Tiny lamps लघु दीप , पिछली कड़ियाँ : 1 , 2 , 3 , 4, 5, 6 , 7, 8, 9
सुभाषित : शान्तिपाठ
संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक उपनिषद मिला कर वेद माने जाते हैं। अन्तिम होने से उपनिषद वेदान्त भी कहलाते हैं। सनातन समागम, अनुष्ठानों एवं आयोजनों में शान्तिपाठ अनिवार्य है। सम्पूर्ण विश्व की मङ्गल कामना के साथ शान्ति उद्घोष सम्भवत: संसार की किसी अन्य सभ्यता में नहीं है।
शांतिपाठ उपनिषदों से आ रहे हैं जिनका आरम्भ इनसे ही होता है। अङ्गभेद से उपनिषदों में पाँच शांतिपाठ हैं।
(1) ऋग्वेदीय :
॥ॐ॥
वाङ्मे मनसि प्रतिष्ठिता।
मनो मे वाचि प्रतिष्ठितम्।
आविरावीर्म एधि।
वेदस्य म आणीस्थः।
श्रुतं मे मा प्रहासीः।
अनेनाधीतेनाहोरात्रान् सन्दधामि।
ऋतं वदिष्यामि।
सत्यं वदिष्यामि।
तन्मामवतु।
तद्वक्तारमवतु।
अवतु माम्। अवतु माम्। अवतु वक्तारम्॥
॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
(हे परमात्मन् !) (मेरी) वाणी मन में प्रतिष्ठित हो, मन वाणी में प्रतिष्ठित हो। आप मेरे समक्ष हों। (मेरे लिये) वेद का ज्ञान लायें। (मैं) पूर्वश्रुत ज्ञान को विस्मृत न करूँ। स्वाध्यायशील प्रवृत्ति से दिन रात एक कर दूँ। ऋत बोलूँगा। सत्य बोलूँगा। वह (ब्रह्म) मेरी रक्षा करे। वक्ता (आचार्य) की रक्षा करे। मेरी रक्षा करे। मेरी रक्षा करे। वक्ता (आचार्य) की रक्षा करे। आधिदैविक, आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक, त्रिविध, ताप-सन्ताप शान्त हों।
(2) शुक्ल यजुर्वेदीय :
॥ॐ॥
पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
(ओङ्कार रूप में जिसे अभिव्यक्त किया जाता है,) वह (परब्रह्म स्वयं में सब प्रकार से) पूर्ण है एवं यह (सृष्टि भी स्वयं में) पूर्ण है। (उस) पूर्ण (तत्त्व में) से (इस) पूर्ण (विश्व) की उत्पत्ति हुई है। (उस) पूर्ण (में) से (यह) पूर्ण निकाल देने पर (भी) (वह) शेष (भी) पूर्ण (ही) रहता है। आधिदैविक, आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक, त्रिविध, ताप-सन्ताप शान्त हों।
(3) कृष्ण यजुर्वेदीय :
॥ॐ॥
सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।
॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
(हे परमात्मन् !) (हमारी) साथ-साथ रक्षा करें। (हमारा) साथ-साथ पालन करें। (हम) साथ-साथ शक्ति अर्जित करें। (हमारी) पढ़ी हुई विद्या तेजस्वी हो। (हम एक दूसरे के प्रति) द्वेष न करें। आधिदैविक, आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक, त्रिविध, ताप-सन्ताप शान्त हों।
(4) सामवेदीय :
॥ॐ॥
आप्यायन्तु ममाङ्गानि वाक्प्राणश्चक्षुः श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि ।
सर्वं ब्रह्मौपनिषदं माऽहं ब्रह्म निराकुर्यां मा मा ब्रह्म निराकरोदनिराकरणमस्त्वनिराकरणं मेऽस्तु ।
तदात्मनि निरते य उपनिषत्सु धर्मास्ते मयि सन्तु ते मयि सन्तु ।
॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
मेरे समस्त अङ्ग-अवयव वृद्धि को प्राप्त करें। वाणी, प्राण, नेत्र, कान, बल एवं समस्त इन्द्रियाँ विकसित हों। समस्त उपनिषदें ब्रह्म हैं। मुझसे ब्रह्म का त्याग न हो तथा ब्रह्म मेरा त्याग न करे। मेरा परित्याग न हो, न हो। इस प्रकार ब्रह्म में निरत हमें उपनिषद्-प्रतिपादित धर्म की प्राप्ति हो। आधिदैविक, आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक, त्रिविध, ताप-सन्ताप शान्त हों।
(5) अथर्ववेदीय :
॥ॐ॥
भद्रं कर्णेभिः श्रुणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यत्राः। स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा ꣳ सस्तनूभिर्व्यशेम देवहितम् यदायुः॥
स्वस्ति न ऽ इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
(हे देव !) हम कानों से कल्याणकारी बातें सुनें, आँखों से कल्याणकारी (दृश्य) देखें, हम हृष्ट पुष्ट अङ्गों एवं तन से ईश्वर द्वारा प्रदत्त पूरी आयु देवहित कार्यों में बितायें। महान कीर्ति सम्पन्न इंद्र हमारा कल्याण करें। सर्वज्ञाता पूषा देवता हमारा कल्याण करें। अरिष्टनेमि (जिनकी गति अवरुद्ध न की जा सकती हो), तार्क्ष्य (गरुड़) तथा बृहस्पति हमारा कल्याण करें। आधिदैविक, आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक, त्रिविध, ताप-सन्ताप शान्त हों।
जिसने भारत को तवांग दिलाया
‘उत्तर एवं पूर्वोत्तर सीमांत सुरक्षा समिति की गतिविधियों के बारे में मुझे निरंतर सूचनायें मिल रही हैं। इन गतिविधियों की परिणति तिब्बत सीमा पर एवं नेपाल में कार्रवाई में हुई है। मेरे परामर्श के लिये यह सब किसी भी स्तर पर नहीं लाया गया, यद्यपि प्रतीत होता है कि, असम के राज्यपाल एवं अन्य दूर बैठे व्यक्तियों के साथ परामर्श संवाद हुये हैं। जैसा कि मैं पहले ही आप से बता चुका हूँ कि हम जिस ढंग से तवांग में प्रविष्ट हुये, उस पर अधिकार किया एवं जिसकी असुखद परिणति कतिपय अंतर्राष्ट्रीय जटिलताओं में हुई, उसे ले कर मैं बहुत चिंतित हूँ। मैं अभी तक बहुत स्पष्ट नहीं हूँ कि कैसे यह सब बिना मुझे किसी भी प्रकार से संदर्भित किये किया गया…’
– जवाहर लाल नेहरू, 18 मार्च 1951 (विदेश सचिव को लिखा गया नोट)
यह नोट उस ऐतिहासिक ‘घुसपैठ’ से सम्बंधित है जिसके नायक मेजर रालेंग्ञाव(बॉब) खथिंग (1912 – 1990 ई.) के बारे में अत्यल्प जन ही जानते हैं। मणिपुर के उखरुल में जन्मे रालेंग्ञाव मणिपुर की किसी जनजाति से होने वाले प्रथम स्नातक थे। ब्रिटिश शासन के अंत के पश्चात पहले तो मणिपुर ने स्वतंत्र लोकतांत्रिक सरकार गठन करने का प्रयास किया किंतु तत्कालीन बर्मा (म्यान्मार) द्वारा सत्ता हथिया लिये जाने का संकट देखते हुये 1949 में मणिपुर ने स्वयं को भारत संघ का अङ्ग बना लिया। भारत में विलय से पूर्व ब्रिटिश सेना से निवृत्त हो मेजर रालेंग्ञाव कुछ दिन वहाँ पर्वतीय प्रशासन के मंत्री रहे थे।
कश्मीर की परिणति देख, अपनी मृत्यु से पहले तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने (बृहत) असम के राज्यपाल जयरामदास दौलतराम को बिना नेहरू को बताये ही उस कार्रवाई के लिये कह दिया था जिसका परिणाम बिना एक भी गोली चलाये महत्त्वपूर्ण सीमांत क्षेत्र तवांग (अब अरुणाचल प्रदेश का भाग) के भारत में विलय में हुआ।
राज्यपाल का आदेश मिलने पर 5 असम राइफल्स के 200 जवानों एवं 600 कुलियों के साथ मेजर खथिंग ने 17 जनवरी 1951 को अपना तवांग अभियान आरम्भ किया। तवांग तब तिब्बत सरकार के नियंत्रण में था जिसके द्वारा अत्यधिक कराधान से स्थानीय निवासी त्रस्त थे। पहुँचने के कुछ दिनों पश्चात मेजर खथिंग ने तिब्बती अधिकारियों एवं ग्रामवरिष्ठों (गाँव बुराह) से बैठक के लिये तवांग बौद्ध मठ के निकट एक ऊँची भूमि चुनी। सौ राइफलधारी जवानों ने घेरा बना लिया ताकि कोई गड़बड़ होने पर बल एवं शस्त्र प्रयोग किया जा सके। कूटनीति एवं वार्त्ता कौशल से मेजर खथिंग ने सबको भारत में विलय हेतु सहमत कर लिया। लगभग 2100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाला तवांग क्षेत्र नये भारत में आ मिला।तत्कालीन नेफा NEFA, North East Frontier Agency (वर्तमान अरुणाचल प्रदेश) में सहायक राजनीतिक अधिकारी, खमेङ्ग सीमांत खण्ड के पद पर रहते हुये मेजर ने वह कर दिखाया जो कि किसी चमत्कार से कम नहीं था। बिना किसी बल प्रयोग के उन्हों ने तवाङ्ग का भारत में विलय सुनिश्चित किया।
समय के खेल अनूठे होते हैं। 30 मार्च 1959 ई. को तिब्बत से भाग कर चौदहवें दलाई लामा ने तवांग के उसी बौद्ध मठ में शरण ली जिससे कुछ दूर पर ही कभी मेजर खथिंग ने तवांग की नियति में एक ऐतिहासिक अध्याय जोड़ा था।
स्रोत : http://claudearpi.blogspot.in/2015/09/the-man-who-brought-tawang-under-india.html एवं thebetterindia.com