The New World [English Short Story]
New blood cells were puzzled themselves, they couldn’t explain the mystery of the blood donation to the old blood cells.
Sunset Sonata सूर्यास्त सोनाटा
… ओ, साँझ को बोने दो,
… गलते पर्वतों को जाने दो,
… साँझ के तूर्यों को बजने दो,
… धुँधलाते दिन को चमकने दो,
सारी धरती से
इस बार के विशेषाङ्क में हमने वैश्विक साहित्य से उन सम्वेदनाओं को अनुवादों के माध्यम से सँजोया है जो देश काल से परे सबको झङ्कृत करती हैं। एशिया, यूरोप, दोनों अमेरिका, अफ्रीका एवं ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपों से विविध कालखण्डों की ऐसी रचनायें प्रस्तुत हैं जिनमें मानवीय प्रेम, उत्साह, विलास एवं हताशा से उठती आशायें दिखती हैं।
दिन सदैव सूरज का
अरुणोदय हो रहा था। क्षितिज कांतिमान एवं पाटल हो चला था, मानो एक बहुत ही उज्ज्वल भविष्य का आगम बाँच रहा हो। मौसी मुझे अलिंद की ओर ले चलीं एवं शनै: शनै: उदित होते सूर्य की ओर इङ्गित कीं,“जानती हो? दिन सदैव सूरज का होता है।“
पुत्रियों के लिये छन्द
जब कि ये प्रिय कन्यायें पुष्पित सौंदर्य
दमित अभिलाषा और चिथड़ों के बीच
करतीं करघे पर नित निन्दित काम
पाने को अनिश्चित दरिद्र दीन आहार।
Wake उत्सवी अवसर
प्रेमी वही जो बहने दे जैसे जल जाने देता। प्रस्तुत कविता सम्भोग समय स्त्री मन की अपेक्षाओं को उपमाओं एवं अन्योक्ति शैली में अभिव्यक्ति देती है।
Ego Trap Narcissism आत्मप्रशंसा शत्रु : सनातन बोध – 59
सनातन दर्शन में आत्मश्लाघा, आत्मप्रेम, आत्मप्रवञ्चना इत्यादि को स्पष्ट रूप से मिथ्याभिमान तथा अविद्या कहा गया है। वहीं स्वाभिमान की भूरि भूरि प्रशंसा भी की गयी है तथा उसे सद्गुण कहा गया है। अर्थात दोनों का विभाजन स्पष्ट है।
Cotton Teal गिर्री
गिर्री भारत की वृक्ष पर रहने वाली बतखों में सबसे छोटी बतख है। इसे ग्राम-देहात में बाबा तरवा भी कहा जाता है। यह उड़ने के साथ-साथ डुबकी लगाने में भी निपुण होती है।
Muri muri hui hui मौन से भी मृदु
माओरी गीतों में युद्ध, प्रतिद्वंद्विता एवं उदात्त मानवीयता के आदिम भाव मिलते हैं। भावना एवं अभिव्यक्ति में उनकी साम्यता कुछ वैदिक स्वस्तियों से भी है। सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया, जीवन शरद शत जैसे काव्य भाव उनके यहाँ भी हैं यद्यपि आधुनिक काल की रचनाओं में मिलते हैं। उन्हें रचने वालों ने वेद पढ़े या नहीं, इस पर कोई सामग्री नहीं मिली।
धूप घमछहियाँ बारिश धीर समीर
पद्मश्री सम्मानित आचार्य सुभाष काक की कवितायें पढ़ना उनके बहुआयामी व्यक्तित्त्व के एक अनूठे पक्ष को उद्घाटित करता है। इन क्षणिकाओं में युग समाये हैं, शब्द संयम में जाने कितने भाष्य। लयमयी रचनाओं में जापानी हाइकू सा प्रभाव है जो प्रेक्षण एवं अनुभूतियों की सहस्र विमाओं में पसरा है।
Autumn शरद
श्वेत धनुतोरण के नीचे,
…
और मेरा हिय, निज दु:ख धर धीर प्रयास
जब कि वासन समस्त
विदीर्ण खण्ड खण्ड,
चलता है नङ्गे पाँव,
और हो कर अन्ध।