantitative) अध्ययन किया। उन्होंने उन कारणों को स्थापित करने का प्रयास किया जिनसे दीर्घकाल में ब्रह्म विवाह (arranged marriage) से बने सम्बन्ध गंधर्व विवाह (love marriage) की तुलना में सुखमय होते हैं।
१९८२ में ‘इण्डियन जर्नल ऑफ अप्लाइड साइकोलोज़ी’ में प्रकाशित उषा गुप्ता और पुष्पा सिंह का असाधारण शोध An exploratory study of love and liking and type of marriages इस क्षेत्र के कई अध्ययनों का आधार है। इस शोध में यह सिद्ध हुआ कि गन्धर्व विवाहों में प्रारम्भ में अत्यधिक प्रेम होता है परंतु वह समय के साथ क्षीण हो जाता है, वहीं ब्रह्म विवाह के प्रारम्भ में तो प्रेम नहीं होता परंतु समय के साथ वह विकसित होता जाता है। सामाजिक मनोविज्ञानी जिक रूबिन के प्रेम पैमाने के अनुसार इस अध्ययन में पाया गया कि औसतन पाँच वर्ष में ब्रह्म विवाह के सम्बन्धों में प्रेम गन्धर्व विवाह की तुलना में अधिक हो जाता है तथा दस वर्षों में प्रेम स्तर गन्धर्व विवाह की तुलना में दोगुना हो जाता है।
डॉ एपस्टीन के अनुसार इस उत्तरोत्तर प्रेम वृद्धि का सबसे बड़ा कारक है – वचनबद्धता (commitment)। उन्हीं के शब्दों में पश्चिमी देशों में दिए गए क्षणभङ्गुर वचनों की भाँति नहीं, अपितु वास्तविक वचन – I’m really going to be with you through thick and thin, through sickness and in health.
अन्य कारकों में प्रमुख हैं अपेक्षाओं का यथार्थवादी होना तथा पारिवारिक सहयोग। एक अन्य रोचक तथ्य यह है कि गन्धर्व विवाह में प्रेमी इस प्रकार रंग,रूप एवं वेष-विन्यास के आकर्षण से आवेशी प्रेम (passionate love) में लिप्त होते हैं कि उन्हें पता ही नहीं होता कि वे किस प्रकार के व्यक्ति से विवाह कर रहे हैं। प्रभावी भावनाओं एवं तृष्णा में घिरे व्यक्ति को अपने जीवनसाथी के वास्तविक गुणों का पता ही नहीं चलता। बहुधा प्रेम के नाम पर ऐसे व्यक्तियों को चुन लेते हैं जो मात्र आवेशी आकर्षण होता है। प्रेम के इस रूप पर डॉ एपस्टीन कहते हैं :
‘It does seem like a cruel trick. Here’s this person that makes butterflies in your stomach and that person’s not a good partner for you. Those butterflies mislead you.’
आवेशी और साहचर्य प्रेम की प्रकृति और उसके सनातन संदर्भ की विस्तृत चर्चा हम एक अन्य लेखांश में कर चुके हैं।
ब्रह्म विवाह में युगल किसी जादुई भावना में नहीं बँधे होते और सम्बंधों के आरम्भिक दिनों में वे बहुत अधिक समय इस बात को सोचने में व्यतीत करते हैं कि हमें सम्बन्ध को सफल बनाने के लिए क्या करना चाहिए। ‘लव इल्लूमिनेटेड’ पुस्तक के अनुसार- In arranged marriage the goal is to figure out how to be married, not whether to marry.
एक साक्षात्कार में डॉ एपस्टीन पश्चिमी जनमानस को ब्रह्म विवाह से सीखने को कहते हैं। उन्हीं के शब्दों का अवलोकन करें :
‘If you think back to the 1950s, 1960s, generally speaking, we knew nothing about eastern methods of meditation and yoga and tai chi, and so we had very limited ways in which we could work on our wellbeing and peace of mind. One of the main ways was drinking alcohol, actually – we had few, positive, constructive ways of altering our wellbeing. But groups like the Beatles and the Beach Boys brought pieces of eastern culture into western culture, wonderful techniques for creating a sense of wellbeing. We didn’t adopt the religion, the culture – we adopted the practices. I think we can learn from successful arranged marriages and adopt the practices. We can use our heads a little bit more, looking beyond just the physical characteristics, and then we can develop skills and an awareness that can help us not only keep love going but also make love deeper over time. A careful look at arranged marriage, combined with the knowledge accumulating in relationship science, has the potential to give us real control over our love lives.’
अनेक अध्ययनों में एक बात स्पष्ट है – प्रेम विवाह की प्रमुखता वाले पश्चिमी देशों में विवाह-विच्छेद की दर आधे से दो तिहाई तक है, वहीं ब्रह्म विवाह की प्रमुखता वाले समाज में यह दर अत्यल्प ! वर्ष २०१२ के ‘स्टैटिस्टिक ब्रेन’ के आँकड़ों के अनुसार वैश्विक विवाह-विच्छेद दर ५५ प्रतिशत होते हुए भी ब्रह्म विवाहों की वैश्विक विवाह-विच्छेद दर मात्र ६ प्रतिशत है।
अन्य महत्त्वपूर्ण कारकों में मनोवैज्ञानिकों ने ब्रह्म विवाह में होने वाली चयन प्रक्रिया को भी प्रमुखता दी। रोचक यह भी है कि मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि ब्रह्म विवाह की तुलना में प्रेम विवाह में व्यक्ति प्रारब्ध (chance) पर भरोसा कर रहा होता है क्योंकि ब्रह्म विवाह में अभिभावकों के चयन की प्रक्रिया ही यह सुनिश्चित कर देती है कि विवाह में मन:स्थिति, पृष्ठभूमि, रुचि के साथ साथ वित्तीय एवं सामाजिक मेल हों।
इस प्रकार सम्बन्धों के बिगड़ने की प्रायिकता आरम्भ से ही अल्प हो जाती है। ब्रह्म विवाह के युगल बहुधा आजीवन वचनबद्धता की अनुभूति लिए होते हैं, अत: कठिनाइयों को पार करने में उन्हें सुगमता रहती है क्योंकि कठिनाइयों को वे जीवन का अङ्ग मानते हैं । ब्रह्म विवाह में सुखमय वैवाहिक जीवन के प्राय: समस्त महत्त्वपूर्ण कारक सुनियोजित चयन होने से पहले से विद्यमान होते ही हैं, वहीं प्रेम विवाह वाले युगल अत्यन्त महत्वपूर्ण कारकों की अनदेखी कर अवास्तविक कल्पना के साथ वैवाहिक जीवन की अपेक्षा करते हैं। संज्ञानात्मक पक्षपात का कितना सुन्दर उदाहरण है ये!
लोग ब्रह्म विवाह को भाग्य भरोसे समझते हैं। मनोवैज्ञानिक उसके ठीक विपरीत प्रेम विवाह को ही भाग्य भरोसे (chance marriage) सिद्ध करते हैं !
भारत के अतिरिक्त कई अन्य समाजों में भी इस प्रकार की प्रथा है। अमेरिका के परम्परागत यहूदी समाज में भी विवाह की यह प्रथा प्रचलित है। न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित आलेख Modern Lessons From Arranged Marriages में रब्बी स्टीवन वाइल ने लिखा है :
‘प्रेमी युगल वस्तुनिष्ठ दृष्टि खो देते हैं [ऐसे में उनके निर्णय ठीक कैसे हो सकते हैं]। किन्तु ब्रह्म विवाहों में प्रेम के पहले बहुत परिश्रम और गृहकार्य भी होता है। विवाह का निर्णय युवाओं का तो होना चाहिए परंतु एक माता-पिता अपने बच्चों को भली भाँति जानते हैं। [अर्थात वस्तुनिष्ठ रूप से देखने में सक्षम होते हैं]’
सम्बन्धों की विशेषज्ञ और The Divorce Doctor की लेखिका फ़्रान्सिन काए के शब्द :
‘I have seen in arranged marriages in the Orthodox Jewish community that the parents very carefully look at compatibility – it is not left to chance. They do their homework on their characteristics, their values, morals and life goals. It should be pointed out that arranged marriages work because culturally marriage is seen differently. We have a very romantic view of marriage. Theirs is more pragmatic.’
‘द आर्ट ऑफ चूज़िंग’ की लेखिका और कोलम्बिया बिज़नेस स्कूल की प्रो शीना आइयेंगर इसे कुछ इस तरह प्रस्तुत करती हैं :
‘Is it possible that love marriages start out hot and grow cold, while arranged marriages start cold and grow hot… or at least warm? This would make sense, wouldn’t it? In an arranged marriage, two people are brought together based on shared values and goals, with the assumption that they will grow to like each other over time, much in the same way that a bond develops between roommates or business partners or close friends. On the other hand, love marriage is based primarily on affection: People often speak of the immediate chemistry that drew them together, the spark that they took as a sign they were meant to be. But in the words of George Bernard Shaw, marriage inspired by love brings two people together “under the influence of the most violent, most insane, most delusive, and most transient of passions. They are required to swear that they will remain in that excited, abnormal, and exhausting condition continuously until death do them part.” Indeed, both surveys and direct measurements of brain activity show that by the time couples have been together for 20 years, 90 percent have lost that all-consuming passion they initially felt.’
सनातन बोध में शब्दश: यही बातें तो हैं ! इन शोधों के अवलोकन के उपरांत पिछले लेखांश के सनातन श्लोकों का अवलोकन करें तो !
गृभ्णामि ते सौभगत्वाय हस्तं मया पत्या जरदष्टिर्यथासः । भगो अर्यमा सविता पुरंधिर्मह्यं त्वादुर्गार्हपत्याय देवाः ॥
(ऋग्वेद, १०.८५.३६)