Do educated Muslims ever wonder why Muslims fight with every religion around the world?
This was a question on Quora. Here is my reply which i put on my blog.
— Maria Wirth
किसी ने पूछा — “क्या शिक्षित मुसलमानों ने कभी सोचा है कि मुसलमान दुनिया भर में हर मजहब के साथ क्यों लड़ते हैं?”
मुसलमान सकल विश्व के हर मजहब के साथ युद्धरत नहीं हैं, क्योंकि किसी भी मजहब या विचारधारा से युद्ध करने के लिये बौद्धिकता की आवश्यकता होती है। मुसलमान ऐसा नहीं करते हैं। वे बिना किसी मीमांसा के अन्य सभी मजहबों को गलत घोषित कर देते हैं। इस संबंध में, मुसलमान और ईसाई बहुत समान हैं।
वे ऐसा क्यों करते हैं?
क्योंकि उनका मजहबी अथवा पान्थिक सिद्धान्त ऐसा कहता है और वे इसे अक्षरशः मानते हैं।
अब यहाँ उपरोक्त प्रश्न प्रासंगिक है। पढ़े-लिखे मुसलमानों को कभी आश्चर्य होता है कि वे सब बातें, जिनपर कि उन्हें विश्वास करने के लिए कहा गया है, सच हैं क्या?
खैर, सभी पढ़े-लिखे व्यक्ति एक जैसे नहीं होते। लेकिन वे सब, जो लोग प्रश्न पूछते हैं, स्यात् सोचने लगेंगे कि क्या वह सब, जोकि उन्हें धार्मिक रुप से कक्षा में क्या पढ़ाया गया है, सच है।
ऐसा ही उन ईसाइयों के साथ होता है जो प्रश्न पूछते हैं। उनमें से अधिकांश ने ईसाई धर्म छोड़ दिया है या अब मात्र “त्योहारी ईसाई” ही बन कर रह गए हैं, अपने सांस्कृतिक बंधनों से बंधे हुए।
यहाँ कुछ प्रश्न हैं जो शिक्षित मुसलमानों को पूछना चाहिए —
- क्या यह सच है कि इस विशाल ब्रह्मांड का निर्माता उन सभी को सदैव के लिए नर्क की आग में भेजता है जो इस्लाम को स्वीकार नहीं करते हैं (कुरान 98.6) ?
- क्या यह सच है कि काफिरों को मारने पर एक मुसलमान को स्वर्ग में उच्च पद प्राप्त होगा (कुरान 4.95/96) ?
- क्या यह सच है कि ब्रह्मांड के निर्माता ने लगभग 1400 साल पहले केवल एक व्यक्ति, मोहम्मद को सच्चाई का खुलासा किया था (कुरान 47/2) ?
और भी बहुत से प्रश्न हैं, कोई मन्थन करना आरम्भ तो करे।
इस प्रकार का आत्ममन्थन स्यात् उथल-पुथल का कारण बनता है, यही कारण है कि कई उच्च शिक्षित व्यक्ति अपने विश्वास के ऊपर मन्थन करना नहीं पसंद करते हैं।
उदाहरणार्थ, मैंने एक बार एक हिजाब धारण करनेवाले पोस्ट-डॉक्टोरल शोध विद्वान से पूछा क्या वह मानती है कि स्वामी विवेकानंद जैसे उत्कृष्ट हिंदुओं को भी अनन्त काल के लिए नरकाग्नि में डाल दिया जाएगा? मैंने उससे यह भी कहा कि जिस धर्म में मैं पली-बढ़ी हूं, वह इस्लाम जैसा ही दृष्टिकोण रखता है, लेकिन मैं अब उसे नहीं मानती।
उसका सीधा एकमात्र प्रत्युत्तर था: “अल्लाह सबसे अच्छा जानता है।”
सम्पादकीय टिपण्णी:
प्रस्तुत आलेख, श्रीमती मारिया विर्थ जी के द्वारा उनके ब्लॉग पर लिखा गए आङ्गल लेख का हिन्दी अनुवाद है। जो अगस्त ०४, २०२१ को उन्होंने लिखा है। अनुवाद श्री ललित कुमार जी ने किया है।