आज श्रावण पूर्णिमा है, वेदोद्धार का दिन। आज के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव रूप धारण कर दुष्ट शक्तियों के हाथ से वेदों को छुड़ा कर ब्रह्मा को सौंपा था। आज का दिन उपाकर्म है, विराम के पश्चात वेदाध्ययन का आरम्भ दिवस, यज्ञोपवीत परिवर्तन के साथ।
कथाओं एवं परम्पराओं पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है, उनकी मीमांसा की जा सकती है, उनसे लाभ-हानि, उनके गुण-दोष, परिवर्तन आदि पर अनन्त चर्चायें चलती रह सकती हैं किन्तु वर्तमान का सच तो सच है, उसकी उपेक्षा कर आगे नहीं बढ़ सकते। वर्तमान में स्थिति क्या है, क्या कुछ करना है, यह प्रत्येक वयस्क व्यक्ति स्वयं निर्धारित कर सकता है। उपाकर्म से बरबस ही उपनिषद शब्द पर ध्यान जाता है, शान्त चित्त विनम्र बैठ कर भीतर की शोधयात्रा उपनिषद गङ्गा समान है। उपाकर्म से ‘उपक्रम’ ध्यान में आता है, ‘उद्यम’ ध्यान में आता है, अङ्ग्रेजी में कहें तो Enterprise.
हिन्दी क्षेत्र कितना उपक्रमी है ? कुछ तथ्य, कुछ सचाइयाँ इतनी अधिक स्पष्ट होती हैं कि हम अभ्यस्त हो जाने के कारण कुछ नया करने की आवश्यकता भी नहीं समझ पाते। हम अन्धे हो जाते हैं। भ्रम कहें या कुछ अन्य, बड़ी ही विचित्र स्थिति हो जाती है । भ्रम की स्थिति में ही हम अपने आक्रोश, अपनी चिन्ताओं एवं अपने स्वार्थ; सब को वहाँ जोड़ देते हैं जहाँ से या तो कुछ नहीं मिलना या मिलना भी है तो इतना अल्प एवं इतने विलम्ब से कि उससे स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होना। सोचें तो कितनी बुद्धिमत्ता रही होगी उन लोगों ने जिन्हों ने उत्सर्जन एवं उपाकर्म जैसे विधान बनाये होंगे? विराम के पश्चात पुन: उपक्रम, अभ्यास के बीच से पुनर्भ्यास – उत्कृष्टता साधने के परोक्ष उपाय।
केन्या के मसाई मारा में एक बहुत बड़ा वन्यजीव अभ्यारण्य है । राजधानी नैरोबी का सोलह प्रतिशत भाग अपने में एक अभयारण्य को समोये हुये है। स्वाभाविक है कि जनता एवं वन्य जीवों के बीच ठनी रहती है। मसाई जन गौ जीवी हैं। उनका सब कुछ गौ केंद्रित है। उनके समक्ष सिंहों की समस्या सदैव से रही जो गायों को मार कर खा जाते थे। हिंस्र वन्य जीवन एवं ग्रामीण मनुष्य के बीच संघर्ष में एक स्थिति ऐसी आई कि सिंहों के विलुप्त होने का सङ्कट खड़ा हो गया। संरक्षण की आवश्यकता एवं पालित पशुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के दो पाटों के बीच पिसते मसाई जन रात रात भर जग कर पहरा देते एवं घूमते थे जिससे कि मनुष्य की गतिविधियों को भाँप सिंह बस्ती में न आयें तथा पशु बचे रहें किन्तु यह कोई बहुत अच्छी स्थिति तो नहीं थी। बारह वर्ष के एक बालक रिचर्ड जरेरे ने इस समस्या से छुटकारा पाने के लिये एक युक्ति खोजी – Lion Lights, सिंह दीप, सरल युक्ति जो सौर ऊर्जा से सञ्चालित थी। सिंह दीपों को पशुओं के बाड़े पर लगा दिया जाता है जो रात भर जलते बुझते रहते हैं। सिंह समझते हैं कि मनुष्य पहरा देते हुये भ्रमण कर रहे हैं तथा दूर रहते हैं।
आप सोचेंगे कि इसमें कौन सी बड़ी बात है ? बड़ी बातें दिखने में, लगने में लघु भी हो सकती हैं। वही इतनी स्पष्ट होने की सचाई कि कोई कुछ करे ही नहीं, हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। जब आप जानेंगे कि आज इस युक्ति का समस्त केन्या एवं अन्य अफ्रीकी देशों में भी सफलता पूर्वक उपयोग हिंस्र जंतुओं से बचाव हेतु किया जा रहा है, सरकारें प्रोत्साहित कर रही हैं, अनुदान मिल रहे हैं आदि इत्यादि; जब आप बचाव के कारण पशु सम्पदा में हानि की घटोत्तरी पर विचार करेंगे तब नवोन्मेष का महत्व समझ में आयेगा ।
हिन्दी क्षेत्र ने नवोन्मेष तज दिया है। न अभयारण्य हैं, न अरण्य किन्तु घड़रोज या नीलमृगों के उत्पात के कारण हजारों एकड़ की दलहन तिलहन भूमि पर अब दालें एवं सरसो नहीं उगाई जाती। ये दो सस्य पूँजी निर्माण की दृष्टि से किसानों के लिये बहुत महत्वपूर्ण हैं, साथ ही देश की आत्मनिर्भरता हेतु भी। आयात के आँकड़े भयावह हो चले हैं। एक ही सस्य की लगातार बुआई से भूमि की उत्पादकता पर विनाशकारी प्रभाव भी पड़ रहा है। इसी प्रकार अनेक क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ वानरों का उत्पात है जिस कारण फल, हरी वनस्पतियों एवं अन्य लाभदायक कृषि उपजों पर बहुत प्रभाव पड़ा है।
लघु दिखती समस्याओं से किसी प्रकार सामञ्जस्य बना निश्चिन्त हो जाने के पश्चात यदि आप से आज हानि की गणना करने को बताया जाय तो आप की आँखें चौंड़ी हो जायेंगी। बात वही है कि इतने अभ्यस्त हो गये हैं कि अन्धे हो गये हैं, जड़ हो गये हैं !
प्रश्न यह है कि इतना सब होने पर भी हिन्दी क्षेत्र से कोई रिचर्ड जरेरे क्यों नहीं होता ? लघु प्रश्न है। देश विदेश की राजनीति, क्रिकेट, सिनेमा, जाति उत्थान आदि, ढेर सारी बड़ी भारी समस्याओं के बीच से यह लघु प्रश्न चीख रहा है, आप उत्तर देंगे? क्या उत्तर देना आप की प्राथमिकता में है? उपाकर्म? उपक्रम??? नवोन्मेष ????
शीर्ष चित्र स्रोत :
https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/b/bd/Maasai-Mara-Typical-Scenery.JPG
By Bjørn Christian Tørrissen [CC BY-SA 3.0 (https://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0)], via Wikimedia Commons