देश एक दिन में नहीं कटते बँटते, सरल भी नहीं होता किन्तु यह दारुण सत्य है कि किसी देश में मूलवासियों के धर्म, संस्कृति एवं आस्था का मर्दन करने के साथ साथ आक्रामक विनाशी विचारों की बाढ़ हो तथा बहुविध सुनियोजित षड्यंत्रों, योजनाओं के साथ उदारता एवं विधि विधानों का पूर्ण लाभ लेते हुये समूह लगे रहें तो विखण्डन साध्य हो जाता है। भारत इस सत्य का बड़ा प्रमाण है। कभी वर्तमान अफगान-ईरान की सीमा तक के सांस्कृतिक एवं भौगोलिक पश्चिमी विस्तार से जाने जाना वाला भारत आज कटते कटते कहाँ आ चुका है? कभी कभी बहुत ही स्पष्ट तथ्यों की अनदेखी राजनीतिक औचित्य के कारण इतनी गाढ़ी हो जाती है आँखों के लिये जवनिका का काम करने लगती है जिसे हटाना तक दुस्साध्य हो जाता है। पूरब का बांग्लादेश हो, पूर्वोत्तर प्रदेश हों, कश्मीर हो या वर्तमान पाकिस्तान, अफगानिस्तान; इन सबका एक ही ज्वलंत सत्य है कि जैसे जैसे आक्रांता अब्राहमी पंथ मानने वालों की संख्या इन क्षेत्रों में बढ़ती गयी वैसे वैसे ये या तो भारत से कटते गये या इतने उपद्रवग्रस्त हो गये कि मूल धर्म मतावलम्बी हिंदुओं का वहाँ जीना असम्भव हो गया या विकट समस्याओं के कारण सैन्य बल को स्थायी रूप से इन स्थानों पर रखना पड़ा।
घुसपैठ एवं जन्मदर में अंतर बढ़ने के साथ साथ राजनीतिक कारणों से भी केरल एवं बंगाल आज उस स्थिति की दिशा में तीव्र गति से बढ़ रहे हैं जो कभी पूर्वी पाकिस्तान की थी।
जनसंख्या, आधुनिक युग में सभ्यता के विरुद्ध सबसे बड़े अस्त्र के रूप में उभर कर आयी है। यूरोप घटती जन्मदर से जूझ रहा है तो भारत में जनसंख्या के विस्फोट एवं सुनियोजित प्रसार से ऐसे क्षेत्र बन रहे हैं जहाँ से हिंदुओं को अंतत: पलायन ही करना पड़ता है, वे वहाँ रह ही नहीं सकते। कथित मानवाधिकारों की दुहाई देती राक्षसी शक्तियाँ बढ़ रही हैं। ऐसी स्थिति है कि अल्पसंख्यक हुये हिन्दू सब ओर से मार खा रहे हैं। देखते हैं कि बंगाल एवं केरल में क्या हो रहा है।
यह लेख Swarajya पत्रिका में प्रकाशित सामग्री के आधार पर है जिसके लिये उसके प्रबंधन के प्रति भारत के हर हिन्दू को कृतज्ञ होना चाहिये कि कोई तो है जो बालू में सिर गाड़ने की परम्परा वाली आज की पत्रकारिता के युग में सत्य को प्रकाशित कर रहा है।
अगस्त २०१२, बांग्लादेश। स्नेहलता एवं तपन का लघु आपण लूटने के पश्चात जला दिया गया। कारण यह था कि स्थानीय मौलवी ने ऐसा आह्वान किया था क्यों कि फेसबुक पर किसी हिन्दू द्वारा इस्लाम का अपमान करते हुये लेख का प्रवाद पसरा जो कि अनंतर असत्य पाया गया किंतु जो होना था, वह हो गया। स्नेहलता एवं तपन को देश छोड़ कर भारत में शरण लेनी पड़ी। औने पौने भाव बचा खुचा बेच कर वे भागे तो भारत में घुसपैठ करने हेतु उन्हें २०००० टके उत्कोच में भी देने पड़े। यह इस परिवार पर पहला आघात नहीं था। अप्रैल १९७१ में जब तपन के पिता की आँखों के समक्ष ही इस्लामी उनकी १२ वर्ष की पुत्री को खींच ले गये तो उन्हों ने पश्चिमी पाकिस्तान की दमनकारी सत्ता का न्याय की आशा में समर्थन किया जो कि उल्टा पड़ा। देश छोड़ भारत भागे उस पीड़ित को ‘राज्य का शत्रु’ घोषित कर उनकी समस्त २० बीघा भूमि बांग्लादेशी सरकार ने अधिग्रहित कर ली, तब जब कि उनके भाई का भी उसमें अधिकार था तथा वे भागे नहीं थे ! सितम्बर २०१२ में भारत की धरती पर पहुँच तपन एवं स्नेहलता फूट फूट कर रोये थे कि नरक से मुक्ति मिली !
यह कोई अकेला उदाहरण नहीं है। वर्ष २००० तक एक बहुत ही विवादास्पद विधिक प्रावधान के तहत वहाँ साढ़े सात लाख हिंदू परिवारों की भूमि सरकार ने ले ली थी जो कि हिंदुओं की सकल कृषि भूमि का ५३ प्रतिशत भाग था ! २००६ तक २६ लाख एकड़ भूमि १२ लाख हिंदू परिवारों से छीनी जा चुकी थी। स्थिति इतनी भयानक हो गई है कि १९७१ से भारत में अवैधानिक रूप से शरण लेने वाले हिंदुओं की संख्या ५१२ से ७७४ प्रतिदिन की दर तक बढ़ चुकी है।
मेघालय के वर्तमान राज्यपाल तथागत रॉय अपनी पुस्तक My People, Uprooted: The Exodus of Hindus from East Pakistan and Bangladesh में लिखते हैं कि १९४७ से २००० तक अस्सी लाख हिंदुओं ने अपनी भूमि छोड़ दी थी तथा २० लाख को या तो मार दिया गया या मुसलमान बना लिया गया। मात्र ५३ वर्षों में किसी देश से एक करोड़ जन का लुप्त होना तथा पड़ोसी देश में घुस आना क्या समस्यायें उत्पन्न कर सकते हैं, समझा जा सकता है। यह केवल एक पक्ष है, भारत में विविध उद्देश्यों से घुसपैठ करने वाले बांग्लादेशी मुसलमानों की संख्या हिंदुओं से अधिक ही है। आज २००० से अट्ठारह वर्ष बीत चुके हैं, भारत भूमि जनसंख्या के इस आक्रमण को झेल भी रही है तथा उसका पोषण भी कर रही है। भारतीय बंगाल में स्थिति भयावह होती जा रही है, उत्तर पूर्व के राज्यों की भी यही स्थिति है। तथागत रॉय कहते हैं :
“History, if not learnt from, might repeat itself and some future generation of Hindus of West Bengal at some date in future may find in the same plight (as Bengali Hindus of East Pakistan and Bangladesh), with nowhere further west to go”.
जो भौगोलिक भाग आज बांग्लादेश है, १९०१ में उसमें हिंदुओं की जनसंख्या एक तिहाई थी जो बँतवारे के समय १९४७ में २२ प्रतिशत रह गई। पश्चिमी पाकिस्तान से जहाँ उस समय हिंदुओं एवं सिखों का प्राय: सम्पूर्ण विनाश कर दिया गया, वहीं तब पूर्वी पाकिस्तान कहलाते आज के बांग्लादेश में हिंदुओं का विनाश सधे, धीमें एवं सुनिश्चित ढंग से किया गया। २०११ में वहाँ मात्र ८.५ प्रतिशत हिंदू बचे थे। असम, पश्चिमी बंगाल एवं त्रिपुरा राज्यों में स्थिति बुरी है।
असम में १९७१ की तुलना में मुस्लिम जनसंख्या में दस प्रतिशत की वृद्धि हो कर वे २०११ में ही एक तिहाई की मनोवैज्ञानिक सीमा पार कर ३४.२ प्रतिशत हो चुके थे जिसका एकमात्र कारण घुसपैठ है।
पश्चिमी बंगाल में बँटवारे के समय मुस्लिम जनसंख्या में दस प्रतिशत की घटोत्तरी हुई थी किंतु १९७१ के पश्चात से आज तक वह अंतर पाटा जा चुका है।
त्रिपुरा की स्थिति भी कुछ अच्छी नहीं है, लघु जनसंख्या वाले इस प्रदेश में भी मुस्लिम जनसंख्या का घुसपैठ इतना है कि वह हिंदुओं की संख्या पर भारी पड़ रहा है।
स्वराज्य के अपने लेख में जे के बजाज बताते हैं कि निर्धनता एवं प्रतिकूल जीवन परिस्थितियों के कारण बांग्लादेश में हिंदुओं की मृत्युदर मुसलमानों से लगभग एक प्रति हजार अधिक है। अधिक अंतर तो उससे है जो सर्वज्ञात है, जन्मदर का अन्तर तीन प्रति हजार है !
यहीं तक नहीं बांग्लादेशी मुसलमानों की देश छोड़ने की प्रति हजार दर हिन्दुओं के प्राय: समान है। चूँकि मुसलमानों की संख्या वहाँ उनसे बहुत अधिक है, भारत भाग कर आते हिंदुओं की जनसंख्या की तुलना में घुसपैठिये मुसलमानों की संख्या बहुत अधिक है। इसी कारण भारत के सीमा क्षेत्रों में बांग्लादेशी हिंदुओं के आगमन के होते हुये भी मुस्लिम जनसंख्या का प्रतिशत दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है।
केरल की स्थिति एक अन्य पक्ष का उद्घाटन करती है। मुस्लिम बहुल मल्लापुरम जिले में अ-मुस्लिम रमजान के समय अपने खानपान आपण तक नहीं खोल सकते। कट्टर सलाफीवाद का वहाँ इतना प्रभाव है कि ऐसे आपण नष्ट कर दिये जायेंगे, जला दिये जायेंगे। अचानक यदि कोई रोगग्रस्त हो जाय तो भी उसे पानी तक नहीं मिलना यदि वह उस नगर में उसका घर नहीं है। १९०१ में केरल में हिंदू जनसंख्या का प्रतिशत ६८.५ था, २०११ में वहाँ हिंदू घट कर मात्र ५५ प्रतिशत रह गये हैं। २७ प्रतिशत पहुँच चुकी मुस्लिम जनसंख्या मनोवैज्ञानिक प्रभुत्व वाले एक तिहाई के आँकड़े से मात्र ६ प्रतिशत दूर है। जन्मदर की स्थिति यह है कि २०१६ में मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि हिंदुओं से अधिक थी। केरल शीघ्रता से बूढ़ा होता राज्य है। प्रति हजार पुरुषों पर स्त्री जनसंख्या १०८४ होने, जिहाद एवं प्रभावशाली स्थानीय पञ्चायतों एवं निगमों में उन पार्टियों का प्रभुत्व होने से जो कि संसाधनों का उपयोग तुष्टिकरण हेतु करती हैं, स्थिति विकट होती जा रही है। सबरीमला की परम्परा भंग करने को हो रहे आंदोलन एवं इस्लामिक स्टेट का वहाँ बढ़ता समर्थन; समस्त एक दूसरे से जुड़े हुये हैं।
उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के निवासियों को जहाँ कि अभी इसाई मतान्तरण पाँव पसार रहा है तथा मुस्लिम कट्टरता बढ़ रही है, केरल एवं बंगाल से सीख लेनी चाहिये। जातीय स्वार्थ के आधार पर बँटा हिंदू समाज एक गहराते सङ्कट से पूर्णतया निश्चिन्त है। उसे समझना चाहिये कि कभी लाहौर एवं सीमावर्ती पञ्जाब के हिंदुओं की भी यही स्थिति थी। देश एक दिन में नहीं कटते, बँटते किंतु यदि निवासी सोते रहे तो अवश्य कट बँट जाते हैं। सबसे बड़ा सत्य यह है कि यह देश हिंदू बहुल रहे, हिंदू मूल्यों के प्रति आस्थावान रहे तथा उनकी अभिवृद्धि होती रहे, यह यहाँ के मुसलमानों एवं इसाइयों के लिये भी अच्छा होगा। पाकिस्तान का उदाहरण सामने है, परस्पर कटते मरते इस्लामिक जगत का भी।