गुम्बद گنبد शब्द पारसी से हमारे यहाँ आया जिसके मूल में आक्रांता मुसलमानों का भारत में जिहादी अभियान है। मैं शब्द की बात कर रहा हूँ, संरचना की नहीं। पारसी संस्कृत परिवार की ही भाषा है। गुम्बद की संगति संस्कृत ‘कुम्भ’ से है, कोई भी वैसी आकृति कुम्भ या कुम्भाकार कहलाती है। ध्यान दें कि कवर्ग के दो अक्षर क एवं ग, तथा पवर्ग के दो अक्षर ब एवं भ। इन दो के परिवर्तन से ही कुम्भ गुम्ब हो जाता है, आगे भाषा के अपने व्याकरण रूप देते हैं। गुम्ब या कुम्भ में गोला समाहित है किंतु आकार को रेखित करने हेतु गोल-गुम्बद जैसा शब्द चलन में आया।
कुम्भ आकृति का भारतीय वास्तु में प्रयोग पुरातन है। नागर शैली के मदिरों के शिखरों पर बहुधा कुम्भ कलश की आकृति मिल जायेगी, कमल एक अन्य पवित्र अवयव था जिसका उपयोग शिखरों के शीर्ष पर हुआ। शिखर की उसके एक अवयव कुम्भ से भिन्नता दर्शाने हेतु अन्य शब्दप्रयोग हुये यथा कलश एवं शिखर की मुख्य संरचना के बीच का अवयव आँवले की आकृति का होने के कारण आमलक कहलाया।
मन्दिरों का स्थापत्य देह के अङ्गों से भी प्रभावित हुआ। स्त्री का कुम्भाकार वक्ष ‘कामकुम्भ‘ कहलाता था। यदि आप वक्ष को क्षैतिज स्थिति में कर के देखेंगे तो गोलाकार मंदिर शिखर की साम्यता दिखेगी।
पारसी (आगे फारसी व अरबी समन्वित) चलन में गोला सरल मूल रूप में ही बनाया जाता, प्याज का आकार दिया जाता। मनुष्य प्रेरणा अपने प्रयोग की वस्तुओं से लेता ही है।
यदि आप शिखर शब्द के अर्थ देखेंगे तो नुकीले प्रलम्ब शिखा चोटी आदि वाले अर्थ प्रमुखता से दिखेंगे। लोगों के मन में यही अर्थ रहा तथा जब आक्रान्ता शासकों की भाषा व संस्कृति से सम्पर्क हुआ तो भेद की सहजता हेतु गोलाकार शिखर को गुम्बद कहने लगे तथा प्रलम्ब को शिखर किंतु ऐसा भेद मंदिरों की मूल वास्तु शब्दावली में नहीं था। शिखर शब्द के अन्य अर्थ देखेंगे तो इसका उत्तुङ्ग गोल आकृति वाला अर्थ समझ में आयेगा, वैसे ही जैसे स्त्री स्तन के शीर्ष पर चूचुक हों!
वे अर्थ हैं – काँख armpit और मल्लिका पुष्प की कलिका।
काँख की गहराई पर ध्यान दें एक गोल रिक्त स्थान बनता है। इसकी तुलना द्विस्तरीय मंदिर शिखर से करें जिसमें ऊँचा प्रलम्ब शिखर लघु गोलाकार शिखर के ऊपर बनाया जाता है।
मल्लिका की कली भी देखें – गोलाकार सुंदर।
कालिदास जब ‘तन्वी श्यामाशिखरदशना’ लिखते हैं तो शिखरदशना का अर्थ तीखे दाँतों वाली नहीं होता, वैसी सुंदरी होती है जिसके दाँत मल्लिका की कलिका समान हों। जहाँ उत्तर की नागर आदि शैलियों में प्रलम्ब हो या गोलाभ, चोटी को शिखर ही कहा जाता है, वहीं दक्षिण की शैली में प्रलम्ब भाग विमान कहलाता है तथा उसके ऊपर की गोलाभ आकृति शिखर। इससे भी शिखर के व्यापक अर्थ का सङ्केत मिलता है।
जब आप आक्रांता शब्दों को अपने शब्दों के आगे वरीयता देते हैं, उद्देश्य चाहे जो हो, तब अनजाने ही अपने शब्दों को मार रहे होते हैं। आज मंदिरों की चोटियों हेतु शिखर शब्द का प्रयोग स्यात ही कोई करता हो किंतु गुम्बद सभी कहते हैं।
इस विचित्र सत्य पर ध्यान दें कि जहाँ आप ने आकार भेद कि सुविधा हेतु अपनी वास्तु शब्दावली के मर्म व अर्थ की उपेक्षा कर आक्रांता शब्द अपनाया, उसने आप के मूल शब्द को ही प्रतिस्थापित कर दिया तथा आकारभेद का मर्म जाता रहा। शासकीय शब्दावली का जनता की वाणी पर प्रभाव पड़ता है, आप के यहाँ तो सहस्र वर्ष आक्रांता शासक बने रहे! किंतु तब भी लोगों ने संस्कृत को बचाये रखा तथा स्वतन्त्रता के पश्चात अधिक संस्कृत/प्राकृत/देसज शब्द प्रयोग से बाहर हुये हैं।
आप के यहाँ गुम्बद कभी नहीं था, कलश कुम्भ के वास्तु आयाम अनेक थे, इस बात का ध्यान रखते हुये शिखर हेतु शिखर शब्द ही प्रयोग में लायें, इससे आप दक्षिण से भी जुड़ जाते हैं।