लघु दीप अँधेरों में, पिछली कड़ियाँ : 1 , 2 , 3 , 4
सुभाषित
நெடுங்கடலும் தன்நீர்மை குன்றும் தடிந்தெழிலி
தான்நல்கா தாகி விடின் ॥2.17॥नेटुंंगटलुम तन्नीर्मइ कुंद्रम तटीदेळीली
तान्नल्क्का ताकी वीतीनஅறத்தா றிதுவென வேண்டா சிவிகை
பொறுத்தானோ டூர்ந்தான் இடை ॥4.37॥अरत्तारु ईतुवेन वेंटा सीवीकइ
पोरुत्तानो ऊम्दान ईटइ(तमिळ तिरुक्कुरल से, लघु छन्दों का एक प्राचीन आदरणीय ग्रंथ जिसमेंं धर्म, अर्थ एवं काम, इन तीन पुरुषार्थों से सम्बंधित सद्कथन हैं।)
मेघों ने जो जल सोखा है, यदि न लौटायें तो विशाल समुद्र की जल सम्पदा भी समाप्त हो जाये।
धर्म का कर्म फल पुस्तकों में वर्णित हो, आवश्यक नहीं, उसे तो शिविका ढोने वाले एवं उसमें सवारी करते हुये से जाना जा सकता है।
शिविका पालकी के लिये संस्कृत शब्द है, तमिळ में भी प्रयुक्त होता है, सीवीकइ देखें।
धान की देसी प्रजातियों के संरक्षण एवं पुन: प्रसार को समर्पित एक महिला
पूजा में अक्षत से लेकर देवदुर्लभ महाशालि के सुगंधित खाद्य तक करोड़ो का मुख्य भोजन चावल प्रदान करने वाला धान (वैज्ञानिक नाम Oryza sativa) भारत में 14000 हजार वर्ष पहले खेती में उपयोग में आया तथा दस हजार वर्षों में इसकी लाख से अधिक प्रजातियाँ हो गईं जिनमें से अब मात्र 6000 ही बची हैं! उल्लेखनीय है कि देसी जलवायु में सहस्राब्दियों तक विकसित होने के कारण धान की इन प्रजातियों में भिन्न भिन्न औषधीय गुण पाये जाते हैं।
शीला बालाजी तमिळनाडु में न्यास AIM for Seva के माध्यम से धान की 30 देसी प्रजातियों के संरक्षण एवं किसानों में वास्तविक प्रसार पर कार्य कर रही हैं। उनके सफल उद्योग हेतु राष्ट्रपति ने 2017 के नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया।
धान की प्रजातियों के संरक्षण में देश में अन्य जन भी लगे हैं, उदाहरण के लिये मध्यप्रदेश से बाबूलाल दाहिया तथा उड़ीसा से डॉ. देबल देब।
Adyar Library अडयार पुस्तकालय
थियोसॉफिकल समाज के संस्थापक हेनरी ऑरकॉट ने दिसम्बर 1886 ई. में कुल 24 भाषाओं में उपलब्ध 200 पुस्तकों के साथ चेन्नई के अडयार क्षेत्र में पुस्तकालय की स्थापना की। आज इस पुस्तकालय में दो लाख पुस्तकें संग्रहीत हैं। इनके अतिरिक्त 20000 ताड़पत्र एवं भोजपत्रों पर लिखी पाण्डुलिपियाँ भी संदर्भ हेतु उपलब्ध हैं जिनमें ऋग्वेद, ब्राह्मण, उपनिषद, आयुर्वेद से सम्बंधित ग्रंथ भी हैं। मोबाइल के मासिक व्यय से भी कम, अत्यल्प वार्षिक शुल्क में पुस्तकालय सेवायें उपलब्ध कराता है। स्कैनिंग तथा प्रतिलिपि लेने की सुविधायें भी उपलब्ध हैं।
उल्लेखनीय है कि यहाँ से पाण्डुलिपियों के संदर्भों का उपयोग आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण में होता है तथा यह पुस्तकालय आज मद्रास विश्वविद्यालय का संस्कृत एवं भारत-विद्या शोध केंद्र भी है।
अन्तिम बार अपने नगर के पुस्तकालय कब? या कदापि नहीं? नहीं तो एक दिन हो आइये न! इण्टरनेट के इस युग में भी पुस्तकालयों में ऐसा बहुत कुछ मिलेगा जो अन्यत्र दुर्लभ है।