भारतीय तथा अन्य नाम
हिन्दी : बड़ा किलकिला, तुन्नक, बदामी कौड़ील्ला
बांग्ला : মেঘহও মাছরাঙা, গুরিয়াল
गुजराती : ઢોંક ચાંચ કલકલિયો
मराठी : घोंगी खण्ड्या, घोंगी धीवर, बलाकचोच खण्ड्या, बलाकचोच धीवर
तमिळ : தடித்த அலகு மீன்கொத்தி
मळयाळम : കാക്ക മീൻകൊത്തി
सिंहली : මහ පිලිහුඩුවා
वैज्ञानिक नाम (Zoological Name) : Pelargopsis capensis / Halcyon capensis
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Coraciiformes
Family: Alcedinidae
Genus: Pelargopsis
Species: capensis
Category: Pearching birds
जनसङ्ख्या : ह्रासमान
Population: Decreasing
संरक्षण स्थिति (IUCN) : सङ्कट-मुक्त
Conservation Status (IUCN): LC (Least Concern)
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची : ४
Wildlife Schedule: IV
नीड़-काल : जनवरी से जुलाई तक।
Nesting Period: January to July.
आकार : लगभग १४ इंच
Size: 14 in
प्रव्रजन स्थिति : अनुवासी
Migratory Status: Resident
दृश्यता : सामान्य (प्राय: दृष्टिगोचर होने वाला)
Visibility: Common
लैङ्गिक द्विरूपता : अनुपस्थित (नर और मादा समरूप)
Sexual Dimorphism: Not Present (Alike)
भोजन : मछली, मेढक, चूहे, केंकड़े। यदा कदा पक्षियों के छोटे बच्चे और अण्डे आदि।
Diet: Fish, frogs, mice, crabs. Occasionally eats eggs and baby birds.
अभिज्ञान एवं रङ्ग-रूप
यह १४ इंच आकार का अपेक्षतया बहुत बड़ा किलकिला है, इसलिए इसे बड़ा किलकिला कहते हैं। यह एक वृक्षीय किलकिला है जो किसी जलस्रोत के पास वृक्षों पर बैठा दिखाई पड़ सकता है।
इसके पंख और पूँछ गाढ़े नीले रंग के, सिर जैतूनी भूरे रंग का, गहरे लाल रंग की बड़ी चोंच और गहरे लाल रंग के ही पंजे होते हैं। इसके गले और नीचे का रंग बादामी होता है। इसकी उड़ान सीधी, भारी और फड़फड़ाहट युक्त होती है।
इसके नर और मादा एक समान होते हैं।
निवास
यह पुष्करिणियों, झीलों, नदियों एवं जलस्रोतों आदि के पास के पेड़ों पर पानी के ऊपर लटकी हुई शाखाओं पर बैठा दिखाई पड़ सकता है, जहाँ से यह सरलता से आखेट कर सकता है तथा उसके पश्चात विश्राम करता रहता है। यह राजस्थान व उससे सटे हुए सूखे क्षेत्रों को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है।
वितरण
यह भारत के अतिरिक्त बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यान्मार में पाया जाता है। पंखो के रंग में किञ्चित भिन्नता के साथ इसकी १३ और उपजातियाँ दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में इंडोनेशिया तक पाई जाती हैं। ये प्रवास पर नहीं जाते हैं।
प्रजनन काल तथा नीड़ निर्माण
इस पक्षी का प्रजनन काल जनवरी से जुलाई तक होता है। उस समय ये नदी की कछारों में सुरंग खोदकर, पुराने पेड़ों के तनों में या पुत्तिका बाँबियों में अपना नीड़ बनाते हैं। मादा एक बार में ४-५ अण्डे देती है। अण्डों का रंग श्वेत एवं कांतिमय होता है।
एक संशोधन सुझाव है , राजस्थान में पाया जाता है , रणथम्भौर जोन दो में देखा व चित्रित किया गया ।
जानकारी से भरपूर लेख । और उतने ही सुंदर चित्र