SEO या search engine optimization, गूगल सर्च इंजन लेख के शीर्षक, यूआरएल, प्रथम पैरा के वाक्य लेख के कीवर्ड आदि से लेख के विषय को तौलने का प्रयास करता है। इसी से निश्चित करता है कि कौन से लेख किस विषय से सम्बंधित हैं और कितने अधिक सम्बंधित हैं जिन्हें किसी और के द्वारा ढूंढें जाने पर परिणाम में दिखाना है और किस क्रम में दिखाना है।
स्कूल या कॉलेज में कुछ स्याणे छात्र सब्जेक्टिव विषयों के उत्तर लिखते समय एक ट्रिक प्रयोग करते थे/है। विशेष रूप से विशाल वर्णनात्मक उत्तरों हेतु। जैसे यदि प्रश्न ये हो ‘महाराणा प्रताप के हल्दी घाटी युद्ध में पराजय के कारणों की विस्तार से विवेचना कीजिये?’। तो वे चतुर विद्यार्थी जिन्हें दो लाइन से ज्यादा का उत्तर न पता होता था तब भी मुख्य उत्तर पुस्तिका के पन्ने भरकर अन्य कई अतिरिक्त शीट भी भरते थे। कैसे, अनुमान आपको लग गया होगा मैं किस ओर इंगित कर रहा हूँ। वे चतुर बालक/युवक प्रारंभ के कुछ पैरा में सम्बंधित उत्तर लिखते बाद में पैर दर पैर असम्बद्ध कहानिया शनै: शनै: जोड़ते हुए बेसिर-पैर की बाते, फ़िल्मी संवाद या कुछ भी अंट-शंट लिखते हुए बढ़ते जाते। यह अंट-शंटियत उत्तर के प्रारंभ से लेकर मध्य तक आते बढती और मध्य से लेकर अंत तक आते-आते कम की जाती। फिर अपने इस विस्ताआआआआर को अंत में आते-आते कुछ वही प्रारंभ वाली लाइन हलके फेर-बदल के उपसंहार/निष्कर्ष के रूप में चेप देते। इस ट्रिक की सबसे महत्वपूर्ण कुशलता यह होती की वे उत्तर के बीच-बीच में सबन्धित ‘Keyword’ यथा प्रश्नानुरूप ‘महाराणा’, ‘हल्दी घाटी’, ‘प्रताप’, ‘युद्ध’, ‘पराजय’, ‘समर’, ‘लडाई’, ‘भेद’, ‘गद्दारी’, ‘राजनीति’ आदि आदि को घुसा देते, उन शब्दों को बड़े करीने से ओवरराईट करते हुए हल्का सा बोल्ड भी करते।
वास्तव में वे चतुर विद्यार्थी सही उत्तर भले न जानते हों पर वे जांचकर्ता के मानस को समझने का प्रयास बखूबी कर लेते थे कि कोई जांचने वाला किन परिस्थियों में कैसे, किस गति से पुस्तिका को जांचेगा। तो यह भी एक कला थी/है। इसके और भी पैंतरे हो सकते थे/हैं/होंगे यथा उत्तर पुस्तिका में पुरे प्रश्नों के उत्तर किस क्रम में देने हैं, कीवर्ड वाले स्थानों पर ‘सु’रूप लिखावट में और अंट-शंटियत वाले स्थानों पर ‘कु’रूप लिखावट में ताकि यह निश्चित हो जाये कि फटाफट जांचते समय गुरूजी का ध्यान कहाँ खींचना है और कहाँ ‘स्किप’ करवाना है। इस तरह बहुतों को अच्छे अंको से पास होते देखा है। गणित-विज्ञान या ऐसे विषय जहाँ ‘टू दी पॉइंट’ उत्तर लिखने वहां यह ट्रिक ना के बराबर होती है तो स्यात वे न समझें क्योंकि गणित विषय से होने के कारन मुझे भी यह बात बहुत बाद में जाकर अनुभूत सत्य मिली। यों कोड़ियों के भाव जिस देश में पीएचडी डिग्री मिलती हो उस देश के वासी थीसिस तक में इस मार्ग का बखूबी प्रयोग करते देखे हैं मैंने। ‘शोध गंगा’ हो या ‘गूगल’ सबको धोखा देने की तू डाल-डाल मैं पात-पात वाला खेल खेलने वाले बहुत हैं भारत में। खैर!!
एनीवे, इस उदाहरण से मेरे इस लेख का मंतव्य आपको लगभग स्पष्ट हो गया होगा। तो बात हो रही है SEO (Sear Engine Optimization) की। अंतरजाल पर लिखे/ठेले जाने वाले लेखो की और उनके माध्यम से अपनी पहुँच अधिकाधिक लोगों तक बढाने की। जिसका मार्ग सर्च इंजन से होकर जाता है। वर्तमान में इन्टरनेट पर एक से अधिक सर्च इंजन हैं फिर भी गूगल की शक्ति इतनी अधिक है की आज भी लोग सीधे वेबसाइट यूआरएल के जरिये खोलने के बजाय गूगल सर्च इंजन की वेबसाइट खोलकर उसमें लिखते हैं और फिर वास्तविक वेबसाइट पर जाते हैं। यह उदारहण गूगल सर्च इंजन की शक्ति बताने के लिए पर्याप्त है।
पर व्यवहार में यह पाया गया की अधिकांश लोग सर्च करने के बाद पहले पृष्ठ से आगे बढ़ते ही नहीं। प्रथम पृष्ठ पर जो परिणाम मिल जाए उसी को लोग हिट करते हैं या दोबारा नए शब्दों से परिणाम ढूँढने का प्रयास हो जाता है। संसार भर में करोड़ों अरबो की तादाद में वेबसाइट हैं। परन्तु गूगल सर्च इंजन के प्रथम पृष्ठ मात्र १०-१२ परिणाम दिखाए जाते हैं। यहीं से सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन के खेल शुरू हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने लेख,ब्लॉग,साईट के लिए यह प्रयास करता है कि बस उस पहले पृष्ठ के परिणाम में ही उसके लेख का लिंक आ जाये। जिसे सर्च इंजन रैंकिंग भी कहा जाता है।
इस लगभग अनंत कोटि स्तर की प्रतिस्पर्धा में वर्ष-दर-वर्ष नए पैंतरे, नियम-कायदे जुड़ते जा रहे हैं। गूगल स्वयं किसी भी परिणाम के लिए प्रायोजित किये जाने की बात को पूरी तरह नकारता है अर्थात आप पैसे देकर अपना लिंक ऊपर करवाएं ऐसा नहीं होगा। परन्तु प्रकारांतर से वह आपको सुझाव या अन्य तरीकों से ‘मार्गदर्शन’ भी करता रहता है। चतुर विद्यार्थी की तरह यहाँ भी इन तरीकों को समझने वालों का अलग से बड़ा बाजार भी खड़ा हो चुका है।
उन पैंतरों में विस्तार से जाना एक लेख में संभव नहीं परन्तु कुछ मोटी बाते जो यहाँ बताता हूँ। इसे ऐसे भी कह सकते हैं की गूगल चाहता है की आप ऐसा ही करें। इसमें उसके भी निहितार्थ होते हैं। तो हम सब समझ सकते हैं इस अनंत सरीखे और निरंतर वृद्धिमान डाटा का प्रबंधन कोई भी मानवीय सीमाओं में इतने सीधे तरीके से नहीं कर सकता। बस यहीं उस तकनीकी का प्रवेश शुरू हो जाता है जिसे हम कृत्रिम प्रज्ञान (Artificial Intelligence) कहते हैं। तो गूगल सर्च इंजन के अल्गोरिद्म क्या कहते हैं। मोटे रूप में मैंने लेख के प्रारंभ में वह ‘चतुरता’ वाला नियम समझा दिया है।
जब भी आप कोई लेख लिखते हैं, जैसे की यही लेख जिसे आप पढ़ रहे हैं, यदि ‘चतुरता’ से लिखा जाए, तो उसके प्रदर्शित होने वाले कुछ मुख्य भाग हैं, उस लेख का ‘शीर्षक’, ‘यूआरएल’, ‘लेख की मूल सामग्री (लेख)। इन तीनों भागों में ‘महाराणा’ टाइप कीवर्ड का प्रयोग करना आवश्यक है। यथा यह लेख यदि SEO पर टिप्स देने के ऊपर लिखा है तो इसके शीर्षक में ‘SEO tips’ जैसा कोई शब्द होना आवश्यक है। वैसे ही शब्द या वाक्य उसके यूआरएल (जिसे slug भी कहा जाता है) में होने होंगे। वैसे शब्द या वाक्य लेख के अन्दर स्थान-स्थान पर होने आवश्यक हैं। इसे आप गूगल की ओर से बाध्यता समझें या अपनी चतुरता बात एक ही है। गूगल सर्च बोट या क्रॉलर इसी आधार पर जानता है की कौन से लेख किस विषय से सम्बंधित हैं और कितने अधिक सम्बंधित हैं जिन्हें किसी और के द्वारा ढूंढें जाने पर परिणाम में दिखाना है और किस क्रम में दिखाना है। अर्थात गूगल बोट को हमें किसी भी तरह बताना होता है की वह समझ जाए की हमारा लेख किस विषय पर है। इसके लिए मैं ऑप इंडिया के एक लेख का उदाहरण देते हुए चलूँगा। जो इस लिंक पर है।
यहाँ पर बताये गए भिन्न-भिन्न भागों के शब्दों और वाक्यों पर साम्यता और शब्दों के प्रयोग की बारंबारता देखिये, जो समाचार लेख के विषय को गूगल को समझाने के लिए किस विधि प्रयोग किये गए हैं। निचे चित्र में लाल रेखा वाले शब्दों को देखिये।
मूल लेख के पूरे भाग में भी प्रथम पैरा एक तरह से पूरे लेख का सारांश प्रस्तुत करता हुआ होना चाहिए। क्योंकि सर्च इंजन मोटे तौर पर और गहरे में देखने के लिए लेख की कुछ प्रथम पंक्तियों को पढ़ते हैं और प्रयास करते हैं ये समझने का की लेख वास्तव में किस विषय से सम्बन्ध रखता है। तो प्रथम पैरा में आगे लिखे जाने वाले लेख का सारांश सम्बंधित कीवर्ड का प्रयोग करते हुए लिखना भी आवश्यक होता है। आगे लेख फिर वही बीच बीच में मिलते जुलते या सम्बंधित शब्द भी यत्र-तत्र सम्मिलित करने होते हैं। इसी लेख के आगे की सामग्री में ऐसे सम्बंधित शब्द और वाक्य नीचे चित्र में देखिये।
लेख में सामान वेबसाइट या बाहरी वेबसाइट की कुछ कड़ियाँ (link) भी सम्मिलित किये जाएँ तो प्रभाव बढ़ जाता है, इन्हें तकनीकी भाषा में आउटबाउंड लिंक्स (outbout links) भी कहते हैं। अर्थात यदि में इस लेख में कुछ कीवर्ड्स पर सम्बंधित विषयों के लिंक/यूआरएल लगा दूँ जो इस विषय के बारे में ही बता रहे होते हैं तो गूगल उन लिंक्स पर पड़े लेखों से भी अनुमान लगयेगा की यह लेख बताये गए विषय से कितना सम्बन्ध रखता है। यदि मैं लेख लिख रहा हूँ SEO पर और अधिकांश लिंक हो ‘कृषि’ सम्बंधित लेखों के तो गूगल को लगेगा की यह लेख विषय के कम समीप है और इस तरह इसका सम्बन्ध बताये गए विषय से कम मानेगा। परिणाम निम्न रैंकिंग। इसी समाचार लेख में एक लिंक है जो ‘कोरोना वायरस’ के विषय के सम्बन्ध के अन्य समाचार को जोड़ते हुए विषय के बारे में सम्बन्ध स्थापित कर रहा है।
लेख में चित्रों, विडियो आदि का प्रयोग करना अच्छा है। परन्तु साथ में यह बताना आवश्यक होता है की वे चित्र, ऑडियो, चलचित्र आदि किस विषय में हैं। उसके लिए एक ‘alt’ टैग HTML प्रोग्रामिंग में होता है उसका प्रयोग करें। इसके आलावा जो भी हो आपको उसके ऊपर नीचे जो भी तकनीकी आप प्रयोग कर रहे उसके अनुसार कैप्शन, टाइटल आदि उस चित्र के बारे में लिखा जाना आवश्यक है। आपको चित्र आदि पर माउस होवर (पॉइंटर चित्र पर लाने पर) कुछ शब्द या वाक्य देखने को मिलेंगे। या ऊपर नीचे कैप्शन में भी ऐसी चीज़ हो सकती है। नीचे इस लेख के सम्बंधित चित्र (फीचर्ड इमेज) पर माउस लाने पर भर कर दिखने वाला (alt Text) वाक्य दिखाया गया है उसमें भी शीर्षक वाले शब्द-वाक्य हैं।
इसके अतिरिक्त टैग, केटेगरी, मेटा कीवर्ड, मेटा डिस्क्रिप्शन आदि अन्य अनेक तकनीकी मार्ग होते हैं किसी लेख की गूगल रैंकिंग हेतु विषय से सम्बन्ध बैठने हेतु जिन पर लिखना लेख को और जटिल बना देगा तथा सामग्री लम्बी ना हो इसलिए सारांश में सूत्र यहीं समाप्त करता हूँ।
उपर्युक्त तकनीकी आदि सब प्रयोग हो चुकने पर गूगल सर्च इंजन में परिणाम में प्रदर्शित होने पर यह कैसा पढने/देखने में आएगा। यह भी नीचे चित्र में दर्शाया गया है। वही सब विषय सम्बन्धी शब्द वाक्य इस तरह प्रदर्शित होकर पाठक को लिंक या लेख के बारे में एक सूचना देता है कि लेख किस विषय में है।
अब इस लेख में जो भी चर्चा मैंने गूगल सर्च इंजन के लिए की है। आप उन बातों को अन्य अंतरजालीय कम्पनी या उत्पादों पर भी लागू कर सकते हैं। यथा जीमेल, यूट्यूब, विकिपीडिया, फेसबुक, ट्विटर, याहू, yandex, बायडू, बिंग, whatsapp इस प्रकार सूची अंतहीन है। यह सब आखिर इतनी सब सुविधाएँ फ्री में क्यों देते लगते हैं। इतना डाटा एकत्रित करते हुए इन्हें क्या आनंद आ रहा है जिस पर इनका धन भी खर्च हो रहा है। वस्तुत: इससे आगे ही डाटा खनन और डाटा विज्ञान, कृत्रिम प्रज्ञान आदि अनेक तकनीकी विषय/कार्य/क्षेत्र शुरू होते हैं। जिन पर अगले भाग में चर्चा करने का प्रयास किया जायेगा। अस्तु।