Western Dharma Films are allegories of Sanātana Darśana;पश्चिमी दर्शन, फ़िल्म, साहित्य में सनातन दर्शन का संदर्भ मुख्यतया प्रायः बौद्ध दर्शन के रूप में मिलता है। सम्भवतः इसका कारण पश्चिमी अब्राहमिक धर्मों के ईश्वरदूत (prophet) के रूप में किसी एक व्यक्ति विशेष को देखने की प्रवृत्ति हो जिसे वे तथागत के रूप में देख इस दर्शन की ओर आकर्षित होते हों। परन्तु सत्य तो यह है कि बौद्ध दर्शन विस्तृत सनातन दर्शन का विरोधाभासी न होकर उस विशाल वटवृक्ष की एक विशेष शाखा ही है।
सनातन दर्शन तथा सिद्धांत परोक्ष रूप से अपने किञ्चित परिवर्तित रूपों में किस प्रकार आधुनिक दर्शन, सिद्धान्तों तथा साहित्य इत्यादि में अंतर्निहित हैं इसका अवलोकन तथा अध्ययन एक अत्यंत रोचक विषय है। पिछले लेखांश में हमने पश्चिमी दर्शन पर उपनिषदों के प्रत्यक्ष छाप होने के एक प्रसंग का अवलोकन किया। ऐसे अनेक प्रसंग हैं जिनमें पश्चिमी दर्शन पर सनातन दर्शन की छाप तो अमिट है परन्तु उनके ऐतिहासिक होने की पुष्टि अत्यंत कठिन है।
ऐसा ही एक दर्शन है — स्कॉटलैंड के प्रसिद्ध दार्शनिक डेविड ह्यूम का। ह्यूम के दार्शनिक सिद्धान्तों, विशेषतया पोटल सिद्धांत (bundle theory), आत्म—दर्शन, अनात्मा एवं इच्छा से सम्बंधित लेखों में सनातन दर्शन की अकाट्य छाप दिखती है परन्तु उनका किसी सनातन हिन्दू-बौद्ध दार्शनिक या किसी भारतीय के साथ सीधे सम्पर्क का तथ्य नहीं होने के कारण इस बात को स्थापित करना कठिन रहा है। स्वाभाविक है कि पश्चिमी दार्शनिक अध्ययनों में इन विचारों का श्रेय स्वतन्त्र रूप से ह्यूम को ही दिया जाता है।
कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान तथा दर्शन की प्रोफ़ेसर एलिसन गोपनिक ने वर्ष २००९ में ‘ह्यूम स्टडीज’ में प्रकाशित अपने एक लेख में यह तर्क दिया कि ह्यूम के A Treatise of Human Nature लिखने से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य एवं परिस्थितियाँ मिथ्या हैं। प्रो. गोपनिक के अध्ययन के अनुसार ह्यूम ने A Treatise of Human Nature की रचना स्कॉटलैंड में नहीं बल्कि फ़्रान्स में की और उन दिनों उनका ला फ़्लेच रॉयल कॉलेज के पुस्तकालय में जाना होता था, जो कि उन दिनों जेसुइट मिशनरियों की एक संस्था थी। ला फ़्लेच में ही चार्ल्स फ़्रान्स्वा डोलू नाम का एक मिशनरी रहता था जिसने विश्व के कई धर्मों का अध्ययन किया था तथा जो स्याम (थाईलैंड) के फ़्रान्सीसी दूतावास में भी रह चुका था। इसके अतिरिक्त डोलू एक अन्य मिशनरी इपोलीटो देसीडेरि का भी मित्र था जिसने पाँच वर्ष तिब्बत में बिताए थे। प्रो. गोपनिक ने इन ऐतिहासिक घटनाओं को जोड़ यह तर्क दिया कि ह्यूम के विचार स्वतन्त्र सोच की उत्पत्ति नहीं थे। मिशनरी चार्ल्स फ़्रान्स्वा डोलू के थेरवाद बौद्ध दर्शन का ज्ञान ही ह्यूम के लेखन का आधार था। अपने अध्ययन में प्रो. गोपनिक (http://alisongopnik.com/Papers_Alison/Gopnik_HumeStudies_withTOC.pdf) ह्यूम के अनेक पत्रों का भी उल्लेख करती हैं जिनसे ह्यूम के ला फ़्लेच में होने तथा उनके जेसुइट मिशनरियों से सम्पर्क में होने की पुष्टि होती है। अर्थात ह्यूम के प्रसिद्ध दार्शनिक विचार, जिनमें उन्होंने आत्म (self) के सत्तामीमांसा-विषयक वास्तविकता को नकारा, का आधार सदियों से स्थापित भारतीय दर्शन के शून्यता तथा बौद्ध दर्शन के अनत्ता ही थे। शब्दश: समानता तथा परोक्ष प्रतीत होते हुए ये विचार स्वतन्त्र नहीं परन्तु एक ही हैं, इस प्रकार के अध्ययन अल्प अवश्य हैं परन्तु निष्कर्ष सनातन दर्शनों की व्यापकता को ही दर्शाते हैं।
ऐतिहासिक तथ्यों को स्थापित करना तो दुष्कर कार्य है परन्तु आधुनिक युग में भी विचार किस प्रकार यात्रा कर विभिन्न रूप से विवेचित होकर स्वतन्त्र रूप में स्थापित हो जाते हैं इसका एक सुंदर उदाहरण रॉबर्ट राइट की २०१७ में प्रकाशित तथा उस वर्ष की सर्वाधिक विकृत पुस्तकों में एक Why Buddhism Is True: The Science and Philosophy of Meditation and Enlightenment में मिलता है। इस पुस्तक में उन्होंने बौद्ध दर्शन को विकासवादी मनोविज्ञान, जीव विज्ञान, दर्शन, तंत्रिका—विज्ञान (neuroscience) के अनेक वैज्ञानिक अध्ययनों तथा विपासना एवं ध्यान करने वालों के अनुभवों को एकत्रित कर लिखा।
इस बहुचर्चित पुस्तक में वैसे तो अनेक संदर्भ उल्लेखनीय हैं परन्तु अनुकृत हो परिवर्तित होते सिद्धान्तों के संदर्भ में १९९९ की मैट्रिक्स फ़िल्म से सम्बंधित एक रोचक तथ्य है। सनातन दर्शन से परिचित व्यक्ति को मैट्रिक्स फ़िल्म देखते हुए स्वतः ही उसमें अनेक दर्शनों के परोक्ष रूप से होने की अनुभूति होती है। ऐसा अनायास ही नहीं है। पश्चिमी दुनिया में ध्यान (meditation) का अभ्यास करने वाले समूहों में मैट्रिक्स को “धर्म मूवी (Dharma Movie)” के नाम से भी जाना जाता है।
अपनी पुस्तक में रॉबर्ट राइट लिखते हैं कि मैट्रिक्स फ़िल्म के निर्देशकों ने फ़िल्म के अभिनेता कीआनू रीव्स को जिन तीन पुस्तकों को पढ़ने का परामर्श दिया था, उनमें से एक थी – रॉबर्ट राइट की ही लिखी The Moral Animal: Evolutionary Psychology and Everyday Life. जिसकी चर्चा हम पिछले लेखांशों में कर चुके हैं। इस पर रॉबर्ट राइट स्वयं कहते हैं – “I’m not sure what kind of link the directors saw between my book and The Matrix. But I know what kind of link I see. Evolutionary psychology can be described in various ways, and here’s one way I had described it in my book: It is the study of how the human brain was designed—by natural selection—to mislead us, even enslave us.” और इस सोच को वह बौद्ध दर्शन की व्युत्पत्ति मानते हैं जिस पर उनकी नयी पुस्तक आधारित है और इसी विषय पर वह प्रिन्स्टन विश्वविद्यालय में अध्यापन भी करते रहे हैं। फ़िल्म के लाल एवं नीली औषधि वाले दृश्य को वह जीवन के बंधन—मायाजाल तथा अंतर्ज्ञान एवं स्वतन्त्रता के बीच द्वंद्व से प्रभावित मानते हैं। पुस्तक का एक अंश—
Morpheus, explains the situation to Neo: “You are a slave, Neo. Like everyone else, you were born into bondage, into a prison that you cannot taste or see or touch—a prison for your mind.” The prison is called the Matrix, but there’s no way to explain to Neo what the Matrix ultimately is. The only way to get the whole picture, says Morpheus, is “to see it for yourself.” He offers Neo two pills, a red one and a blue one. Neo can take the blue pill and return to his dream world, or take the red pill and break through the shroud of delusion. Neo chooses the red pill.
…Western Buddhists, long before they watched The Matrix, had become convinced that the world as they had once seen it was a kind of illusion—not an out-and-out hallucination but a seriously warped picture of reality that in turn warped their approach to life, with bad consequences for them and the people around them. Now they felt that, thanks to meditation and Buddhist philosophy, they were seeing things more clearly. Among these people, The Matrix seemed an apt allegory of the transition they’d undergone, and so became known as a “dharma movie.” The word dharma has several meanings, including the Buddha’s teachings and the path that Buddhists should tread in response to those teachings. In the wake of The Matrix, a new shorthand for “I follow the dharma” came into currency: “I took the red pill.” — सनातन दर्शन से Moral Animal से होता हुआ Matrix दर्शनों की यात्रा एवं परिवर्तन का स्वरूप। फ़िल्म के अनेक संवाद किस प्रकार सनातन दर्शन से प्रभावित हैं इसके लिए किसी संदर्भ की भी भला क्या आवश्यकता है ! यथा —
“Free your mind.”
“Matrix is a system. The system is our enemy.”
“Do not try and bend the spoon, that’s impossible. Instead, only try to realize the truth…there is no spoon. Then you’ll see that it is not the spoon that bends, it is only yourself.”
“Something is wrong with this world, you’ve known it all your life, you don’t know what it is. It’s like a splinter in your mind … driving you mad.”
यहाँ एक रोचक तथ्य यह भी है कि पश्चिमी दर्शन में एवं फ़िल्म या साहित्य में भी सनातन दर्शन का संदर्भ मुख्यतया प्रायः बौद्ध दर्शन के रूप में मिलता है। सम्भवतः इसका कारण पश्चिमी अब्राहमिक धर्मों के ईश्वरदूत (prophet) के रूप में किसी एक व्यक्ति विशेष को देखने की प्रवृत्ति हो जिसे वे तथागत के रूप में देख इस दर्शन की ओर आकर्षित होते हों। परन्तु सत्य तो यह है कि बौद्ध दर्शन विस्तृत सनातन दर्शन का विरोधाभासी न होकर उस विशाल वटवृक्ष की एक विशेष शाखा ही है।
रॉबर्ट राइट, जिन्होंने मात्र बौद्ध दर्शनों का ही अध्ययन किया है, इसी प्रकार की बात अपनी पुस्तक में कुछ इस प्रकार से लिखते हैं :
In Hindu thought, specifically within a Hindu school of thought known as Advaita Vedanta, there is the idea that the individual self or soul is actually just a part of what you might call a universal soul. To put the proposition in Hindu terminology: atman (the self or soul) is brahman (the universal soul). Now to say that atman is anything at all–brahman, whatever–is to say that atman exists in the first place. And the very birth of Buddhism, its distinct emergence within an otherwise Hindu milieu, is thought to lie largely in the denial that atman exists.
…the deepest meditative experienced had by Buddhists and the deepest meditative experiences had by Hindus in the Advaita Vedanta tradition are basically the same experience. There is a sense of dissolution of the bounds of self and an ensuing sense of continuity with the world out there. If you’re a Buddhist (at least, a Buddhist of the mainstream type), you’re encouraged to think of that as a continuity of emptiness; and if you’re a Hindu, you’re encouraged to think of it as a continuity of soul or spirit. For that matter, maybe some Abrahamic mystics–Christians, Jews, Muslims–who during contemplative practice feel a union with the divine are having somewhat the same experience as the Hindus and Buddhists, and interpreting it in a way that is closer to the Hindu than the Buddhist perspective. The core experiences remain the same, but the doctrinal articulation varies.
अर्थात, एकं सत् विप्रा: बहुधा वदन्ति।