लघु दीप अँधेरों में, पिछली कड़ियाँ : 1 , 2 , 3 , 4, 5
सुभाषितानि
संप्राप्य भारते जन्म सत्कर्मसु पराङ्मुखः
पीयूषकलशं मुक्त्वा विषभाण्डमुपाश्रितः ६५
भारत में जन्म ले कर भी सत्कर्मों से विमुख रहना वैसे ही है जैसे अमृतकलश को किनारे रख विष से भरे घड़े को प्राथमिकता देना।
कर्मभूमिं समासाद्य यो न धर्मं समाचरेत्
स च सर्वाधमः प्रोक्तो वेदविद्भिर्मुनीश्वर ६७
इस कर्मभूमि में जन्म ले कर भी जो धर्माचरण नहीं करता, उसे वेदविद मुनीश्वर सबसे अधम श्रेणी का बताते हैं।
एवं भारतभूभागं प्रशंसन्ति दिवौकसः
ब्रह्माद्या अपि विप्रेन्द्र स्वभोगक्षयभीरवः ६९
इस प्रकार अपने भोगकाल के क्षयी होने से भयभीत ब्रह्मादि देवता भी भारत भूमि की प्रशंसा करते हैं
तस्मात्पुण्यतमं ज्ञेयं भारतं वर्षमुत्तमम्
देवानां दुर्लभं वापि सर्वकर्मफलप्रदम् ७०
अत:, यह भारतवर्ष सबसे उत्तम माना जाना चाहिये, सर्वकर्मफलप्रदाता जो देवों को भी दुर्लभ है।
अस्मिन्पुण्ये च भूभागे यस्तु सत्कर्मसूद्यतः
न तस्य सदृशं कश्चित्त्रिषु लोकेषु विद्यते ७१
इस पुण्यभूमि पर जो सत्कर्मों में उद्यत है, उसके समान त्रिलोकी में कोई नहीं है।[नारद पुराण, अध्याय 3]
Six Sigma, सिक्स सिग्मा वाली महिला
Six Sigma प्रक्रियागत सुधार हेतु तकनीक एवं युक्तियों के एक विशिष्ट समुच्चय को कहते हैं। पूर्व पारिभाषित कारकों का आधार ले विचलन के सांख्यिकीय विश्लेषण पर आधारित इस समुच्चय का प्रयोग बड़े बड़े संगठन अपने उत्पाद एवं सेवाओं में सुधार हेतु करते हैं। सिक्स सिग्मा 99.99966 प्रतिशत तक की अचूकता दर्शाता है, जबकि पञ्च सिग्मा 99.977 प्रतिशत तक की। ऐसा नहीं है कि सिक्स सिग्मा को कार्यरत देखने के लिये आप को बड़े संगठन एवं व्यापारिक प्रतिष्ठानों तक ही पहुँचना होगा। साधारण मनुष्य भी सिक्स सिग्मा प्रवीण होते हैं। आप को एक ऐसी ही महिला से मिलवाते हैं। प्रात:काल उठने से ले कर रात सोने तक वह सिक्स सिग्मा के अनुसार चलती हैं। प्रातराश, भोजन, औषधि, घर की स्वच्छता, काम करने वालों का ध्यान, कपड़ों की सफाई, विवाहादि आयोजनों में व्यवस्था, बीजों का रख रखाव, तीज त्यौहार, रोग सुश्रुषा, शिशु एवं बच्चों की देखभाल इत्यादि इत्यादि जाने कितने काम वह सिक्स सिग्मा की दक्षता से करती हैं, उनकी विचलन की सीमा भी पञ्च सिग्मा दक्षता तक ही नीचे उतरती है।
वह कोई अन्य नहीं, आप के परिवार की अनन्य गृहिणी हैं। गृहिणी का ध्यान रखें एवं सम्मान करें। उनके काम को प्रतिष्ठा दें।
बिहारी स्ट्राबेरी
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वही धान, गेहूँ, तनिक तिलहन की अल्प उपज की मार झेलते बिहार के श्रमिकों का अन्य राज्यों में प्रवासी होना कोई नई बात नहीं किन्तु नई बात यह है कि वहाँ से सीख कर एक युवक लौटा तथा उसने स्ट्राबेरी उगा कर वह श्रीगणेश किया जिसने गाँव की कायापलट कर दी। नक्सली समस्या एवं निर्धनता से ग्रस्त औरंगाबाद जिले के चिल्हकी बीघा गाँव के बृजकिशोर महतो एवं उनके पुत्र गुड्डू कुमार को इसका श्रेय जाता है। गुड्डू कुमार ने हिसार के एक स्ट्राबेरी फार्म पर इसकी खेती सीखी तथा सरकारी तंत्र के हतोत्साहन के होते हुये भी स्वयं आगे बढ़ते हुये इस स्ट्राबेरी की खेती आरम्भ की। साठ घरों वाला यह गाँव पास पड़ोस के कई गाँवों का प्रेरणा स्रोत बना हुआ है।
मात्र सात पौधों से आरम्भ हुई इस लघु शांत क्रांति ने गाँव की काया पलट कर दी। अब अल्प समय में किसान रु. तीन लाख प्रति बीघा तक कमा लेते हैं। श्रमिक अपने घर रहते हुये सात हजार मासिक कमा लेते हैं तो महिलायें पैकिंग कर दो सौ रुपये प्रतिदिन।
पेट पालने के लिये काम की खोज में गाँव क्या प्रांत से भी बाहर जा कर ठोकर खाना, इस गाँव के निवासियों के लिये भूत की बात हो गयी है। आरम्भिक लागत अधिक है किंतु मन में दृढ़ इच्छा हो तथा काम में लगन तो क्या सम्भव नहीं?
आप के पास पड़ोस में ऐसा कुछ घटित हो रहा हो तो बताइये न!स्रोत : https://www.thebetterindia.com/135126/bihar-farmers-taste-success-with-sweet-strawberries/
उत्तम