अकादमिक धूर्तता के कुछ नगीने –
“I show how deeply embedded the ‘slut assumption’: that any time a woman appears with a piece of valuable jewellery, everyone assumes that she got it from some man she slept with: her husband (if she is good girl) or a lover (if she is unmarried and not a good girl). (It) is, even in the minds of people who know it is counter factual. The use of rings to identify legal partners plays an important role in Ramayana, where, when Sita is a prisoner on Lanka, she and Rama give Hanuman rings to carry back and forth to prove they are who they say they are.
And a taste for jewellery is presented as evidence of the weakness of women there too, when Sita sends send Rama off to hunt a jewel-encrusted deer that she covets, thus making herself vulnerable to Ravana in absence of Rama.”
“ … the book [Against Dharma: Dissent in the Ancient Indian Sciences of Sex and Politics – yet to be published.] is about the way these two scientific texts [Arthashastra and Kamasutra] challenge Dharma justifying dishonesty, violence and adultery, among many other things.”
“Contemporary India is an uneasy volatile mix. Hindutva has come to stand for the oppression of Muslims, Dalits and women…”
उपर्युक्त उद्धरण वेण्डी डॉनिगर द्वारा दिये गये तथा कल ‘द हिंदू’ में छपे साक्षात्कार से लिये गये हैं। हिंदू परम्परा को तोड़ मरोड़ Sensationalism का सहारा ले प्रस्तुत करने के लिये यह अमेरिकी इण्डोलॉजिस्ट कुख्यात रही है। आने वाली नयी पुस्तक में यह अर्थशास्त्र एवं कामसूत्र को धर्म के विरुद्ध स्थापित कर रही है।
उद्धरणों में रेखांकित अंश भारत में मात्र एक वर्ष पढ़ी वेण्डी की भारत के बारे में विकृत तथा अधकचरी समझ को रेखांकित करते हैं। वेण्डी पश्चिमी विपणन के लटके झटकों एवं विकृत आधुनिक विपणन युक्तियों को भी प्राचीन भारत से जोड़ कर देखती हुई एक ऐसे परिदृश्य को प्रस्तुत करती है जिसके लिये उसकी भाषा का ही एक शब्द उचित होगा – Twisted.
हीरे के व्यापारी De Beers की युक्ति को भारतीय स्त्रियों की स्वर्ण चाहना से जोड़ते हुये वह अपना slut assumption आगे बढ़ाती है जिसके लिये दाम्पत्य के सर्वोच्च भारतीय आदर्श सीता एवं राम का उदाहरण देती है। भावना पक्ष या परम्परा की गहराई तो दूर हैं, उसे भौतिक उपादानों की भी समझ नहीं। चूड़ामणि भी उसके लिये ring है तथा स्वर्ण मृग jewel-encrusted deer. हिंदू विवाह बंधन जिसके कि सात जन्मों तक बने रहने की मान्यता एवं निर्वाह के लिये प्रमाणों की आवश्यकता नहीं, उसके लिये legal partnership मात्र है।
अर्थशास्त्र नीति का, राजनीति का ग्रंथ है जिसमें सम्बंधित सभी पक्ष धर्म एवं अर्थ के समन्वय के साथ प्रस्तुत किये गये हैं, राजा के काम जीवन पर यथार्थ का अनुशासन भी लगाया गया है, जिसे जानना प्रत्येक हिंदू के लिये सहज सी बात है, न समझने की धूर्तता का प्रदर्शन करते हुये वह अर्थशास्त्र एवं कामसूत्र के आचार्यों द्वारा अर्थ एवं काम को धर्म के विरुद्ध स्थापित बताती है। उनके ऊपर छली होने तथा अकादमिक रूप से निष्ठावान न होने का परोक्ष आरोपण भी करती है, जब कहती है कि आरम्भ एवं अंत में धर्म की महिमा गा तथा अपने से पुराने आचार्यों के उद्धरण दे वे बच गये!
स्वयं को ‘पूरे वयस्क जीवन संस्कृत रूपी धान के खेत में काम करने वाली’ एवं Sanskritist बताने वाली दम्भी वेण्डी क्या इतनी मूर्ख हो सकती है कि उसे पुरुषार्थ चतुष्टय के एक दूसरे के पूरक होने तथा समग्र लक्ष्य होने की मूल स्थापनाओं के बारे में समझ ही न हो?
नहीं, यह सब वह जान बूझ कर कर रही है। रोटी, कपड़ा, मकान तथा प्रसिद्धि हेतु ऐसे अकादमिक किसी भी स्तर तक उतर सकते हैं, विलक्षण धूर्तता का सहारा ले सकते हैं। सनसनी विपणन में उनकी सहयोगी होती है।
हिंदुत्त्व के लिये oppression of Muslims, Dalits and women के प्रयोग के साथ ही समकालीन भारत के प्रति उसकी जो नीयत तथा समझ है, एक बृहद पटल पर उभर आता है जिसके लक्ष्य पर भारतीय दाम्पत्य है, भारतीय परम्परा है, स्त्रियाँ हैं तथा भारतीय वैचारिकी भी है। इन सबका ध्वंस उसका लक्ष्य है।
ऐसी प्रवृत्तियों के विरुद्ध राजीव मलहोत्रा जैसे जन के संगठित प्रयास हो रहे हैं किंतु क्या वे पर्याप्त हैं? भारत की लड़ाई भारत के निवासी कितनी लड़ रहे हैं? उन्हें राज्यतंत्र का कितना सहयोग है? अनुकूल पारिस्थितिकी Ecosystem है या नहीं? उसके विकास हेतु क्या किया जा रहा है? आगामी पीढ़ियाँ ऐसे झाँसों की चपेट में न आ कर, समझते हुये तथा अपना गौरव बनाये रखते हुये कैसे लड़ें, क्या इसके लिये कुछ किया जा रहा है? इन प्रश्नों पर विचार तथा कार्य की आवश्यकता है।
वेण्डी को पढ़ने वाले तथा अङ्ग्रेजी तंत्र के कारखाने से निकले फेमिनिज्म की छौंक सराहते कितने युवजन ‘प्रॉडक्ट’ इस उपनिषद श्लोक से परिचित होंगे?
त्वं स्त्री पुमांस्त्वं च कुमार एकस्त्वं वै कुमारी ह्यथ भूस्त्वमेव।
त्वमेव धाता वरुणश्च राजा त्वं वत्सरो ग्न्यर्यम एव सर्वम्॥ [एकाक्षरोपनिषद्, 10]
यदि नहीं हैं तो किसका दोष है? उनका या हमारे शिक्षा तंत्र का? उनका तो नहीं ही है। जब जानेंगे ही नहीं तो वेण्डी से सहमत तो होंगे ही, साथ ही उसका कवच बन कर भारतीयता के समक्ष खड़े भी होंगे। ऐसा हो भी रहा है।
उपनिषद परम्परा में ही एक उद्धरण मिलता है जब याज्ञवल्क्य जनक के यहाँ पहुँचते हैं। जनक पूछते हैं,”ज्ञान चर्चा के लिये आये हैं या गो धन के लिये?”
याज्ञवल्क्य उत्तर देते हैं,”दोनों के लिये राजन।”
इसके पश्चात ज्ञान चर्चा होती है, याज्ञवल्क्य गो एवं धन के साथ विदा होते हैं। समस्या का हल इस छोटे से दृष्टांत में छिपा है। पेट तथा प्रसिद्धि-नाम-पहचान अध्येताओं की मूल आवश्यकतायें हैं। अत्युच्च आदर्शों पर पहुँचे हुये कल्पितों की बातें न कर हमें इस पर ध्यान देना होगा कि कैसे सत्ता एवं विद्या के सहयोग से अनुकूल पारिस्थितिकी एवं सक्षम प्रतिरोधी तथा विधायी जन सामने आयें जो लड़ सकें तथा सकल गुणवत्ता का लक्ष्यचिह्न भी ऊपर कर सकें। एक राष्ट्र का भविष्य धूर्तता एवं मृषा वाचा के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। विद्वानों को याज्ञवल्क्य तथा सत्ता को जनक होना ही होगा। आंतरिक अनुशासन तथा उद्देश्य का औचित्य एवं उच्चता ही शुचिता सुनिश्चित करेंगे।
इन दो के परस्पर सहयोग के पथ में जो वामपंथ द्वारा प्रोन्नत झिझक है, तब जबकि वे स्वयं सत्ता सुख को अघा अघा भोग रहे हैं, उससे मुक्त होना होगा। वेण्डी जैसों के प्रत्युत्तर में याज्ञवल्क्य जैसे व्यावहारिक, मेधावी, तेजस्वी एवं योद्धा विद्वान निकलें, इसके लिये यह मौलिक आवश्यकता है।
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ताभिर्धर्मार्थौ यद्विद्यात्तद्विद्यानां विद्यात्वम् ॥
सांख्यं योगो लोकायतं चेत्यान्वीक्षिकी ॥ [अर्थशास्त्र, 1.2.9-10]
विद्याओं की वास्तविकता यही है कि उनसे धर्म तथा अधर्म के यथार्थ स्वरूप का बोध होता है।
सांख्य, योग एवं लोकायत – ये आन्वीक्षिकी विद्यायें हैं।
राजीव मल्होत्रा ने वेंडिस चाइल्ड सिंड्रोम का भी उल्लेख किया है, कि किस तरह से वेंडी जैसे प्रभावशाली अकादमिक उभरते हुए अकादमिक छात्रों को अपनी विचारधारा में ढालते है, और प्रकारान्त से किसी अन्य विचारधारा के अकादमिक विमर्श के प्रवेश को हतोत्साहित किया जाता है.