Default Bias यथास्थिति पक्षपात पिछले कुछ महीनों से हाथ धोने, मुखावरण पहनने तथा अन्य व्यक्तियों से दूरी बनाए रखने के दिशा निर्देश हर समाज में दिए गए हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर जन समुदाय ने इसका पालन भी किया है। स्वास्थ्य हेतु दिये गये ये दिशानिर्देश वर्तमान महामारी के परे भी लाभकारी हैं। परंतु इनका ज्ञान होने पर भी क्या इस महामारी के अंत पश्चात सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन सम्भव है? क्या महामारी का अंत होने पर भी ये मानव स्वभाव में रच बस जायेंगे?
मानव स्वभाव एक रोचक मनोवैज्ञानिक विषय है जिसमें परिवर्तन विरले होता है। इस विषय में आधुनिक मनोविज्ञान में अनेक रोचक अध्ययन हुए हैं जिनका निष्कर्ष यही है कि मानव स्वभाव में दीर्घकालिक परिवर्तन अत्यंत कठिन है।
वर्ष १९९१ ग्रे. में अमेरिकी नेशनल कैंसर संस्थान ने स्वास्थ्य सम्बन्धी एक राष्ट्रीय अभियान चलाया। इस अभियान का लक्ष्य था फलों और भाजियों के उपयोग के लिए जनमानस को शिक्षित करना। अभियान लोगों को शिक्षित करने में अत्यंत सफल भी हुआ। सर्वेक्षण के अनुसार छः वर्षों में फलों और भाजियों के महत्त्व को समझने वालों की संख्या ७% से बढ़कर २०% हो गयी परंतु उनके उपभोग में कोई वृद्धि नहीं हुई। वर्ष २००७ में चलाए गए अन्य अभियान का परिणाम भी यही रहा। अनेक मनोवैज्ञानिक अध्ययन इस अवलोकन की पुष्टि करते हैं कि स्वास्थ्य अभियान अल्पकाल में लोगों को शिक्षित करने में तो सफल होते हैं परंतु वे लोगों के व्यवहार और जीवन शैली में दीर्घकालिक परिवर्तन कराने में बहुधा असफल होते हैं। उत्कृष्ट जीवन शैली, व्यायाम, भार नियंत्रण, हृदय रोग इत्यादि के बारे में शिक्षित होते हुए भी व्यक्ति स्वास्थ्य सम्बंधित निर्देशों को अपनी जीवन शैली में सम्मिलित नहीं कर पाते।
वर्ष २०१२ में कनाडा के स्वास्थ्य विभाग द्वारा कराए गए एक विस्तृत अध्ययन का इस संदर्भ में अवलोकन रोचक है। इस अध्ययन में पचास वर्ष से अधिक आयु के पाँच सहस्र से अधिक व्यक्तियों के धूम्रपान, शारीरिक व्यायाम, मद्यपान और आहार अभ्यासों का अवलोकन किया गया। इन व्यक्तियों का हृदयरोग, कैंसर, आघात, मधुमेह इत्यादि व्याधियों हेतु प्रारम्भिक उपचार किया गया था। इस अध्ययन में पाया गया कि ऐसी अवस्था के होते हुए भी अधिकतर लोगों के व्यवहार और जीवन शैली में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। व्याधि के प्राथमिक उपचार के उपरांत स्थिति की गम्भीरता से भलीभाँति परिचित होते हुए तथा जीवन शैली में परिवर्तन हेतु व्यावसायिक परामर्श के पश्चात भी लोगों के व्यवहार में कोई सार्थक परिवर्तन नहीं हुआ।
मनोविज्ञान में इसे Default Bias यथास्थिति पक्षपात या Status Quo Bias भी कहते हैं। व्यवहार परिवर्तन का सरल हल तो नहीं परंतु कुछ अवस्थाओं यथा समाज में अंगदान करने वालों की संख्या में वृद्धि करने के लिए व्यक्तियों से अंगदान करने के लिए सहमति लेने के स्थान पर अंगदान न करने हेतु सहमति देने का नियम कर देने पर वृद्धि हो जाती है परंतु स्वास्थ्य सम्बन्धी व्यक्तिगत परिवर्तनों में ऐसे हल सरल नहीं। सामूहिक स्वभाव में भले बलपूर्वक परिवर्तन किया जा सकता है, यथा जब तक कोई विशेष रूप से निर्देश न दे तब तक भोजनालय में मैदा से बने रोटी के स्थान पर आटे से बनी रोटी को देने का नियम बना देना या व्यञ्जन सूची में स्वास्थ्यपरक व्यंजनों को सूची में पहले रखना आदि। परंतु व्यक्तिगत स्वभाव में परिवर्तन जिससे व्यक्ति स्वयं ही स्वास्थ्यपरक व्यंजनों की माँग करे, अत्यंत कठिन है।
ऐसी अवस्था में जब विधिक बाध्यता समाप्त हो जाए तब भी हम कैसे इन नियमों का पालन करें?
कुछ हल नवीन होते हुए भी प्रभावी नहीं होते, यथा वर्ष २००९ में लोगों को स्थानक पर स्वचालित सीढ़ियों के स्थान पर सामान्य सीढ़ियों से चढ़ कर जाने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु एक प्रयोग हुआ। इसमें सीढ़ियों को इस प्रकार बनाया गया जिससे उन पर चलने पर संगीत बजता। अन्तर्जाल पर अत्यंत लोकप्रिय हुए इस प्रयोग का वास्तविक परिणाम यह हुआ कि आरम्भिक उत्साह के पश्चात पुनः सभी लोग स्वचालित सीढ़ियों से ही जाने लगे।
विगत वर्षों में स्वभाव में परिवर्तन के लिए कुछ प्रयोग लाभकारी होते प्रतीत हुए हैं जैसे वर्ष २०१८ में किए गए एक प्रयोग में प्रतिक्षण (Real-time) अवगत कराने से व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन देखा गया।
पर इन अध्ययनों से एक बात स्पष्ट है लोगों को शिक्षित करने से स्वभाव में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। इसके लिए एक साथ अनेक प्रकार के नियम, प्रोत्साहन तथा निरंतर उत्प्रेरण की आवश्यकता होगी, जो स्वस्थ वृत्तियों को प्रोत्साहित करते रहें; महामारी के समाप्त होने के पश्चात भी क्योंकि स्वभाव में परिवर्तन के लिए तो बारंबार यह कहा ही गया है जो आधुनिक मनोविज्ञान भी कह रहा है –
स्वभावो न उपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा । सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् ॥
अर्थात उपदेश देकर स्वभाव परिवर्तन नहीं किया जा सकता। पानी को अति गर्म करने पर भी, वह पुन: स्वभावानुसार शीतल हो ही जाता है ।
यस्स्वभावो हि यस्यास्ति स नित्यन्दुरतिक्रमः। श्वा यदि क्रियते राजा स किन्नाश्नात्युपानहम् ॥
जिसका जो स्वभाव होता है वह कभी टाला नहीं जा सकता । यदि कुत्ते को राजा बना दिया जाय तो क्या वह जूते नहीं चबायेगा?
तो हल क्या है?
सनातन हल तो है ही अपने पक्षपातों को देख उनके परे सोचने का –
सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि। प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति॥
इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ। तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ॥
सम्पूर्ण प्राणी प्रकृति को प्राप्त होते हैं। ज्ञानी महापुरुष भी अपनी प्रकृतिके अनुसार चेष्टा करता है। तो इसमें किसीका हठ क्या करेगा? सभी प्राणी अपनी प्रकृति अर्थात स्वभाव की ओर जा रहे हैं। इसमें मेरा या दूसरे का शासन क्या कर सकता है? अपने-अपने विषयों के सम्बंध में इंद्रियों को राग-द्वेष रहते ही हैं। मनुष्य को उनके वश में नहीं होना चाहिए क्योंकि वे मनुष्य के शत्रु हैं।