वित्तीय अनुशासन के अभाव में हम भारतीय लोग अपने ‘वित्तीय जीवन’ को नष्ट करने के लिये क्या-क्या नहीं करते हैं!
जब भी हम रूपये पैसे की बातें करते हैं तो ‘हम भारत के’ लोगों का मन रोता है, क्योंकि हम अपने धन के बारे में कभी भी किसी से भी बात ही नहीं करना चाहते और न ही किसी की मंत्रणा चाहते हैं। हम समझते हैं कि हमसे अधिक अच्छे से पैसे के बारे में कोई और जानता ही नहीं है, हम जो सोचते हैं, जो भी कुछ हम लोग अपने पैसे के साथ करते हैं, वह सब सही है। यदि कोई केवल इतना ही कह देता है आप ने गलत जगह पैसा लगाया है, तो केवल इसी बात से ही हमारा मन जाने कैसा हो जाता है, हम हत्थे से उखड़ जाते हैं और सम्भवत: कभी भी पलटकर यह नहीं पूछते हैं कि बताओ कहाँ और क्या चूक हो गई है या और कहाँ पर धन का उचित निवेश किया जा सकता है।
हम कुछ ऐसे ही बिंदुओं पर चर्चा करेंगे:
- गृहऋण:
हम प्राय: ही सोचते हैं कि यदि घर खरीद लिया तो उसके भाव तो बढ़ने ही हैं, और या तो किराया बचेगा या उस घर में न रहने की स्थिति में मिलता भी रहेगा। यह आग हमारे यहाँ के रियल इस्टेट दलाल, डेवलपर और बिल्डरों द्वारा लगाई जाती है। हमारे अभिभावक भी कम नहीं होते, वे भी उन्हीं की भाषा बोलते हैं और हम पर घर खरीद लेने का दबाब बनाने लगते हैं। हमारे समाज में भी यही एक सोच है कि जीवन में एक ऐसा पड़ाव आता है जब व्यक्ति के पास अपना, स्वयं का घर होना ही चाहिये। यदि आपके पास स्वयं का घर नहीं है तो लोग आपके ऊपर असफल होने का ठप्पा लगा देते हैं, आज के युग में स्वयं का घर होना सामाजिक प्रतिष्ठा और सम्पन्नता का प्रतीक भी है। केवल इसी कारण से बाजार में घरों के मूल्य बहुत अधिक हो चुके हैं, घरों के ‘वास्तविक मूल्य’ के बारे में कोई सोचना ही नहीं चाहता है। यदि अपने घर के मूल्य का अधिकतम भाग आपने ऋण लिया है तो क्या आपको लगता है कि घर आपका हो गया? जी नहीं, जब तक कि आप पूरा गृह ऋण चुका नहीं देते हैं, घर बैंक का है। घर खरीदने के अगले दिन ही आप अपने घर को बेचने का प्रयास कर के देखिये तो! आपको पता चल जायेगा कि आपने वास्त्तव में अधिक मूल्य दे घर मोल लिया है क्योंकि आपको अपनी खरीद से 10-20 प्रतिशत कम भाव मिलेगा।
सही बात तो यह है कि गृह ऋण के कारण केवल भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में घरों के दाम आकाश छू रहे हैं। वस्तुत: हमें आज पता ही नहीं है कि किसी भी भूमि या घर का वास्तविक मूल्य कितना है, हमें जो भाव बताया जाता है, मानना पड़ता है। हम लोग घर खरीदने के पहले अपनी आवश्यकताओं और अपने भविष्य के बारे में नहीं सोचते हैं। केवल इसलिये घर खरीदना चाहते हैं क्योंकि हमारा प्रॉपर्टी ब्रोकर कह रहा है, हमारे अभिभावक कह रहे हैं, हमारे लगभग सभी सहकर्मियों के पास स्वयं का घर है, एवं सभी लोग घर खरीद रहे हैं।
‘मुझे भी आयकर में बचत करना है’ बस इतना हुआ और एक और बढ़ी हुई कीमत वाला घर बिक गया! अब जीवन भर उसके ऋण की किश्त भरते रहो। ऐसे में अपने जीवन में कुछ और नहीं कर पाने की ग्लानि सर्वदा बनी रहती है।
- जीवन बीमा:
यदि जीवन बीमा की पॉलिसी नहीं है तो माने हमारा जीवन ही अधूरा है! जीवन बीमा पॉलिसी हमारे जीवन की सबसे बड़ी दुर्घटना होती है और यह दुर्घटना हमारे जीवन में शीघ्र ही घटित हो जाती है। जैसे ही हम नौकरी या व्यापार प्रारम्भ करते हैं, हमारे अभिभावक ही हमें जीवन बीमा पॉलिसी लेने के लिये उकसाते हैं, और न लेने पर बहुत से ताने भी मारते हैं। कहते हैं कि यही छोटी छोटी बचतें आगे जीवन में बहुत काम आयेंगी। वे सही कहते हैं, परंतु वे भी यह नहीं जानते हैं कि यह छोटी बचत हमारे नहीं बीमा कम्पनी के काम आयेगी। हमारे वित्तीय जीवन की दुर्घटना वास्तव में बीमा से आरम्भ होती है जो कि गृह ऋण तक आते आते बड़ा रूप ले लेती है।
हम इतने निवेश करने के बाद अपने आपको गगनगामी मानने लगते हैं कि हमारे तो रक्त में ही निवेश सही तरीके से करने के जीन उपस्थित हैं। सोचने लगते हैं कि विशेष जीवन फलाना ढिमकाना पॉलिसी से हम लोग बहुत धनी बन जायेंगे और इससे हमारे पूरे परिवार को बहुत सारी सुरक्षा मिल जायेगी।
दुख की बात यह है कि न हम धनी बनते हैं और न ही परिवार को बहुत सारी सुरक्षा मिलती है। यह सब तब समझ में आता है जब पॉलिसी परिपक्व होती है और जीवन के 20-25 वर्ष निकल चुके होते हैं। यदि जीवन बीमा पॉलिसी से धनी बनते होते तो आज भारत सारे विश्व में सबसे धनी होता! सबसे बड़ी बात यह है कि आज भी हम अपनी उस सचाई का सामना नहीं करना चाहते हैं जो वस्तुत: हमारी मूर्खता या अपरिपक्वता होती है।
- शेयर मार्केट:
हम लोग शेयर बाजार में निवेश नहीं करते हैं क्योंकि उसमें अनिश्चितता बहुत है। अधिकतम लोग यही पूछते पाये जाते हैं कि कैसे अधिक से अधिक धन बाजार से ‘बिना किसी संकट के’ कमाया जाये। मैं ऐसे लोगों को कोई उत्तर नहीं देता, क्योंकि मुझे पता होता है कि उनमें बाजार में धन लगाने का साहस ही नहीं है। जब तक साहस नहीं करेंगे, अनिश्चितता को स्वीकार कर आगे नहीं बढ़ेंगे, तब तक निवेश पर अच्छी आय मिलने की आशा दुराशा ही रहेगी। मुझे यह भी समझ में आता है कि ऐसे प्रश्न पूछने वाले लोग या तो अपने धन से जीवन बीमा पॉलिसी खरीद लेंगे या फिर बैंक में फिक्सड डिपॉजिट यानि कि सावधि जमा बनवा लेंगे जो कि नि:शंक निवेश होते हैं। मैं तो उनको केवल एक ही बात कहता हूँ कि आप लोग बाजार में निवेश न करके ही अपने जीवन का सबसे बड़ा संकट उठा रहे हैं। - विवाह आदि आयोजनों में बहुत सारा धन व्यय करके दिखावा करना:
विवाह आदि माङ्गलिक अवसर भी हमारी मूर्खताओं के कारण अब किसी वित्तीय दुर्घटना से कम नहीं है और इसमें सबसे बड़े निर्णय हमारे अभिभावक और सगे सम्बंधी लेते हैं। परिवार पर अच्छे से अच्छा करने का दबाब तो रहता ही है। क्या आपको पता है कि हम भारतीय पूरे विश्व में वैवाहिक अवसरों पर सबसे अधिक खर्च करने वाले लोग हैं? यदि हम साधारण और अल्पव्ययसाध्य ढंग से विवाह कर लें तो समाज में हमारी प्रतिष्ठा और सम्पन्नता पर अंगुलियाँ उठने लगती हैं। हम मितव्ययी न होकर किसे क्या दिखाना या प्रमाणित करना चाहते हैं, यह हमें भी पता नहीं होता है। यदि बड़े व्यर्थ के व्यय हम रोक दें और वह धन नवदंपत्ति को उनका नया जीवन प्रारम्भ करने के लिये दे दी जाये, तो उससे वे अपने वित्तीय जीवन का श्रीगणेश भी अच्छे से कर सकते हैं।बड़ी कार: बड़ी कार खरीदना भी एक बहुत बड़ा दिखावा ही है, क्योंकि लोग केवल अपनी खोखली अभिरुचि और स्टेटस को दिखाने के लिये ही बड़ी कार खरीदते हैं। वास्तव में बड़ी कार की आवश्यकता हो तो ठीक है अन्यथा खरीद के पश्चात कार का दाम कम ही होता जाता है। आवश्यकता न होने पर बड़ी कार में निवेश ऐसे में मूर्खता ही है, ऋण ले कर खरीदना तो और मूर्खता है। - मुफ्त की सलाह:
हम लोग सोचते हैं कि वित्तीय सलाह मुफ्त या नि:शुल्क होती है। भारत में सबसे मौलिक समस्या यह है कि लोग सोचते हैं कि वित्तीय सलाह नि:शुल्क होती है। सच कहें तो यह सबसे बड़ी भ्रांति है। हम सोचते हैं कि घर बेचने वाला ब्रोकर, बीमा या वित्तीय उत्पाद बेचने वाला हमें मुफ्त में सलाह दे रहे हैं तो भ्रम में हैं। सच यह है कि हमें बेचकर वे अच्छा खासा कमीशन कमाते हैं और जिस वित्तीय सलाह को हम नि:शुल्क मानते हैं, हम उसका अच्छा खासा मूल्य चुकाते हैं। वस्तुत: हम उन लोगों का शिकार हो जाते हैं और वे अधिक कमीशन वाले वित्तीय उत्पाद हमें बेचकर अपना कमीशन बना लेते हैं।
इसका सर्वदा ध्यान रखें कि वित्तीय मंत्रणा उसी से करें, सलाह उसी की या उसकी भी लें जिसका आपके द्वारा खरीदे जाने वाले वित्तीय उत्पादों से कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष लाभ न हो रहा हो, जिसका कोई स्वार्थ न हो, जोकि वित्तीय सलाह देने के बाद कह सके कि आपकी जहाँ से मर्जी हो वहाँ से खरीद लें। ध्यान रखें कि वित्तीय सलाह कभी नि:शुल्क नहीं होती है, क्योंकि पैसा बनाना भी एक कला है और जो यह कला जानते हैं, प्रयोग करते ही हैं। यदि कोई वित्तीय मंत्र नि:शुल्क है तो ध्यान रखें कि उसमें दूजे के स्वार्थ सधने के उपाय भी हो सकते हैं। थोड़े से पैसे बचाने के चक्कर में अपने आप को मूर्ख न बनायें और न ही बनें।