सनातन दर्शन तथा आयुर्वेद में शाकाहार से सम्बंधित असंख्य संदर्भ हैं। इस विषय में विवाद का प्रश्न भी व्यर्थ ही है। संसार में किसी भी अन्य सभ्यता में शाकाहार इस प्रकार से मुख्य धारा में प्रचलित नहीं रहा जैसे भारत में। सहस्राब्दियों से चला आ रहा यह दर्शन एवं परम्परा वर्तमान आँकड़ों से भी स्पष्ट हैं।
मांसाहार के वैश्विक आँकड़ों का अवलोकन करें तो भारत विश्व में एक विशिष्ट अपवाद है। एक सर्वेक्षण के अनुसार यद्यपि लगभग दो तिहाई भारतीय पूर्ण रूप से शाकाहारी नहीं हैं परंतु भारत का प्रति व्यक्ति वार्षिक मांस उपभोग विश्व में न्यूनतम है – मात्र ४ किलोग्राम प्रति व्यक्ति। विश्व के अन्य देशों की आर्थिक स्थिति, विकास, व्यापार, कृषि उत्पाद इत्यादि से प्रति व्यक्ति मांस उपभोग में एक सम्बन्ध दिखता है तथा अनेक देशों में यह आँकड़ा १०० किलोग्राम प्रति व्यक्ति से भी अधिक है परंतु भारत वर्षों से ४ किलोग्राम के साथ न्यूनतम स्तर पर ही है। स्पष्ट है कि भारत का अपवाद होना धार्मिक तथा पारम्परिक कारणों से ही है।
ऋग्वेद से लेकर श्रुतियों, आयुर्वेद तथा लोकोक्तियों तक में शाकाहार के लाभ की बातें सर्वत्र हैं। सनातन दर्शन में इसके दो मुख्य कारण हैं – अहिंसा और आरोग्य।
ऋग्वेद में यः पौरुषेयेण क्रविषा समङ्क्ते (१०।८७।१६-१९) इत्यादि हों अथवा अथर्ववेद का –
ब्रीहिमत्तं यवमत्तमथो माषमथो तिलम् एष वां भागो निहितो।
रत्नधेयाय दान्तौ मा हिंसिष्टं पितरं मातरं च ॥
अर्थात हे दन्तपङ्क्ति वालों! चावल, जौ, माष अर्थात उड़द और तिल आदि खाओ। ये अन्न तुम्हारे लिए ही बनाये गए हैं। उनकी हत्या मत करो जो माता-पिता बनने की योग्यता रखते हैं। तथा
शिवौ ते स्तां ब्रीहीयवावबलासावदोमधौ । एतौ यक्ष्मं विबाधेते एतौ मुण्चतौ अंहस: ॥
हे मनुष्य ! चावल, जौ आदि धान्य तुम्हारे लिए कल्याणकारी हैं। ये आरोग्यकारी हैं तथा सात्विक होने के कारण पाप वासना से भी दूर रखते हैं।
गीता के अध्याय १७ में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने तीन प्रकार के आहार तथा उनके सेवन करने वालों के प्रकृति की बात की – आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रियः। सात्विक, राजसी तथा तामसी॥ तो अध्याय १६ में अहिंसा तथा भूतमात्र के प्रति दया –
अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम् । दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम् ॥
मनुस्मृति के अध्याय पाँच में भक्ष्य-अभक्ष्य का विवरण है जिसमें कहा गया है –
यावन्ति पशुरोमाणि तावत्कृत्वो ह मारणम् । वृथापशुघ्नः प्राप्नोति प्रेत्य जन्मनि जन्मनि ॥
(वृथा पशु हनन करने वाला परलोक में अनेक जन्म पर्यन्त उतनी ही बार मारा जाता है जितने रोम उस मारे हुए पशु के शरीर पर हों।)
नाकृत्वा प्राणिनां हिंसां मांसं उत्पद्यते क्वचित् । न च प्राणिवधः स्वर्ग्यस्तस्मान्मांसं विवर्जयेत् ॥
(प्राणियों की हिंसा किये बिना कभी मांस प्राप्त नहीं हो सकता और जीवों की हत्या करना स्वर्ग-साधन नहीं है अतः मांस खाना छोड़ देना चाहिए।)
अहिंसा के अतिरिक्त व्याधि मुक्त जीवन के लिए भी –
न भक्षयति यो मांसं विधिं हित्वा पिशाचवत् । न लोके प्रियतां याति व्याधिभिश्च न पीड्यते ॥
(जो शास्त्रोक्त विधि-विहित भी मांसभक्षण का त्याग करता है वह व्यक्ति लोगों का प्रिय होता है तथा रोगों से पीड़ित नहीं होता।)
इसके अगले श्लोक ‘अनुमंता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी । संस्कर्त्ता चोपहर्त्ता च खादकश्चेति घातका: ॥’ में कहा गया है कि मारने की आज्ञा देने वाला, मांस को काटने वाला, पशु को मारने वाला, पशुओं को मारने के लिए मोल लेने और बेचने वाला, पकाने वाला, परोसने वाला और खाने वाला ये सभी घातक एवं पापी हैं। मनु स्मृति में ही मांसभक्षण के त्याग को अश्वमेघ के तुल्य भी माना गया है। और भी – फलमूलाशनैर्मेध्यैर्मुन्यन्नानां च भोजनैः। न तत्फलं अवाप्नोति यन्मांसपरिवर्जनात् ॥ अर्थात पवित्र फल-मूलों के खाने और ऋषियों के खाने योग्य अन्न का भोजन करने से भी वह फल प्राप्त नहीं होता, जो मांस के त्यागने से होता है।
मनुस्मृति के समरूप ही तिरुक्कुरल के २५१ से २६० कुरल भी मांसाहार के विरुद्ध तथा अहिंसा की प्रशंसा में हैं। महाभारत के विभिन्न पर्वों में भी यह विवरण है, विशेष रूप से अनुशासन पर्व के अंतर्गत ११५ तथा ११६ अध्याय मांसभक्षण निषेध विषयक अध्याय हैं जिनमें मांस भक्षण का स्पष्ट निषेध है तथा मांसभक्षण का त्याग करने वाला सदा दीर्घ आयु एवं नीरोग होता है ऐसा बताया गया है।
संक्षेप में सनातन ग्रंथों में असंख्य संदर्भ हैं जिनमें मांसभक्षण को राक्षसी एवं तामसी बताया गया है। स्वस्थ तथा दीर्घ आयुष्य के लिए मांसभक्षण के त्याग की बात की गयी है। जैन दर्शन तो अहिंसा का समानार्थी ही है! सनातन दर्शन के अनुसार आहार सम्पूर्ण जीवन को प्रभावित करता है तथा इससे व्यक्ति निर्माण भी होता है। शाकाहार स्वास्थ्यप्रद, मानवीय और प्राकृतिक सौन्दर्यपरक आहार है, तो मांसाहार रोगों का घर, राक्षसी और विकृतिपरक। शाकाहार सात्विक है, तो मांसाहार तामसी। ऐसे में प्रति व्यक्ति सौ किलोग्राम से भी अधिक मांसभक्षण वाले देशों में मांस का इतना विस्तृत व्यवसाय होते हुए भी आधुनिक वैज्ञानिक अध्ययनों से क्या पता चलता है?
आधुनिक आहारविदों का मत अध्ययनों से स्पष्ट होता जा रहा है कि योजनाबद्ध शाकाहारी आहार स्वास्थ्यप्रद तथा पर्याप्त पोषक तो है ही, अनेक व्याधियों की रोकथाम के लिए भी लाभदायक है।
बड़े पैमाने पर हुए अनेक वैज्ञानिक अध्ययनों में हृदय रोग, रक्तचाप, मधुमेह तथा कैंसर सहित अनेक शारीरिक तथा मानसिक व्याधियों में शाकाहार के स्पष्ट लाभ पाए गए।https://www.bbc.com/news/health-45720970
यह भी पाया गया कि शाकाहार में शरीर के भरण-पोषण के लिए सारे आवश्यक पोषक तत्व होते है, साथ ही हानिकारक तत्वों का स्तर अल्प होता है। वर्ष २०१० सा.सं. में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि शाकाहारियों में मांसाहारियों की तुलना में मानसिक अवसाद का स्तर न्यून होता है और उन्हें सारतर मनोदशा का भी पाया गया। (https://nutritionj.biomedcentral.com/articles/10.1186/1475-2891-9-26)।
सनातन दर्शन के संदर्भों सदृश पिछले कुछ वर्षों में आधुनिक वैज्ञानिक अध्ययनों में भी असंख्य शाकाहार के स्पष्ट लाभ को सिद्ध करते हैं जिन्हें एक लेखांश में समाहित करना सम्भव नहीं है। विकसित देशों में पिछले कुछ वर्षों में पादप-आधारित आहार की नयी कम्पनियाँ अत्यंत सफल हुई हैं तथा पादप-आधारित आहार (plant based food) का चलन अत्यंत ही सामान्य होता जा रहा है। पश्चिमी देशों में अत्यधिक मांसाहार तथा उसके व्यवसाय ने सदियों से यह भ्रम बना रखा था कि क्रीड़ा, स्पर्धा इत्यादि के लिए मांसाहार उपयुक्त है तथा शाकाहार में पर्याप्त प्रोटीन नहीं होता । अनेक अध्ययनों में ये बातें असत्य सिद्ध हुई हैं। २०१८ में अत्यंत लोकप्रिय हुई प्रमाणविषयक चलचित्र (documentary) गेम चेंजर्स ऐसे ही अध्ययनों पर आधारित है।
इस चलचित्र में दर्शाया गया है कि कैसे विश्व के सबसे सुदृढ़, तीव्र तथा सशक्त खिलाड़ी शाकाहारी हैं और मांसाहार से मिलने वाले प्रोटीन इत्यादि के तथ्य भ्रामक हैं। मानव दन्त पङ्क्ति तथा पाचन तंत्र प्रकृति ने मांसाहार के लिए बनाया ही नहीं। मानव नेत्र की विविध रंगों के देखने की क्षमता भी मांसाहारी पशुओं से भिन्न है। प्रोटीन के मूल स्रोत भी वृक्ष ही होते हैं जिनसे वह पशुओं तक जाता है। पश्चिमी देशों में पादप आधारित आहार तथा शाकाहार (vegan) की अप्रत्याशित वृद्धि इन अध्ययनों की महत्ता को दर्शाते हैं।
गेम चेंजर्स चलचित्र में जेम्ज़ विल्क्स जो अमेरिकी विशिष्ट सेना में प्रशिक्षक हैं तथा The Ultimate Fighter के पूर्व विजेता भी, विश्व में भ्रमण कर मांसाहार, प्रोटीन और सशक्तता के सत्य जानने का प्रयास करते हैं। सर्वोच्च खिलाड़ियों तथा वैज्ञानिक तथ्यों से परिपूर्ण यह चलचित्र प्रमाण अनेक भ्रमों को दूर कर सत्य पर प्रकाश डालता है। सत्य अर्थात – शिवौ ते स्तां ब्रीहीयवावबलासावदोमधौ. एतौ यक्ष्मं विबाधेते एतौ मुण्चतौ अंहस:।
सम्पादकीय टिप्पणी :
Vegan अर्थात केवल शाक, वनस्पति व पादप स्रोतों वाला आहार पश्चिमी अवधारणा है। भारत में दूध को स्वाभाविक नैसर्गिक आहार माना गया क्योंकि माँ के स्तनों से पहला आहार दूध का ही मिलता है। तत्पश्चात पशुमांस भक्षण या उसकी अनुपस्थिति के आधार पर मांसाहार व शाकाहार श्रेणियाँ मानी गयीं। भारत के शाकाहार में दूध या उससे बने पदार्थों का सामान्य निषेध नहीं है। यहाँ का vegetarianism दूध सहित है। वैश्विक स्तर पर अब तो अनेक वर्ग बन चुके हैं।