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शब्दों की यात्रा सर्पिल भी होती है। ईश्वर या सर्वोच्च सत्ता हेतु खालसापंथियों द्वारा प्रयुक्त एक शब्दयुग्म है – सच्चा पातशाह ।
बुद्ध की वाणी ‘इदं दुक्खं अरियसच्च’न्ति भिक्खवे, मया पञ्ञत्तं। तत्थ अपरिमाणा वण्णा अपरिमाणा ब्यञ्जना अपरिमाणा सङ्कासना‘ में सच्च शब्द देखा जा सकता है। मागधी प्राकृत में आर्य से अरिय हुआ, अर्द्धवर्ण को पूर्ववर्ती से लेकर पूरा करने प्रवृत्ति।
‘सत्य‘ में त्य का ‘च्च’ हो गया। ‘य’ हेतु ‘ज’ का प्रयोग लोक विशेषता है तथा प्राकृत एवं तमिळ जैसी भाषाओं में बहुधा किसी व्यञ्जन-वर्ग के केवल प्रथम एवं पञ्चम वर्ण ही प्रयोग में आते हैं यथा क-वर्ग से ‘क एवं ङ’, च-वर्ग से ‘च एवं ञ’ आदि।
ज च-वर्ग में आता है अत: उसका पहला वर्ण लेने पर होगा सत्च जोकि प्रयोग में नहीं। पूर्ण वर्ण से पूर्व के अर्द्धवर्ण को उच्चारण सरलीकरण में वही कर दिया जाता है। इस प्रकार सत्य से स+च्+च अर्थात सच्च हो गया। अत: संस्कृत ‘आर्यसत्य‘ ‘अरियसच्च‘ हुआ।
सच, सचाई जैसे शब्द भी सच्च से ही हैं। खालसापंथी शब्द सच्च की व्युत्पत्ति यही है।
पारसी शब्द ‘पातशाह‘ रोचक है। इसे सुनते ही मन में ‘बादशाह‘ शब्द आता है जोकि ठीक ही है। ब प-वर्ग से है और द त-वर्ग से। पात से बाद उस भाषा में होना सहज ही होगा जिसमें किसी वर्ग के पाँँचो वर्ण प्रयुक्त हों
पृथ्वी पर राजा सर्वोच्च पोषक विष्णु का प्रतीक या रूप सनातन धारा में बहुत पहले से माना जाता था। पृथु के नाम से पृथ्वी हुई तथा पृथ्वी का दोहन करने में प्रजा से काम लेने तथा उसका रञ्जन कल्याण करने के कारण उन्हें प्रथम राजा कहा जा सकता है तथा ‘राजा, विष्णु का अवतार’ की अवधारणा के नेपथ्य में पृथु ही हैं।
कालांतर में राजा वास्तव में प्रजापालक हो या शोषक, उसकी शक्तिमंत सर्वोच्चता रूढ़ हो गई। खालसापंथियों के समय में आक्रांता राजाओं का ही बोलबाला था तथा वास्तविक पालक राजा सपने जैसा ही था। धरा के राजे झूठे हुये, विष्णु अवतार की अनुकृति में गुरु ही ‘सच्चा राजा’ सच्चा पातशाह हो गया।
पातशाह शब्द के दो भाग हैं – पात एवं शाह। पात शब्द पारसी/फारसी में ‘पाद‘ एवं पुरानी फारसी में ‘पति‘ है, ठीक समझे – संस्कृत का ‘पति‘ अर्थात स्वामी। द त-वर्ग में आता है, अत: पारसी से खालिस हुआ शब्द पाद ‘पात’ हुआ जो यहाँँ के पति से मेल भी रखता था।
‘शाह‘ शब्द का इतिहास अनोखा है। भारत के एक मंत्री के इस उपनाम को ले कर कभी चर्चायें भी हुईं। वास्तविकता यह है कि इस शब्द का मूल संस्कृत ही है। पुरानी पारसी में राजा हेतु शब्द प्रयुक्त था – xšāyaθiya जो कि अवेस्तन भाषा के xšaϑra- से वहाँ पहुँचा था। x को क्ष से समझने वाले अनुमान लगा रहे होंगे कि यदि उसे हटा दिया जाय तो šāya से शाह होना दिखने लगता है। x क्यों हटा? सरलीकरण की प्रवृत्ति के कारण।
हाँ, तो xšāyaθiya < xšaϑra– है क्षत्रिय < क्षत्र। प्रजा को ‘क्षत‘ अर्थात ‘चोट’ या हानि से बचाने वाला ‘क्षत्रिय’ राजा था। आप कभी सोचे थे कि शाह शब्द का पितामह ‘क्षात्र‘ है?
सच्चा पातशाह का अर्थ हुआ वह जो वास्तव में प्रजा का रक्षण करने वाला सर्वोच्च स्वामी राजा है।
इसमें कोई बहुत बड़ा दार्शनिक आध्यात्म नहीं है वरन तत्कालीन परिस्थितियों में जनमानस को एक ऐसा व्यावहारिक मार्ग बताना है जो उन्हें अत्याचारी आक्रांताओं द्वारा दिये दु:खों से पार पाने व संघर्ष करने की शक्ति दे सकते। ‘राज करेगा खालसा‘ का अर्थ समझ में आया? खालसा तो जानते ही हैं कि पारसी ‘खालिस‘ से है – शुद्ध।
प्रथम आदर्श ब्रह्मस्वरूप राजा रामचन्द्र की जय!
॥ॐ विष्णवे नम:॥