भारतीय नाम : जांघिल / जाङ्घिल, दोख, कङ्करी, कठसारङ्ग, सोनजङ्घा, काचाछ, चित्रबलाक, चाम ढोक, चित्रित महाबक, बृहद्बक (संस्कृत)
वैज्ञानिक नाम : Mycteria leucocephala
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Ciconiiformes
Family: Ciconiidae
Genus: Mycteria
Species: Leucocephala
Category: Waders
जनसँख्या : ह्रासमान
Population: Decreasing
संरक्षण स्थिति : सङ्कटासन्न
Conservation Status: NT (Near Threatened)
नीड़ निर्माण का समय : अगस्त से मार्च तक
Nesting Period: August to March
आकार : ९३ सेंटीमीटर / ४० इंच
Size: 93cm / 40in
प्रव्रजन : प्रव्रजक (स्थानिक)
Migratory Status: Migrant
दृश्यता : सामान्य (प्राय: दिखाई देने वाला)
Visibility: Common
लैङ्गिक द्विरूपता : समरूप
Sexes: Alike
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची : ४
Wild Life Schedule: IV
भोजन : मछली, मेंढक, घोंघा आदि।
Diet: Fish, Frog, Snails etc.
तथ्य : जांघिल का जीवनकाल २०-३० वर्ष का होता है। ये नीड़ का निर्माण प्राय: उपनिवेश रूप में करते हैं। अन्य बगुलों और पेलिकन के साथ भी नीड़ निर्माण कर लेते हैं। बाघ, लकड़बग्घा, तेंदुआ, घड़ियाल, मानव आदि इनकी घटती संख्या के बड़े कारण हैं।
अभिजान एवं रङ्ग-रूप : जांघिल हमारे यहाँ का प्रसिद्ध पक्षी है जिसे जलाशयों के किनारे लघु समूहोंं में देखा जा सकता है। मस्तक, ग्रीवा और शरीर श्वेत, वक्षस्थल पर एक चौड़ी काली पट्टी, डैने काले, छोटे पंख काले और श्वेत तथा बड़े पंख पाटल रंग के होते हैंं। पूँछ काली, चोंच का रंग नारंगी पीला तथा जड़ के पास सिलेटी, बच्चों का रंग भूरा होता है।
निवास : इसे पर्वत, मरुस्थल एवं सघन वन प्रदेश आदि में रहना नहीं भाता है। यह दिन में जल-थल पर और रात्रि में जलाशयों के निकट वृक्षों पर रहता है। यह हमारे देश का बारहमासी पक्षी है जो देश से बाहर नहीं जाता है परन्तु स्थानिक प्रव्रजन अवश्य करता है। यह प्राय: छिछले जलाशयों में अपनी आधी चोंच जल सतह में डालकर खड़ा रहता है और जैसे ही कोई मछली, मेढक, घोंघा आदि पकड़ में आये उसे खा लेता है। उदर पूर्ति के पश्चात भी यह मध्याह्न में प्राय: पानी में खड़े-खड़े ऊँघता रहता है।
वितरण : जांघिल एशिया के मैदानी भागों में पाया जाता है। इनमें ऋतु अनुसार स्थानिक प्रव्रजन देखा गया है। यह भारत सहित श्रीलंका, चीन, वियतनाम आदि देशों में पाया जाता है।
प्रजनन काल तथा नीड़ निर्माण : इसके प्रजनन का समय अगस्त से मार्च तक होता है। इस समय ये ९० से १०० तक के समूह में पास पास के ६-७ वृक्षों पर अपना नीड़ निर्माण करते हैं। इनके नीड़ जलाशयों के निकट के वृक्षों पर होते हैं। ये तनु एवं सूखी शाखाओं पर मचान जैसा नीड़ निर्माण कर लेते हैं। मादा एक बार में २-४ श्वेत अण्डे देती है जिन पर गाढ़ी भूरी चित्तियाँ और धब्बे होते हैं। अण्डों का आकार २.७५*१.८५ इंच तक होता है।