टिटिहरी जो आकाश पाँव पर उठा लेती है ! भारत में इसको बहुधा वर्षा ऋतु की कई मान्यताओं से जोड़ा जाता है। इस बार मानसून, वर्षा ऋतु के आगमन पर आजाद सिंह की अवधी चिरइया शृंखला में टिटिहरी का परिचय।
हिंदी नाम: टिटिहरी, टिटोरी, टिट्टिभ, मडिमुख टिट्टिभक
वैज्ञानिक नाम: Vanellus indicus
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Charadriiformes
Family: Charadriidae
Genus: Vanellus
Species: Indicus
श्रेणी: बगुला
Category: Wader
जनसङ्ख्या: अज्ञात
Population: Unknown
संरक्षण स्थिति: सङ्कटमुक्त
Conservation Status: Least Concern (LC)
प्रवासीय स्थिति: प्रवासी
Migratory Status: Resident
दृश्यता: सुलभ
Visibility: Common
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची: ४
Wildlife Schedule: IV
आकार: लगभग १३ इंच
Size: 13 in (approx.)
लैङ्गिक द्विरूपता: अनुपस्थित
Sexes: Alike
भोजन: कीट-पतंगे, छोटे घोंघे आदि।
Diet: Insects, Snails etc.
प्रजनन काल: मार्च से अगस्त तक।
पहचान एवं रंग-रूप: टिटिहरी के नर एवं मादा एकरूप होते हैं। लम्बाई १३ इंच। सिर, गला एवं वक्ष का ऊपरी भाग काले रंग का, आँख के पीछे से एक श्वेत चौड़ी पट्टी सिर के पार्श्व से होती हुई पेट के श्वेत भाग में मिलती है। पीठ का रंग भूरा, ताम्बे के रंग की झलक के साथ। काले डैनों पर श्वेत धारी। पूँछ श्वेत, आँख के आगे का बढ़ा हुआ भाग लाल रंग का, आँख ललछौंह भूरी। चोंच लाल जिसका आगे का नुकीला भाग काला, टाँगें चटक पीली परन्तु बच्चों का सिर भूरा एवं गला श्वेत होता है।
निवास: यह यहाँ की बारहमासी चिड़िया है जो लगभग हर जलाशय, नदी, पोखर आदि के किनारे टहलती हुई पूरे भारत में दिख जाती है। यह पानी के किनारे बहुत तीव्र गति से आहार ढूँँढ़ते दौड़ती रहती है। मानव बस्ती के निकट के पोखरों आदि में प्राय: बहुत ही निकट से दिख जाती है एवं जब इसके अण्डे या बच्चे पास होते हैं तो कोलाहल करते हुए डराकर भगाने का प्रयास करती है।
वितरण: यह हिमालय की ६००० फुट की ऊँचाई से लेकर पूरे भारतवर्ष में दिखाई देती है। भारत के अतिरिक्त प्राची में सुमात्रा, जावा आदि द्वीपों तक एवं पश्चिम में पाकिस्तान, अफगानिस्तान से लेकर ईरान तक पाई जाती है।
प्रजनन काल तथा घोंसला: मार्च से अगस्त के बीच में इसके युगनद्ध होने का समय होता है। उस समय मादा बालू में या खुले क्षेत्र में किसी छिछले गड्ढे में ४ अण्डे देती है जो गाढ़ी भूरी चित्तियों सहित अल्प भूरे रंग के होते हैं। अण्डों का आकार लगभग १.६५ * १.२ इंच का होता है।
सम्पादकीय टिप्पणी
भारत में लोक मान्यता रही है कि टिटिहरी एक पाँव ऊपर (आकाश) की दिशा में कर निद्रा लेती है। बहुधा व्यंग्य रूप में किसी व्यक्ति के लिए कह दिया जाता है ‘जैसे एक पाँव पर आकाश उठा रखा है!’। लोक में टिटिहरी को वर्षा ऋतु से सम्बद्ध किया गया है। इसके, ऊँचे खुले स्थान पर, अंडे देने को अच्छी वर्षा के संकेत के रूप में जाना जाता है। वर्षा ऋतु में इसका विचरण बढ़ जाता है एवं इसकी ध्वनि अधिक सुनाई पड़ने लगती है। पूरब में इसकी बोली सुनाई देने पर आँगन में पानी गिराने की प्रथा है, मान्यता है कि ऐसा न करने पर सूखा पड़ता है।
अपने अण्डे बच्चों की रक्षा के प्रति अति आग्रह होने के कारण संस्कृत साहित्य में इसे ‘अण्डीरक‘ एवं ‘अण्डुक‘ भी कहा गया। एक या दोनों पाँवों पर खड़े ही सोने की प्रवृत्ति के कारण इसका नाम ‘उत्पादशयन‘ पड़ा। ‘उत्’ का अर्थ ऊपर करने की त्रुटि के कारण कालान्तर में आकाश की दिशा में पाँव कर पीठ के बल सोने की भ्रामक मान्यता ने घर कर लिया :
उत्क्षिप्य टिट्टिभ: पादावास्ते भङ्गभयाद्दिव:।
– पञ्चतन्त्र
महाभारत में अयोग्य आतुर व्यक्ति के बारम्बार निवेदन की तुलना टिट्टिभ से कर राजा से उसकी उपेक्षा करने को कहा गया है :
टिट्टिभं तमनुपेक्षेत वाशमानमिवातुरम्। लोकविद्वेषमापन्नो निष्फलं प्रतिपद्यते ॥
कटु बोली के कारण इसे ‘कटुक्बाण‘ भी कहा गया, पीले पाँवों के कारण ‘पीतपाद‘।
(स्रोत : ‘संंस्कृत साहित्य में पक्षी’, दवे)