मानवता के सामने आये कठिनतम समय का उजला पक्ष यह है कि मृत्योर्माऽमृतङ्गमय, और तमसो मा ज्योतिर्गमय के संदेश देने वाला देश आशामय है और संसार की सर्वाधिक गहन तथा दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या के होते हुये भी न केवल रोग को नियंत्रण में रखे हुए है वरन अपने देश के साथ-साथ पड़ोसी देशों के नागरिकों को भी आपदाग्रस्त देशों से सफलतापूर्वक बाहर निकालकर लाया है।
संसार इस समय मारक कोरोना विषाणु से भयभीत है। चीन के वुहान प्रांत से पसरे विषाणु (SARS-CoV-2) ने अल्पकाल में वुहान से बाहर आकर संसार भर को कोविड-19 (COVID-19) महामारी से त्रस्त कर दिया है। इस विषाणु ने वैश्विक स्तर पर अल्पसमय में ही आँकड़ों के अनुसार अब तक तिरासी हज़ार से अधिक लोगों को मार दिया है तथा लाखों अन्य को संक्रमित किया है।
मृतकों की संख्या की दृष्टि से अमेरिका, स्पेन, इटली और जर्मनी ने इस रोग की जन्मस्थली चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। अमेरिका, ईरान, कैनडा, और यूरोप के अनेक देशों में इस महामारी से मरने वालों की संख्या पाँच अंकों में पहुँच चुकी है। गत सोमवार को केवल न्यू यॉर्क नगर में इस रोग से 731 लोगों की मृत्यु हुई। समय के साथ प्रभावित देशों और मृतकों, दोनों के ही अभी और बढ़ने की आशंका है।
विषाणु जीवन की ऐसी इकाई है जो जीव और निर्जीव के बीच की कड़ी जैसा व्यवहार करती है; प्रोटीन के खोल में लिपटा नाभिकीय अम्ल का एक अणु जो जैविक कोशिकाओं के बीच मारक हो सकता है परंतु उनसे बाहर के वातावरण में किसी निर्जीव अणु की भाँति निष्क्रिय पड़े रहकर अनुकूल वातावरण की प्रतीक्षा कर सकता है। जैविक शरीर के बाहर विषाणुओं को नष्ट करना बहुत कठिन नहीं है परंतु मानव शरीर में प्रवेश करने के पश्चात उनकी स्थिति उस आतंकी जैसी प्रभावी हो जाती है जिसने किसी नागरिक को बंधक बना लिया हो।
जीवों के शरीर में प्रवेश करने पर त्वरित प्रजनन द्वारा अल्प समय में ये अगणित हो जाते हैं और अनेक प्रकार से एक जीव से दूसरे में प्रसारित होते रहते हैं।
भारतीय सभ्यता के शुचिता के आग्रह, तथा हाथ मिलाने के स्थान पर दूर से नमस्कार करने जैसी प्रथाएँ कठिन परिस्थितियों में भी रोग के प्रसार को रोकती हैं। दाह संस्कार जैसी उन्नत प्रथा उस विषाणु को तुरंत नष्ट करके समाज को सुरक्षित करती है। तेरहवीं, सूतक, सौर आदि जैसी रीतियाँ किसी सम्भावित रोग के प्रसार में अवरोध का कार्य करती हैं। आधुनिक पश्चिमी सभ्यता धीरे-धीरे भारतीय मूल्यों के महत्व को समझकर जिस प्रकार अहिंसा, योग, शाकाहार, और वैविध्य के सम्मान जैसे भारतीय विचारों को अपना रही है, उसी प्रकार यह काल दाह-संस्कार जैसे अनूठे भारतीय विचार की वैश्विक स्वीकार्यता का भी है ताकि भविष्य की संतति को वर्तमान की विभीषिकाओं से यथासम्भव बचाया जा सके।
अपने नागरिकों की सुरक्षा के उद्देश्य से अमेरिका और भारत सहित संसार के अनेक देश लॉकडाउन का सामना कर रहे हैं। यथासम्भव लोग घरों से कार्यरत हैं किंतु न तो हर काम घर बैठे हो सकता है और न ही हर स्थान पर आवश्यक संरचना उपस्थित है। ऐसे में महामारी के भय के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के चक्र के रुकने से अनेक लोगों का जीवन प्रभावित हुआ है। अमेरिका में भी अनेक लोगों की जीविका जाने की आशंका है और भारत के महानगरीय घरेलू श्रमिक वर्ग की स्थिति कोई विशेष नहीं हैं।
भारत में एक घातक प्रवृत्ति देखने को मिल रही है जहाँ तथाकथित समाजसेवी निर्धन बस्तियों में मुख्यतः अल्पशिक्षित निम्नवर्ग को मास्क आदि बाँट कर उसके विडियो बनाकर सोशल मीडिया पर साझा कर रहे हैं। जिस समय में छुआछूत के सर्वोच्च स्तर के पालन की आवश्यकता है, वहाँ ऐसे कई समूह खुले हुए (अनपैक्ड) मास्क आदि नंगे हाथों से पूरी असावधानी के साथ बाँट रहे हैं जो रोग को रोकने के प्रतिकूल उसके प्रसार का कारण बन सकते हैं। ऐसे समूहों को प्रोत्साहित करने के स्थान पर राष्ट्रहित में प्रतिबंधित करने की आवश्यकता है। ये कार्य प्रशिक्षित और प्रामाणिक संस्थानों द्वारा ही किये जाने चाहिये।
कोरोना-विपदा द्वारा व्याप्त संकट से डूब रहे यूरोप और अमेरिकी स्टॉक मार्केट में चीन द्वारा किये जा रहे भारी क्रय के समाचार भी प्रचुर हैं।
चीन पर आ रहा संशय अकारण नहीं है। पहले तो चीन ने आपदा की गम्भीरता को संसार भर से छिपाकर रखा और आगे इटली में आपदा के महामारी बनने से पहले वहाँ के प्रमुख नगरों के चौराहों व मॉल आदि में चीनी मूल के व्यक्तियों के समूहों द्वारा चीनी नागरिकों के साथ रोग के कारण किये जा रहे तथाकथित भेदभाव को मिटाने के उद्देश्य से आते-जाते लोगों को तथाकथित अहानिकर आलिंगन किया जा रहा था। चीन को उस समय में इटली ने वुहान संकट का सामना करने के लिये जो सामग्री दान की थी, अब इटली के कठिन समय में चीन वही सामग्री इटली को बाज़ार-भाव पर बेच रहा है।
आर्थिक उथलपुथल के चलते जर्मनी के हेस प्रांत के वित्तमंत्री टॉमस शेफ़र ने रेल से कटकर आत्महत्या कर ली। यह आत्महत्या कोरोना-संकट से होने वाले आर्थिक प्रभावों की ओर ध्यानाकर्षण कराती है।
मदिरा द्वारा कोरोना से कथित बचाव का जनवाद पसरते पर कड़े इस्लामी विधान वाले ईरान में मदिरा के नाम पर स्पिरिट पीने से अनेक लोग मर गये। इसी प्रकार अमेरिका में एक पति-पत्नी ने रोग से बचाव के लिये हायड्रॉक्सीक्लोरोक्विन को लाभप्रद पाये जाने की बात सुनकर उसके भ्रम में घर में पहले से रखे हुये क्लोरोक्विन फ़ॉस्फ़ेट रसायन को पानी में घोलकर पी लिया जिससे पत्नी का स्वास्थ्य बिगड़ गया और पति की मृत्यु हो गयी। संसार के किसी भी क्षेत्र में, कोई भी समस्या हो, वाट्सऐप, फेसबुक आदि पर सलाहों की बाढ़ आ जाती है। न तो हर सूचना प्रामाणिक होती और न ही स्पष्ट। विषय-विशेषज्ञता के अभाव में कुछ का कुछ समझने की आशंका भी बढ़ जाती है। कुल मिलाकर चिकित्सा आदि से सम्बंधित परामर्श देने में सबको अति सचेत रहने की आवश्यकता है। अप्रामाणिक जानकारी को आगे न बढ़ाएँ।
दिल्ली के दंगों के तुरंत पश्चात दिल्ली पुलिस ने छापे मारकर इस्लामिक सम्प्रदाय तबलीगी जमात के देश भर से आये सदस्यों को दिल्ली के इस्लामिक केंद्रों में बहुत बड़ी संख्या में छिपा हुआ पाया। ऐसे समय पर उनका दिल्ली में छिपना अपने आप में बहुत कुछ कहता है। देश के हर साम्प्रदायिक दंगे के पश्चात का प्रचलित संवाद यही होता है कि “पता नहीं कौन लोग थे, सब बाहर से आये थे …” यद्यपि दिल्ली दंगे के मास्टरमाइंड पकड़े जा चुके हैं, उनके अवैध वित्तीय कारनामों का पता प्रशासन को है और देशी-विदेशी सम्पर्कों की जाँच हो रही है, दंगों के इस पहलू पर भी ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
पुलिस पर थूकने के कुकृत्य हों या महिला चिकित्सा कर्मियों पर अश्लील संकेत व टिप्पणियाँ या अन्य प्रकार के यौनिक दुर्व्यवहार करने की घटनाएँ; ये जहाँ तबलीग़ियों के मानसिक स्तर का दर्पण हैं, वहीं उनके दिल्ली में असामान्य संख्या में छिपे होने के मुख्य कारण से ध्यान हटाने का षड्यन्त्र भी।
अमेरिका व अन्य विकसित देशों में संक्रामक रोगियों द्वारा किसी पर थूकने को हत्या का प्रयास माना जाता है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहाँ ऐसे कुकृत्य करने वालों को हत्या के प्रयास की धाराओं में बंदी बनाया गया है।
मूर्खता पर किसी मज़हब विशेष का एकाधिकार नहीं है किंतु कुछ देश हानिकर और दुर्विनीत मूर्खों के साथ भारतीय प्रशासन जैसी मृदुता का व्यवहार नहीं करते। इसराएल के अति-परम्परावादी यहूदियों के एक समूह ने भी पासओवर पर्व पर प्रशासन के अनुरोध को धता बताते हुए ब्नेई ब्राक (Bnei Brak) नगरी में हठ करके एकत्रीकरण किया तो प्रशासन ने प्रधानमंत्री के विशेषाधिकार से नगर को सील कर दिया। सर्जिकल मास्क और सुरक्षा उपादानों से युक्त पुलिस ने नगर के सभी मार्गों पर अंतर-नगरीय आवागमन को रोक दिया। पुलिस प्रवक्ता के अनुसार चिकित्सकीय सहायता के अतिरिक्त किसी भी अन्य कारण को कोई छूट नहीं दी जा रही है।
इस विषाणु से स्वयं बचने और रोग के प्रसार को रोकने के लिये एकांत एक प्रभावी उपाय है जिससे एक व्यक्ति से दूसरे में संक्रमण रोका जा सकता है। अकारण घर से बाहर न निकलिये, निकलना अनिवार्य हो तो भी पर्याप्त दूरी बनाये रखिये। दूसरा उपाय खाँसी, थूक आदि से बचने-बचाने का है, जिसका पालन संयम, जागरूकता और मास्क आदि के प्रयोग द्वारा भली-भाँति किया जा सकता है। तीसरा उपाय हाथ साबुन से धोना, और अस्वच्छ हाथों से अपना मुख, आँख आदि छूने से बचना है। रोग के लक्षणों या आशंका की स्थिति में सुनी-सुनाई बातों में न आ कर किसी स्वास्थ्य केंद्र या रुग्णालय जाकर चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिये।
हमारे जीवनकाल में मानवता के सामने आये कठिनतम समय का उजला पक्ष यह है कि मृत्योर्माऽमृतङ्गमय, और तमसो मा ज्योतिर्गमय के संदेश देने वाला देश आशामय है और संसार की सर्वाधिक गहन तथा दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या के होते हुये भी न केवल रोग को नियंत्रण में रखे हुए है वरन अपने देश के साथ-साथ पड़ोसी देशों के नागरिकों को भी आपदाग्रस्त देशों से सफलतापूर्वक बाहर निकालकर लाया है। जिस प्रकार भारत ने ध्वनि और प्रकाश द्वारा सेवाकर्मियों का देशव्यापी धन्यवाद किया, उससे निस्सृत आशा की किरण से सारा संसार प्रभावित हुआ है, और आज यह पंक्तियाँ लिखते समय हमारे पिट्सबर्ग नगर में भारत के ही अनुकरण में सेवाकर्मियों को धन्यवाद देने के उद्देश्य से लाइट-अप नाइट का आयोजन किया गया है। पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा कोविड-19 के लिये टीके की खोज भी कर ली गयी है। पोलियो को संसार से मिटाने वाला टीका खोजने वाले नगर के लिये यह एक और सुखद समाचार है।
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया । सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ॥
‘मघा’ हेतु यह अतिथि आमुख द्विभाषी ‘सेतु पत्रिका’ के सम्पादक श्री अनुराग शर्मा, पिट्सबर्ग, अमेरिका द्वारा लिखा गया। मघा प्रबंधन उनका आभारी है।
सम्पूर्ण को समेटता बढ़िया आलेख।
यह टीका बाजार में कब तक आएगा??
क्लिनिकल ट्रायल की नवीन पद्धति से जल्दी ही टीका मास-प्रोडक्शन तक लाने का प्रयास है। यूपीएमसी की एक सम्बंधित प्रेस कॉन्फ़्रेंस की कड़ी –
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