Navara Nivar नवरा
शोकनाशिनी, भारतप्पुष़ा की सहायिका नदी।
कितने सुन्दर नाम दिये केरल वालों ने ! क्यों नहीं देते भला, औषधीय गुणों वाले धान्य का उत्पादन इन्हीं नदियों एवं भर्ता इन्द्र की ही तो देन हैं। चित्तूर क्षेत्र में है शोकनाशिनी से सिञ्चित 125 वर्ष पुराना नवरा जाति के धान उत्पादन को समर्पित 18 एकड़ का एक विशाल खेत।
1994 में जब नारायणन उन्नी ने अपना संगणक व्यवसाय तज इस पैतृक भूमि पर खेती का निर्णय लिया तो उन्हें पता चला कि औषधीय गुणों वाले इस धान का बुवाई क्षेत्र मात्र 50 एकड़ रह गया था ! मात्र 60 दिनों में ही हो जाने वाले इस धान के शुद्ध बीज भी उपलब्ध नहीं थे। होते भी कैसे? कभी इसी केरल में देसी गोवंश के प्रजनन पर रोक लगा दी गयी थी, धान को कौन पूछता?
उन्नी ने लघु क्षेत्र में इस धान का ‘शुद्धिकरण’ आरम्भ किया।
इस कोमल धान हेतु उन्हें ऑर्गेनिक प्रमाण पत्र भी लेना, रासायनिक कीटनाशक प्रयोग में ला नहीं सकते थे, नीम सहित समस्त वानस्पतिक कीट नाशक अप्रभावी सिद्ध हुये। अन्तत: उन्हों ने तितलियों को पकड़ने वाले जाल से शस्य की दिन में दो बार ‘कंघी’ करने का उपाय लगाया जो प्रभावी सिद्ध हुआ। 2003 में आरम्भ हुई प्रमाणीकरण प्रक्रिया 2007 में फलीभूत हुई एवं नवरा धान को GI चिह्न भी मिला।
तीन पीढ़ियों के उद्यम ने सफलता प्राप्त की। नदियों से गङ्गा जी का स्मरण होता है, गङ्गा जी से भगीरथ का जिनके पूर्व जाने कितनी पीढ़ियाँ नदी को उतारने हेतु अपने को होम कर दीं। आधुनिक काल में, शोकनाशिनी के क्षेत्र का यह उद्योग भगीरथ की स्मृति दिला देता है।
नवरा धान का निरामयी औषधीय गुण मधुमेह, हृदयघात, तनाव आदि के युग में अनन्त सम्भावनायें लिये हुये है। धान की आनुवंशिकी मात्र 12 गुणसूत्रों जितनी है। आहार को ही औषधि एवं किचेन को रसवती रसोई बताने वाले भारत देश का पेट तो धान ही भरता है।
हम क्यों नहीं इस दिशा में आगे बढ़ते हैं कि धान आहार एवं धान निरामय एक हो जायें?
चरक सूत्र के औषधीय अन्नों में नीवार की चर्चा है। सम्भव है कि केरल का नवरा ही चरक का नीवार हो। तब तो परम्परा से भी यह धान ‘सिद्ध’ है। नीवार से निवारण ध्यान में आता है, रोग निवारण। कुछ ठोस किया जाना चाहिये।
समाचार स्रोत : ‘द हिन्दू’, 10.08.18