कविता, अनाम, अफगानिस्तान
लिखा है मेरी देह पर, प्रीतम का नाम
धुल जायेगा, न करूँ स्नान
सब पहनेंगे स्वच्छ वस्त्र, कल उत्सव के दिन
पहनूँ मैं वे ही मैल कुचैल, प्रियतम के सब गन्ध
निज अधरों से चूम मुझे तू, रहने दे मेरी जीभ मुक्त
अकथ कथायें कहनी हैं, मुझको तुमसे हो उन्मुक्त
रात एक जो देखी सपना, हुई तुम्हारी मौत
ओठ सूख कर हुये बिहाने, काँटों के स्फोट