time management audio version 2
प्रथम भाग के ध्वनि मुद्रण के पश्चात अब अनुराग शर्मा के एक पूर्व प्रकाशित लेख समय प्रबंधन के कुछ सूत्र time management – एक दिन में 40 घण्टे, अंतिम भाग का ध्वनि मुद्रण।
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समय प्रबंधन पर पिछले आलेख में हमने निम्न सूत्रों पर विचार किया:
- समय का आदर
- स्पष्ट, संक्षिप्त, परंतु सक्षम सम्वाद
- मुख्य बिंदुओं के नोट्स रखना (लॉन्ड्री लिस्ट)
- मुक्तमना होना
- समयानुकूल कार्य करना
- ऊर्जावान रहना
- सार ग्रहण करना
- सटीक/अनुकूल उपकरण का प्रयोग
- सावधान रहना
- प्रवाह के साथ बहना
- कर्म, प्रशिक्षण और विश्राम का संतुलन
- कार्यकौशल
- नवोन्मेष
- सदा तैयार रहना
- बहुकार्यण (मल्टी-टास्किंग)
- व्यवस्था (ऑर्गैनाइज़ेशन / ऑर्डर)
- प्रतिनिधित्व (डेलीगेशन)
- कार्याकार विभाजन
- कार्यसूची तथा प्राथमिकता क्रम
- प्रतीक्षा कभी नहीं
सूत्र – सौ सुनार की, एक लुहार की
समय का सदुपयोग जोश से अधिक होश में होता है। आवेग में आने के बजाय सोच विचारकर, समयबद्ध परियोजना बनाकर काम अच्छा होता है। यदि आपको किसी व्यक्ति से कार्यसम्बंधी निर्देश लेने हैं तो घड़ी-घड़ी टोकने के स्थान पर सभी सम्भावनायें एकत्र कर के नियत समय पर एक ही बार में विमर्श करें। अनंतर उत्पन्न हुए प्रश्नों को पुन: एकत्र करके सम्वाद की पुनरावृत्ति की जा सकती है। यहाँ मैं दुहराऊंगा कि चैट जैसे परोक्ष और अक्षम माध्यम के बजाय समक्ष रहकर (रियलटाइम), साक्षात्कार द्वारा स्पष्ट सम्वाद होता है। मूल बिंदुओं की तैयारी इसमें और सहायता करेगी। यदि अचानक किसी को टोकना अवश्यम्भावी हो तो सम्वाद की स्पष्टता के सूत्र को ध्यान में रखते हुए अपने प्रश्न का पूरा संदर्भ दीजिये ताकि दोनों पक्षों का समय बचे और आपको सही दिशा मिले।
समेकन या समूहीकरण (कंसोलिडेशन)
हिंदी कहावत है, एक और एक ग्यारह। समेकन समय भी बचाता है और सफलता की सम्भावना भी। एक चक्कर में कई काम निबटा देने से आपका आगामी चक्कर बच जाता है। बिखरा हुआ सामान एक कण्डी, बोरी या थैले में डालकर चलने से आपका हाथ भी खाली हो जाता है और सामान के मार्ग में बिखरने, गिरने, या खोने की आशंका भी घट जाती है। चाहे एक ही दिशा में जाने वाले एकाधिक व्यक्तियों द्वारा कारपूलिंग की बात हो, चाहे एक ही परीक्षा देने वाले दो छात्रों द्वारा मिलकर रणनीति बनाकर अध्ययन करने की, एक से भले दो की कहावत भी ध्यान रखने योग्य है। कार्य, वस्तु, व्यक्ति और संसाधन का समूहीकरण करके आप अपने उद्देश्य को कम समय में, और अधिक गुणवत्ता के साथ प्राप्त कर सकते हैं।
सूत्र – अन्यमनस्कता (डिस्ट्रैक्शन) से बचें
समय के सदुपयोग के लिये यह आवश्यक है कि हर काम मन लगाकर किया जाये। विशेषकर बहुकार्यण करते समय सचेत रहना आवश्यक है। वाहन चलाते समय सड़क पर पूरा ध्यान रखते हुए रेडियो सुनना बहुकार्यण है लेकिन उस समय सड़क से ध्यान हटाकर फ़ोन पर कुछ ढूँढ़ना मृत्यु को आमंत्रण देने जैसा है। खाना खाते समय पढ़ना बहुकार्यण है लेकिन अध्याय पूरा होने तक खाते रहना, अन्यमनस्कता है। कक्षा में किसी विषय के दुहराव के समय अपने फ़ोन पर कोई सूचना देखते समय यह ध्यान रहे कि प्रवक्ता के अगले बिंदु पर आते ही आपका ध्यान पुनः प्रवचन पर केंद्रित हो और तारतम्य बना रहे।
चिड़िया की आँख
अपने लक्ष्य को पहचानिये। कुछ भी हो जाये पर, मूल उद्देश्य से दृष्टि न हटे। युद्ध में जाते सैनिक पथ की हर क्षुद्र बाधा को हटाने बैठेंगे तो स्यात ही रणांगन तक पहुँच पायें। बारूदी सुरंगों को हटाना अनिवार्यता हो सकती है किंतु वायुयुद्ध में वह भी आवश्यक नहीं। महत्वपूर्ण कार्य को पहचानिये, उसकी निर्भरता को भी। अन्य सभी अनावश्यक झंझटों की उपेक्षा करके बढ़ते चलिये। महत्वहीन कार्यों को पहचानकर उनमें व्यर्थ हो रहे समय की बचत की जानी चाहिये।
कोस की गिनती रखें, गाँव भले न जायें
वर्तमान युग सूचना-क्रांति और संचार-माध्यमों का है, लेकिन ज्ञान सदैव बहुमूल्य था। दिल्ली में मेरे एक सहकर्मी गुप्ताजी कहते थे कि खरीदारी न भी करनी हो, बाज़ार जायें तो भाव पूछ ही लेना चाहिये। ज्ञान कभी बेकार नहीं जाता, जानकारी भी यदि बिना अतिरिक्त प्रयास के मिल रही हो तो रख लेनी चाहिये। प्रशिक्षण के अवसर का यथाशक्ति सदुपयोग किया जाये। अपने कार्य के साथ-साथ, स्वास्थ्य, पोषण, कौटुम्बिक प्रेम, आत्मोन्नति आदि, जिस उपयोगी विषय पर भी प्रामाणिक जानकारी मिले ग्रहण कीजिये। भ्रामक सूचनाओं और शब्दाडम्बर के कबाड़ को पहचानकर दूर करना भी सीखिये। प्रचलित कथनों और कहावतों में बहुत सा अज्ञान भरा है, उन्हें नकारकर शुद्ध ज्ञान की ओर बढ़ें – असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्माऽमृतं गमय …
नियोजन /अनुसूची (स्केज्यूलिंग/शिड्यूलिंग)
यदि कई काम एक के बाद एक क्रम में किये जाने हों तो वर्तमान कार्य के चलते हुए आप आगामी कार्यों का नियोग कर सकते हैं। नगर विकास निगम से गृह निर्माण की स्वीकृति लेते समय ही निर्माण-ठेकेदार से बात पक्की की जा सकती है। दीवारें बनते समय छत की सामग्री मँगवाकर रखी जा सकती है, और छत बनाने वाले राज-मज़दूरों को अनुसूचित करके कार्यारम्भ की तिथि और समय बताया जा सकता है। इसी प्रकार यदि दो कार्य एक दूसरे से स्वतंत्र हैं तो उन्हें भी यथाशीघ्र नियोजित किया जाये। भविष्य के जितने भी कार्य आज नियोजित किये जा सकते हैं, किये जाने चाहिये। कलैंडर/ईमेल आदि के सदुपयोग का सूत्र भी इस संदर्भ में लाभप्रद है।
नेपथ्य कार्य
बड़े स्वगत कार्य को नेपथ्य में चलाते समय छोटे-छोटे कार्यों को निबटाया जा सकता है। बैंक कर्मी का कम्प्यूटर जब दिनारम्भ के कार्य में लगा हो तब वह पत्रोत्तर पूरा कर सकता है। दिवसांत के समय दिन भर की पर्चियों, चेकों आदि को एकत्र करना, या विवरणियों की जाँच जैसे काम हो सकते हैं। यह भी एक प्रकार का बहुकार्यण ही है जिसमें नेपथ्य में हो रहे, या अलभ्य कार्य के समय का सदुपयोग किया जाता है। स्वाभाविक सी लगने वाली यह बात भी सबके लिये स्वाभाविक नहीं है लेकिन अभ्यास से बहुत कुछ सम्भव है।
प्रारूप (टेम्पलेट)
प्रारूपों का प्रयोग बार-बार किये जाने वाले कामों को सरल करता है। जिस प्रकार साँचों का प्रयोग करके कुम्हार कम समय में अधिक मूर्तियाँ दक्षता के साथ बना सकते हैं, या पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों का एक निश्चित प्रारूप है जिसमें शीर्षक, मुखपृष्ठ, सारणी, अध्याय/रचनाएँ, संदर्भ सूची, पृष्ठ संख्या आदि जैसे गुण-धर्म उपस्थित हैं, उसी प्रकार पत्राचार आदि जैसे दुहराये जा सकने वाले अनेक कार्यों में आप प्रारूप का उपयोग कर सकते हैं। मघा में प्रकाशित आलेखों का भी एक नियमित प्रारूप है। सरल प्रारूप आपके मन में भी रह सकते हैं किंतु जटिल प्रारूप वर्ड प्रपत्र आदि में रखना अधिक सुविधाजनक है। उदाहरणार्थ, ऑनलाइन पत्रिका की पीडीएफ़ बनाने के लिये मैंने माइक्रोसॉफ़्ट वर्ड में एक प्रारूप बनाया जिसकी सहायता से वैबसाइट पर उपलब्ध सामग्री को नियमित रूप से सरल निर्देशों की सहायता से कोई व्यक्ति किसी भी मास की सामग्री की पीडीएफ़ अल्पसमय में बिना किसी पूर्व-प्रशिक्षण के बना सकता है।
जाँच सूची (चेकलिस्ट)
पहले हमने मुख्य बिंदुओं के नोट्स रखने की बात की थी। वह सामान की सूची थी। जाँच सूची उससे थोड़ी भिन्न है। नाम के अनुसार यह आपके द्वारा किये जा रहे या पूर्ण हुए कार्य की जाँच की सूची है। वायुसेना के फ़ाइटर पायलट हों या थलसेना के वाहन चालक, सब जाँच सूचियों का प्रयोग करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने शल्यक्रिया के लिये भी जाँच सूची जारी की है। हम भारतीयों के लिये स्वच्छता एक सांस्कृतिक सामान्यता है लेकिन मिशिगन के 100 अस्पतालों में किये गये एक अध्ययन के अनुसार वहाँ की 30 प्रतिशत शल्य चिकित्सा से पहले डॉक्टर स्वच्छता जैसे साधारण कार्य में से भी एक पद भूल जाते थे जो 4% शल्यक्रियाओं में संक्रमण का कारण बनता था। एक सरल सी जाँच सूची लगाने से यह 4% संक्रमण घटकर शून्य हो गया। आप भी अपने काम की जाँच सूची रखिये। अनेक सामान्य कार्यों की बनी बनाई चेकलिस्ट आपको इंटरनैट पर ही मिल जायेंगी, जिनमें आप अनुकूल परिवर्तन कर सकते हैं।
सर्वश्रेष्ठ को उत्तम का शत्रु न बनने दें
काम पूरा करने का आनंद ही और है, लेकिन अर्थशास्त्र का घटते लाभ का नियम, या परेटो के 80-20 का नियम यहाँ भी लागू होता है। साधारण दुकान से खरीदी मिटाई या कुर्सी की बात तो दूर, माइक्रोसॉफ़्ट, एपल या गूगल जैसी सफल कम्पनियों के उत्पादों का विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि वे शत-प्रतिशत सम्पूर्ण नहीं हैं। निर्माता नए-नए संस्करणों के द्वारा अपने उत्पाद की कमियों को दूर करके उनमें सुधार करते रहते हैं क्योंकि एक हज़ार स्वादिष्ट लड्डू बनाना एक बात है और हर लड्डू को शत-प्रतिशत गोलाकार देना दूसरी ही बात है। हर लड्डू को ग्राहक के पास पहुँचने तक उसका सही स्वरूप बनाये रखना समय के सम्बंध में अतिव्ययी है, और उस पर समय व्यर्थ करने से बचना चाहिये। किसी भी कार्य को शत-प्रतिशत किया जा सके तो बहुत अच्छा है लेकिन ऐसा किये बिना भी उसे परिणति तक पहुँचाया जा सकता है। शत-प्रतिशत सम्पूर्णता का मूल्य पहचानना चाहिये। उत्पाद को प्रथम 80 प्रतिशत स्वरूप में लाने तक यदि 20 प्रतिशत समय लगता है और शेष 20% में 80% समय तो पहले 80% को स्थायित्व देने का प्रयास किया जाना चाहिये। और उस बचे हुए 80% समय को चार अन्य कार्यों को 80% स्थायित्व देने में प्रयोग कीजिये। लड्डू खाने में रसना रञ्जक हों, उनका आकार भले ही कलाकंद जैसा हो। सदा सुधार ही करते रहने के स्थान पर पुस्तक की अधिकांश कमियाँ दूर करके उसके प्रथम संस्करण का विमोचन कराइये और उसके बाद बची-खुची कमियाँ हटाने का काम अगले संस्करण पर छोड़िये, ताकि शत-प्रतिशत की आशा में काम रुका न रहे।
अंतिम तिथि से न डरें
मान लीजिये आप पिछले कई वर्षों से किसी महापुरुष की जीवनी लिखना चाहते थे लेकिन व्यस्तता के कारण टालते जा रहे थे। अब एक प्रकाशक ने जीवनी की पाण्डुलिपियाँ आमंत्रित की हैं। तीन प्रविष्टियों को हज़ारों रुपये के पुरस्कार मिलेंगे और सर्वश्रेष्ठ पाण्डुलिपि को प्रकाशित करने की योजना है। जानकारी आपको बिलम्ब से मिली। अंतिम तिथि में केवल दो मास बचे हैं, जबकि आपके अनुमान के अनुसार आपको पाँच मास का समय चाहिये। ऐसे में समय की कमी से हताश होकर बैठ जाने के स्थान पर चुनौती स्वीकार करके लिखना आरम्भ कीजिये। यदि दो मास में आप 80% काम कर चुके हैं तो प्रविष्टि भेज दीजिये, अन्यथा इस बात के लिये प्रसन्न होइये कि आपका बरसों से टाला जाने वाला कार्य इस बहाने आरम्भ हो चुका है तथा कुछ समय एवं सातत्य बनाकर आप उसे परिणति तक ला सकते हैं। इस उदाहरण में अंतिम तिथि आपके हाथ में नहीं है, लेकिन बहुत बार अंतिम तिथियाँ चलायमान होती हैं। यदि आप ठेके पर कोई काम कर रहे हैं तो अपने समय और संसाधनों का आँकलन करके अंतिम तिथि के अनुकूलन पर बातचीत कीजिये क्योंकि प्राय: अंतिम तिथि मनमानी और परक्राम्य होती है।
तनाव को प्रत्यञ्चा बना लें
मैंने जीवन में बार-बार अनुभव किया है कि मैं अपने कार्य में सर्वश्रेष्ठ तब-तब हुआ हूँ जब-जब मैं बहुत से कामों में एक साथ उलझा हुआ था। प्रतिदिन छह घंटे की यात्रा वाली नौकरी की बात मैंने पहले की थी। उसके बाद भी मेरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तब रहा जब कार्य-परिस्थितियाँ सर्वाधिक प्रतिकूल थीं। जिस प्रकार अंधेरी रात में एक छोटा सा दीपक भी बहुत होता है, कार्य के तनाव को संकल्प के दीप से चीर दीजिये। आपने भी इतना तो देखा होगा कि छुट्टियों के बजाय काम के दिनों में आप अधिक उत्पादक होते हैं। कार्य के तनाव को दक्षता की प्रत्यञ्चा बनाइये। आप जितने अधिक व्यस्त हैं, उतने ही अधिक काम कर सकते हैं, क्योंकि एक काम से दूसरे में परिवर्तन भी एक प्रकार का विश्राम देता है जबकि शत-प्रतिशत विश्राम कुछ समय बाद अपने दुष्परिणामों के कारण निराशादायक हो जाता है। व्यस्तता के समय में नियमित और सतत होकर अवसरानुकूल कार्य करें लेकिन अपनी क्षमता को पहचानकर अति से बचने के सूत्र को भी ध्यान में रखें।
पाठकों से अनुरोध
दो खंडों में प्रकाशित इस शृंखला के सूत्रों को अपनाकर आप अपने प्रत्यक्ष और परोक्ष समय बचाने के साथ अपने कार्य की गुणवत्ता भी बढ़ा सकते हैं। यदि आप पहले से समय के सदुपयोग के लिये कुछ सूत्रों का प्रयोग करते हैं तो उन्हें भी इस आलेख की टिप्पणी पेटिका में साझा कीजिये ताकि अन्य पाठक भी उनका लाभ उठा सकें, धन्यवाद!