कभी आप ने सोचा कि दूरी, तौल एवं समय के दैनिक मापन में क्रमश: जिन मीटर, किलोग्राम एवं सेकण्ड आदि का प्रयोग होता है, उन्हें बनाया किसने? या उनकी परिशुद्धता वैश्विक स्तर पर कैसे सुनिश्चित की जाती है कि चाहे किलो भारत का हो या जापान का, एक समान द्रव्य की मात्रा रखें? एक मीटर कपड़ा आप यहाँ लें या जावा में, समान ही माप मिले?
आज एस.आई. (système international de mesure) या मीटरिक माप प्रणाली में इन तीनों एवं ताप के मापन की इकाई सहित कुल सात ‘मूल’ इकाइयाँ हैं। अन्य हैं केण्डिला, मोल एवं विद्युत धारा मापन का एम्पियर। विश्व की अन्य सभी इकाइयाँ इन्हीं सात के विविध संयोजनों से बनती हैं यथा आप के किसी मशीन का हॉर्स पावर (मीटरिक) = 735.5 वाट
वाट = जूल/सेकण्ड = न्यूटन-मीटर/सेकण्ड = (किलोग्राम-मीटर/सेकण्ड2)-मीटर/सेकण्ड।
मापन इकाइयों का इतिहास पुराना एवं विविध है, हम उस पर नहीं जायेंगे। इतना समझिये कि यूरोपीय औपनिवेशिक अभियानों के वैश्विक प्रसार एवं उनके विस्तार के फलस्वरूप माप तौल की जो इकाइयाँ वैश्विक स्तर पर स्वीकृत हुईं उनके मूल में यूरोपीय वर्चस्व ही है।
उदाहरण हेतु देखें तो मीटर की परिभाषा इस प्रकार थी कि विषुवत वृत्त से उत्तरी ध्रुव तक की पृथ्वी के उस परिधि अंश की माप का एक करोड़वाँ भाग जिस पर पेरिस पड़ता हो। पेरिस नगर की अनिवार्यता पर ध्यान दें। इसी प्रकार किलोग्राम प्लेटिनम इरीडियम मिश्र धातु से बने उस अंतर्राष्ट्रीय प्रारूप (Le Grand K) का द्रव्यमान है जो अंतर्राष्ट्रीय वाट माप संस्था द्वारा तीन तालों में फ्रांस के सेव्रेस नामक नगर में रखा गया है। जिस सेकण्ड को पृथ्वी पर दिन के (24*6०*60) वें भाग के रूप में बताया गया था किन्तु पाया गया कि विविध गतियों के कारण दिन का मान स्थिर नहीं है।
शनै: शनै: प्रत्यक्षत: भौतिक पदार्थों के परिवर्तनीय स्वभाव के कारणों से इस बात की आवश्यकता का अनुभव हुआ कि इन इकाइयों को इस प्रकार परिभाषित किया जाय कि उसकी निर्भरता किसी भौतिक पदार्थ या स्थान पर न रहे। इस हेतु भौतिक स्थिराङ्कों का आश्रय लिया गया।
सेकण्ड को शून्य केल्विन ताप पर सीजियम-133 के परमाणु द्वारा दो अतिसूक्ष्म मूल स्थितियों के बीच विकिरण की 9192631770 आवर्त्त अवधियों के तुल्य निश्चित किया गया। मीटर को प्रकाश के वेग से परिभाषित किया गया कि निर्वात में प्रकाश द्वारा 1 / 299792458 सेकण्ड में चली गयी दूरी एक मीटर है।
किलोग्राम रह गया था। गत 16 नवम्बर को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किलोग्राम के साथ साथ अन्य तीन मूल इकाइयों को भी भौतिक स्थिराङ्कों से जोड़ कर समस्त सात मूल इकाइयों को किसी भी स्थान विशेष के प्रारूप या परिभाषा से मुक्त करने का निर्णय लिया गया अर्थात ये इकाइयाँ अब वस्तुत: वैश्विक हो जायेंगी, दिक्काल निरपेक्ष। नई परिभाषायें आगामी विश्व मापविज्ञान दिवस 20 मई 2019 ग्रे. से लागू हो जायेंगी। किलोग्राम की परिभाषा का आधार होगा – प्लाङ्क स्थिराङ्क।
ऐसा नहीं है कि मीटरिक प्रणाली को वैश्विक मान्यता सरलता से मिल गई। विविध देशों में इसके लागू होने का अपना इतिहास रहा है। आज भी अपने ही देश में मीटर के स्थान पर फीट अधिक प्रचलित है, भवन निर्माण में वर्गफुट/फीट ही अधिक प्रचलित है किन्तु विधिक रूप से मीटरिक प्रणाली को ही मान्यता है। अमेरिका एवं कुछ अन्य समृद्ध या औपनिवेशिक इतिहास वाले देशों में तो आज भी किलोग्राम के स्थान पर पाउण्ड, औंस इत्यादि प्रचलित हैं जिनके अपने सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं सुविधा सम्बंधित कारण हैं। अमेरिका में तो इन प्रणालियों को लेकर व्यंग्यचित्र भी बनते हैं। तब भी विश्व में आज मीटरिक प्रणाली सर्वाधिक प्रचलित है तथा भविष्य भी इसी का है।
देखें तो ऐसा इस प्रणाली के किसी दारुण औपनिवेशिक इतिहास से न जुड़े के कारण भी है तथा अब इसकी स्वतन्त्र भौतिक स्थिराङ्क आधारित मानक परिभाषायें उनके श्रेष्ठताबोध को भी तनु करेंगी।
मापन से तो नहीं किन्तु देशान्तर सापेक्ष समय निर्धारण में शून्य देशान्तर की स्थिति भी अपने भीतर औपनिवेशिक श्रेष्ठता का नाभिक रखे है। पृथ्वी द्वारा अक्षीय घूर्णन से सम्बंधित होने के कारण विषुवत वृत्त एवं सापेक्ष अक्षांशों में परिवर्तन में किसी देश की नहीं चलनी किन्तु पृथ्वी की अपनी धुरी पर भ्रमण गति के कारण होने वाले समय-दिनाङ्क-क्षेत्र परिवर्तन जिस शून्य देशांतर के सापेक्ष स्थिर किये जायें, उसके निर्णय में कभी रही ब्रिटिश श्रेष्ठता के कारण भी हैं। कहने को तो अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा (शून्य देशान्तर से 180 अंश) पर न्यूनतम स्थल भाग पड़ते हैं तथा जलीय भाग सर्वाधिक परन्तु विकसित, समृद्ध एवं शक्तिशाली देश के गुण कैसे अन्यों पर भारी पड़ते हैं, यह एक उदाहरण है। शून्य देशांतर ब्रिटेन के ग्रीनविच से जाता है।
क्या आप ने कभी इस सम्भावना पर विचार किया है कि पुराने समय में शून्य देशान्तर रेखा भिन्न रही होगी? इस पर कि भारत के गणित ज्योतिष के उन्नत काल में कभी मुख्य देशान्तर उज्जैन से जाता हुआ माना जाता था तथा उसका विषुवत वृत्त से मिलन बिन्दु लङ्का? आर्यभट, भास्कर, वराहमिहिर आदि का अध्ययन करें न !