कर्ट कॉब के मूल अङ्ग्रेजी लेख Look at the big picture, avoid groupthink, remember history का अनुवाद
अनुवादक : ललित कुमार
मेरे एक मित्र ने हाल ही में उल्लेखनीय रूप से महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में सोचने के लिये अपनी पद्धति को रेखाङ्कित किया: व्यापक दृष्टि रखें (look at the big picture), समूह-वैचारिकता से बचें (avoid groupthink), इतिहास की स्मृति रखें (remember history)।
प्रथमतः, व्यापक दृष्टि। सामान्य जन सामान्यतः अपनी दृष्टि को उस समुदाय या राष्ट्र अथवा कार्यक्षेत्र तक ही सीमित या संकीर्ण कर देते हैं जिसमें वे रहते या कार्य करते हैं। परन्तु, विषय चाहें जो भी हो, एक सन्दर्भ ऐसा सर्वदा रहता है जो शेष विश्व को और उसमें अन्तर्निहित चरित्रों तथा शक्तियों के आपसी कार्यकलापों को स्थानीय, क्षेत्रीय तथा वैश्विक स्तर पर अपने आप में समाहित करता है।
आइये, एक उदाहरण से इसे समझें (मेरे मित्र का उदाहरण नहीं है यह)। यदि मैं संयुक्त राज्य अमेरिका में अक्षय (renewable) ऊर्जा की स्थिति को जानना समझना चाहता हूँ, तो मैं निश्चित रूप से अन्य देशों में उस उद्योग से जुड़ी प्रत्येक बात जानना चाहूँगा – उनके नियामक संस्थान, नीति व्यवस्था सहित उस उद्योग की स्थिति, उद्योग की संरचना चाहे सार्वजनिक हो अथवा निजी या संयोजित, एवंं उनके अनुसंधान और विकास की स्थिति। मैं यह भी जानना चाहूँगा कि यह अक्षय (शब्द अनुवाद नवीकरणीय) ऊर्जा, ऊर्जा उपयोग की पूर्ण संकल्पना की प्रहेलिका में कहाँ और कैसे सटीक बैठती है, उदाहरण के लिये, ऊर्जा के अन्य पारम्परिक प्रतिस्पर्धी स्रोतों तथा नवीकरणीय ऊर्जा के विकास दर और उपभोग का तुलनात्मक अध्ययन। इसके अतिरिक्त, मैं इसके आनुषंगिक तकनीकों, यथा, बिजली के वाहनों , बिजली के एक बड़े नये उपभोक्ता के उदय और उन्हें उत्पादित करने वाले उद्योग के बारे में जानना चाहूँगा। मैं यहीं नहीं रुकूँगा, परंतु जो मैंने अभी तक रेखांकित किया है वह जाँच की सीमा की व्यापकता का सीमांकन करता है। वह सीमा, जिसके आगे जाने की मैं बात कर रहा हूँ।
तदुपरान्त, मैं समूह-वैचारिकता से बचने के लिये मीडिया में तथा परिवार के सदस्यों, मित्रों और सहकर्मियों द्वारा किए गए किसी भी प्रासंगिक दावों की जाँच करना चाहता हूँ, जिन पर केवल इसलिये विश्वास किया जाता है अथवा करना पड़ता है क्योंकि इसे दूसरों से सुना गया है तथा वह ‘दूसरा’ मेरा मित्र है, पारिवारिक सदस्य है, समाज में सम्मानित है, आदि-आदि। उदाहरण के लिये, यदि कोई दावा करता है कि 2030 में मानव समाज में सौर ऊर्जा, ऊर्जा उत्पादन तथा उपभोग का प्रमुख रूप होगी (और किसी ने किया भी है ), तो मैं इस तरह के दावे का आधार खोजना चाहूँगा, यदि कोई आधार है तो तथा यह भी देखना चाहूँगा कि उपभोग की सामयिक प्रवृत्ति क्या इसकी सम्भावना बताती है? कोई भी घटना केवल इसीलिये नहीं घटित होगी कि कुछ चतुरमना भविष्य में उसके घटने में विश्वास करते हैं।
और अन्ततः, मैं अमेरिका और विदेशों में नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग के इतिहास के बारे में कुछ जानना चाहूँगा। क्या उस इतिहास से भविष्य में क्या होगा, इसकी संभावना के बारे में मुझे पता चलता है? और अतीत में, ऊर्जा परिवर्तन के इतिहास के बारे में अपनी जानकारी के आधार पर – कोयला से लेकर तेल तक और फिर तेल से लेकर प्राकृतिक गैस तक, क्या नवीकरणीय ऊर्जा की गति के संक्रमण के बारे में कोई भी दृढ़कथन सम्भव है? निश्चिततः, भविष्य अनिश्चित है। लेकिन जब लोग आधारहीन और तथ्यहीन भविष्यकथन कहते हैं, तो हमें सतर्क और संशयात्मा होना चाहिये।
निस्सन्देह , ये कदम – व्यापक दृष्टि रखना, समूह वैचारिकता से बचना और इतिहास को स्मरण करना – समय, एकाग्रता और मीमांसा की माँग करते हैं। सामान्यतया हर विषय, जिससे हम दो-चार होते हैं, पर ऐसा कर पाना स्वाभाविक रूप से सम्भव नहीं है। अतः, हम सरल मार्ग अपनाते हैं। हम अपना ध्यान अपने पूर्वानुभूत प्रसङ्गोंं पर केन्द्रित करते हैं, हम अपनी स्मृति को कुरेदते हैं कि हमने मीडिया में पहले से क्या पढ़ा है और आस -पास के लोगों से, जो स्यात उस विषय के ज्ञाता माने जाते हैं, क्या सुना है। हम, स्वयं को बस तात्कालिक समस्या तक सीमित रखते हुये, और यह मानते हुये कि जितना भी हम जानते हैं इस समस्या या विषय के बारे में, समाधान के लिये अथवा अगले पग के लिये पर्याप्त है, किसी भी गम्भीर, विचारशील अध्ययन और चिन्तन – मनन से किनारा कर लेते हैं। (छोटे दैनन्दिन विषयों के लिये यह प्रक्रिया वास्तव में पर्याप्त हो सकती है।)
अपने स्वयं के अनुसंधान करने में कठिनाई के अलावा, एक के सामाजिक संरचना में मित्रों, परिवार जनों , सह कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों से अलग खड़े होने में भी कठिनाई होती है। प्रचलित मान्यताओं और विचारों के प्रतिकूल अपने विचार रखना, एक व्यक्ति को उपहासपात्र, उपेक्षित और यहां तक कि समाज बहिष्कृत भी कर सकता है। तथा सबसे बढ़कर यह कि, अधिकांश लोग यह नहीं मानना चाहते हैं कि उनके द्वारा उनके मानस में निर्मित उनका विश्व त्रुटिपूर्ण हो सकता है, स्यात भयावह ढंग से दोषपूर्ण भी। यदि आप प्रचलित मान्यताओं के विपरीत जाने वाले व्यक्ति हैं, तो आप संभवत: धन्यवाद के पात्र तो नहीं हीं होंगे।
सबसे बड़ी चुनौती तब आती है जब शोधोत्पन्न जानकारी हमारे विचारधाराओं के मूलभूत विश्वासों तथा सिद्धान्तों पर प्रश्नचिह्न खड़े करती है। यह संभावित रूप से एक संकट पैदा करता है जिसके लिये एक पूरी नई विश्वदृष्टि की स्वीकृति की आवश्यकता हो सकती है। यह नया वैश्विक दृष्टिकोण, यदि स्वीकार कर भी लिया जाता है तो, व्यावहारिक रूप से हम सभी के निकट संबंधों पर दबाव डाल सकता है, और हमारे सगे-सम्बन्धी, न सिर्फ आश्चर्यचकित हो सकते है बल्कि हमारे दृष्टिकोण में अचानक आये इस परिवर्तन से निराश भी हो सकते हैं।
बहुत ही कम लोग हैं जो इस तरह की स्वतंत्र जाँच में नियमित आधार पर संलग्न होते हुये अपने मानसिक संतुलन को बनाये रख सकते हैं। किसी के भी और किसी भी वैश्विक दृष्टिकोण के परिवर्तन की संभावना के लिये हर समय स्वागतयोग्य होना अथवा सक्षम होना उबाऊ, थकाऊ, चिन्तित करने वाला तथा अवसादग्रस्त करने वाला हो सकता है। मन की शांति बनाये रखने के लिये अधिकतर लोग उन विषयों की पूरी तरह से परीक्षा से बचते हैं जो उनको उनकी विश्वदृष्टि बदलने के लिये विवश कर देंं।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि हमारी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संस्कृति लोगों को व्यापक दृष्टि रखने से बचने, समूह के साथ मिलने एवं इतिहास को अनदेखा करने के लिये प्रोत्साहित करती है। यदि हम अपने विचार अपने आस-पास के लोगों के विचारों के अनुरूप करते हैं और तथ्यों की एक थकाऊ परीक्षा से बचते हैं तो मन की शांति बनाये रखना बहुत सरल होता है।
हालाँकि, हम संभवत: इस प्रवृत्ति का मूल्य उन कारकों के प्रति अंधता से चुकाते हैं जो उपेक्षित कर अग्रसर होने के पश्चात सिंहावलोकन में स्पष्टत: समस्या ही दिखते हैं। बहुतेरे लोग ऐसी स्थिति तक आ जाने पर ही, अंतत:, नई वास्तविकताओं के प्रति अपनी वैश्विक दृष्टि को समायोजित करते हैं परंतु तब तक, हानि हो चुकी होती है।