भारतीय तथा अन्य नाम
संस्कृत : पुष्पंधय
हिन्दी-भोजपुरी : शकरखोरा, फुल्सुँघनी, जुगजुगी, फुलचुखी
नेपाली : कालोबुङ्गेचरा
आसामी : সেন্দূৰীপিঠীয়া মৌ-পিয়া
बाङ्ग्ला : নীলটুনি
गुजराती : જાંબલી શક્કરખરો
मराठी : जांभळा सूर्यपक्षी, जांभळा शिंजीर, चुमका, फुलचुखी
कन्नड़ : ನೇರಳೆ ಸೂರಕ್ಕಿ
तमिळ : ஊதாத் தேன்சிட்டு
मळयाळम : കറുപ്പൻ തേൻകിളി
आङ्ल : Purple sunbird, Cinnyris asiaticus
वैज्ञानिक नाम (Zoological Name) : Cinnyris asiaticus
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Passeriformes
Family: Nectariniidae
Genus: Cinnyris
Species: C. asiaticus
गण-जाति : यष्टिवासी
Clade: Perching Bird
जनसङ्ख्या : स्थिर
Population: Stable
संरक्षण स्थिति (IUCN) : सङ्कट-मुक्त
Conservation Status (IUCN): LC (Least Concern)
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची : ४
Wildlife Schedule: IV
नीड़-काल : मार्च से जून तक (कुछ स्थानों पर जनवरी से अगस्त तक भी)
Nesting Period: March to June (January to August in some regions)
आकार : लगभग ४ इंच
Size: 4 in
प्रव्रजन स्थिति : अनुवासी
Migratory Status: Resident
दृश्यता : सामान्य (प्राय: दृष्टिगोचर होने वाला)
Visibility: Common
लैङ्गिक द्विरूपता : उपस्थित (नर और मादा भिन्न)
Sexual Dimorphism: Dimorphic
भोजन : मुख्यत: पराग, कीड़े-मकोड़े आदि।
Diet: Nectar, Insects.
अभिज्ञान एवं रङ्ग-रूप
शकरखोरा एक छोटी सी सुन्दर चिड़िया है, जो हमारे खेतों व पुष्प-उद्यानों में इधर-उधर उछलती फुदकती, फूलों का रस चूसते प्राय: दिखाई पड़ जाती है। इसके मादा का पृष्ठ भाग भूरा और निचला पीत वर्ण लिए होता है। जबकि नर का सिर और पृष्ठ का आंशिक भाग भूरा व शेष कल्छौंह नील वर्ण का होता है। शीतकाल में नर का वर्ण जनित अभिज्ञान भी मादा समरूप ही हो जाता है, बस चोंच से लेकर उदर तक एक गहन नीललोहित वर्ण की पट्टी आ जाती है (इस प्रकार के पंखों को Eclipse Plumage कहते हैं) । प्रजनन काल में नर का वर्ण अभिज्ञान अति सुन्दर, कान्तिमान नील व नीललोहित हो जाता है। इनकी चोंच कृष्ण वर्ण की, लम्बी, नीचे की ओर झुकी हुई, नेत्र कृष्ण वर्ण के पश्चपाद (पञ्जे) भी कृष्ण वर्ण के होते हैं।
शकरखोरा पुष्पों में प्राकृतिक परागण करने वाला पक्षी है। यह जब एक पुष्प में अपना सिर पराग के लिए डालता है तो उस पर बहुत से परागकण सट जाते हैं। जब यह यही क्रिया दूसरे पुष्प पर करता है तो पूर्व में लगे परागकण उस पर पहुँचा देता है।
निवास
शकरखोरा भारत का बारहमासी पक्षी है, जो सम्पूर्ण भारत में सुदूर दक्षिण से हिमालय में ५००० फीट तक की ऊँचाई तक पाया जाता है। वर्ण एवं आकार में किञ्चित भिन्नता के साथ इसकी ३ प्रजातियाँ पायी जाती हैं परन्तु Cinnyris asiaticus ही सर्वाधिक पाई जाने वाली प्रजाति है।
वितरण
शकरखोरा भारत, भारतीय उपमहाद्वीप के पाकिस्तान, बाङ्ग्लादेश, श्रीलङ्का और म्यान्मार देशों में भी पाया जाता है।
नीड़-निर्माण एवं प्रजनन
शकरखोरा का प्रजनन काल मार्च से जून तक होता है परन्तु क्षेत्रीय विविधता अनुसार जनवरी से अगस्त तक भी देखा गया है। इनके नीड झाड़ियों में ३-४ फीट की ऊँचाई पर प्लवन करते हुए मिलते हैं। इनके नीड़ अण्डाकार होते हैं। जिन्हें ये कृश तृण, तन्तुओं, पत्तियों और मकड़ी के जालों से बनाते हैं। मादा शकरखोरा एक बार में २-३ अण्डे देती है तथा एक प्रजनन चक्र में २ बार तक अण्डे दे सकती है। अण्डों का वर्ण धूसर श्वेत या तनु बादामी हो सकता है। अण्डों का आकार लगभग ०.६४ * ०.४६ इञ्च तक होता है।
सम्पादकीय टिप्पणी
संस्कृत साहित्य में इसके अन्य नाम हैं – मधुकर, भृङ्गरोल, मधुपखग।
मदोत्कटै मधुकरै: भ्रमरश्चैव महालसै:। उपगीत वनान्तानि किन्नरैश्च क्वचित् क्वचित् ॥ (वायुपुराण, ३६.५)
पश्य द्रोणप्रमाणानि लम्बमानानि लक्ष्मण । चितानि चित्रकूटेऽस्मिन् मधूनि मधुपै: खगै:॥ (रामायण, अयोध्याकाण्ड, गोर्रेसिओ ५६.११)
Very informative
बेहद सटीक और रोचक जानकारी से भरपूर लेख।
कुछ भी अछूता नहीं रहा हमेशा की तरह।
धन्यवाद
Very informative
Birds to देखते hain par Naam pata nhi hote pR aapki is prakar k artiicles se bahut sahayta milti hai.
Keep it up