पिछले भाग में सम-विभाजन पद्धति में नक्षत्रों के योगतारा निर्धारित होते हुये हमने कुछ तारकों को विषम विभाजन पर विचार करते समय देखने के लिये छोड़ दिया था। अब आगे बढ़ते हैं।
नक्षत्रों के नाम देखें तो स्पष्ट होता है कि बहुधा उनके नाम योगताराओं के या मुख्य तारकों की समूह आकृतियों के आधार पर रखे गये। यथा चित्रा का योगतारा spica क्रांतिवृत्त के निकट का प्रकाशमान तारा है तथा मात्र आधे अंश के देशांतर भेद पर स्थित स्वाति के अति प्रकाशमान योगतारा से मिल कर सरल अभिज्ञान के साथ साथ सु+अति (अत्युत्तम) की सञ्ज्ञा का पात्र है। मृगशिरा निकटवर्ती त्रिकाण्ड से मिल कर वास्तव में एक मृग के सिर की भाँति प्रतीत होता है। कृत्तिका के छ: तारे एक गँड़ासी की आकृति बनाते हैं जोकि काटने में प्रयुक्त होती है। साथ ही कृत्तिका के देवता अग्नि की भाँति ही वह समूह आकाश में दप दप करते प्रतीत होते हैं।
इन सबसे यह स्पष्ट होता है कि पहले नक्षत्रों को इस प्रकार से जाना गया तथा कालांतर में इनके नाम पर क्रांतिवृत्त के विभाजनों के नाम भी रख दिये गये। आरम्भ में विभाजन असमान थे तथा आगे गणना की सुविधा हेतु उन्हें सम-विभाजन में किया गया।
विषम विभाजन की पारम्परिक रूपरेखा इस प्रकार है, जिसमें कोणीय विभाजन के तीन समूह हैं जो क्रमश: ०.५, १, १.५ गुणकों के समूह में विभाजित हैं:
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 |
अश्वायुज | भरणी | कृत्तिका | रोहिणी | मृग | आर्द्रा | पुनर्वसु | पुष्य | अश्लेषा | मघा | पू. फाल्गु. | उ. फाल्गु. | हस्त | चित्रा |
1.0 | 0.5 | 1.0 | 1.5 | 1.0 | 0.5 | 1.5 | 1.0 | 0.5 | 1.0 | 1.0 | 1.5 | 1.0 | 1.0 |
1.0 | 1.5 | 2.5 | 4.0 | 5.0 | 5.5 | 7.0 | 8.0 | 8.5 | 9.5 | 10.5 | 12.0 | 13.0 | 14.0 |
15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 21/22 | 22/23 | 23/24 | 24/25 | 25/26 | 26/27 | 27/28 |
स्वाति | विशाखा | अनुराधा | ज्येष्ठा | मूल | पू. आषा. | उ. आषा. | अभिजित | श्रावण | धनिष्ठा | शतभिषा | पू. भाद्र. | उ. भाद्र. | रेवती |
0.5 | 1.5 | 1.0 | 0.5 | 1.0 | 1.0 | 1.5 | 1.0 | 1.0 | 0.5 | 1.0 | 1.5 | 1.0 | |
14.5 | 16.0 | 17.0 | 17.5 | 18.5 | 19.5 | 21.0 | 21.0 | 22.0 | 23.0 | 23.5 | 24.5 | 26.0 | 27.0 |
दो पद्धतियाँ हैं। एक में अभिजित को कोई स्वतंत्र कोणीय विस्तार न दे कर ३६०/२७ से गुणा कर प्रत्येक नक्षत्र का कोणीय विस्तार जाना जाता है तथा दूसरे में नाक्षत्र मास की वास्तविक अवधि २७.३२१७ से ३६० में भाग दे कर अभिजित को बची हुई कोणीय परास ४.२३८४ अंश दे दी जाती है।
पहले में यदि पुष्य के योगतारे का देशांतर १०६ अंश लें तो कृत्तिका व मघा, दो महत्त्वपूर्ण नक्षत्रों के पारम्परिक योगतारे अपनी कोणीय परास से बाहर हो जाते हैं तथा चित्रा के योगतारे का देशांतर १८१ अंश आता है। समान अयनांश लेने पर दूसरी पद्धति में भी स्थिति वही रहती है।
यदि अयनांश में परिवर्तन कर चित्रा तारे का देशांतर १८० कर दें तो पुष्य का देशांतर १०५ रह जाता है। ऐसे में भी दोनों विषम विभाजनों में कृत्तिका का योगतारा अपने नक्षत्र की कोणीय परास से बाहर चला जाता है। कृत्तिका के योगतारे का बहुत ही ऐतिहासिक महत्त्व है, हम इसकी अनुमति नहीं दे सकते। एक विकल्प यह भी है कि पुरानी परम्परा अनुसार कृत्तिका से ही नक्षत्रमाला का आरम्भ लिया जाय किंतु ऐसा करने से अब रूढ़ हो चुके अश्विनादि से भेद बहुत बढ़ जायेगा।
उल्लेखनीय है कि विषम विभाजन की दोनों व्यवस्थाओं में अश्विनी से शून्य लेने पर पुष्य का कोणीय मान १०५.४१ पर ही समाप्त हो जाता है अत: पुष्य का योगतारा १०६ अंश नहीं हो सकता। समान विभाजन वाले खण्ड में हम प्रेक्षण की कोणीय त्रुटि पर सङ्केत कर चुके हैं। यहाँ यह बताना भी उपयुक्त होगा कि पुष्य के जिस योगतारे का अक्षांश शून्य बताया गया, वह वास्तव में ०.०८ – ०.०९ अंश की परास में पड़ता है। समान विभाजन की स्थिति में पुष्य का कोणीय विभाजन १०६.६७ अंश पर समाप्त होता है जिसके कारण उसके योगतारे का देशांतर १०६ स्वीकार्य हो जाता है। अत: समविभाजन की स्थिति में पुष्य के योगतारे को ही आधार बनाना उपयुक्त है जो कि क्रांतिवृत्त से लगभग सम्पाती है।
विविध क्रमचय सञ्चयों में बड़े रोचक परिणाम व संकेत मिलते हैं किंतु अयनांश व पुरातन प्रेक्षण की सीमाओं आदि पर अधिक समय न दे हमें अपना स्वतंत्र निर्णय लेना है।
यदि २८ नक्षत्र ले कर १४-१४-१४ के दो समूहों में बाँटें तो पुष्य के ठीक सामने अभिजित पड़ता है। उसके महत्त्व को स्वीकारते हुये हम अभिजित को उसका स्वतंत्र कोणीय मान देंगे। अभिजित के अतिरिक्त समस्त नक्षत्रों की कोणीय परास समान अर्थात ३६०/२७.३२१७ = १३.१७६४ अंश होगी तथा अभिजित की ४.२३८४ अंश। इस प्रकार हम सम एवं विषम दोनों पद्धतियों का लाभ लेंगे।
समान कोणीय परास को एक रोचक गणितीय रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है:
{(२३x३३)/(१३२ x९७)}x१०३
२३ अंश, ४७ कला, ५७.६८ विकला के अयनांश के साथ चित्रा के योगतारा spica का देशांतर १८० अंश है तथा इससे ठीक विपरीत बिंदु पर नक्षत्रमाला व अश्वायुज का आरम्भ बिंदु है। अयनांश विमर्श हमारे प्रकल्प का गौण अङ्ग मात्र है। लोग इससे परिचित हैं, अत: तारकों के देशांतर मान उस समय के सापेक्ष दिये गये हैं जब वसंतविषुव व अश्वायुज का आरम्भ सम्पाती थे। परिचय पर्याप्त हो जाने पर वे देशांतर मान देखे जाने चाहिये जो J2000 के वसंत विषुव के सापेक्ष विविध अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा प्रकाशित किये जाते हैं। वस्तुत: वे बीस वर्ष पीछे की स्थिति दर्शाते हैं। आज के लगभग मान जानने के लिये उन्हें ०.२७९४° पीछे करना होगा। यह मान अयन पश्चाभिगमन की आवृत्ति २५७७२ वर्ष मानने पर आता है। सैद्धांतिक ज्यौतिष इसे न मान कर एक लोलक सी स्थिति मानता है जिसमें कुछ नक्षत्रों की परास में अयनांश शून्य से अधिकतम मान के बीच दोलन करता है। इस मत के आधुनिक प्रवक्ता अयनांश की गति सर्पिल रूप में बताते हैं। पृथ्वी का अपने अक्ष से झुकाव हो या विविध पथों के उनसे कोणीय भेद, सब अपनी अपनी निश्चित आवृत्तियों से परिवर्तनशील हैं जो कि सहस्राब्दियों से ले कर लाख वर्षों तक है। ग्रहों की कक्षायें वृत्ताकार नहीं, दीर्घवृत्तीय हैं तथा चंद्रमा की गति बहुत ही जटिल है। ६० वर्षीय प्रेक्षण आधारित समायोजनों के प्रस्ताव के कारण हमें इन सबमें बहुत अधिक पड़ने की आवश्यकता नहीं।
कांतिमान की सीमा ५ तथा अक्षांश की सीमा १५ का अनुपालन करते हुये योगताराओं की सूची निम्नवत है।
क्रमाङ्क | नक्षत्र | योगतारा | कांतिमान | देशांतर | अक्षांश |
1 | अश्वायुज | β Arietis | 2.64 | 10.25 | 8.45 |
2 | भरणी | α Arietis, Hamal | 2.00 | 13.86 | 9.97 |
3 | कृत्तिका | Pleiades, η Tau, Alcyone | 2.87 | 36.08 | 4.07 |
4 | रोहिणी | Aldebaran, α Taurus | 0.75-0.95 | 46.01 | -5.46 |
5 | मृग | β Tau | 1.65 | 58.71 | 5.38 |
6 | आर्द्रा | γ Gem, Athena | 1.93 | 75.37 | -6.74 |
7 | पुनर्वसु | Pollux, β Gem | 1.16 | 89.35 | 6.68 |
8 | पुष्य | δ Cancri, Asellus Australis | 3.94 | 105 | 0.09 |
9 | अश्लेषा | ε Hydrae | 3.38 | 108.60 | -11.09 |
10 | मघा | Regulus, α Leo | 1.36 | 125.94 | 0.43 |
11 | पू. फाल्गु. | δ Leonis | 2.56 | 137.50 | 14.32 |
12 | उ. फाल्गु. | Denebola, β Leonis | 2.14 | 147.81 | 12.26 |
13 | हस्त | γ Vir | 2.74 | 166.42 | 2.82 |
14 | चित्रा | Spica, α Virginis | 0.98 | 180.0000 | -2.08 |
15 | स्वाति | κ Vir | 4.18 | 190.72 | 2.93 |
16 | विशाखा | α Librae | 2.75 | 201.31 | 0.35 |
17 | अनुराधा | δ Scorpionis, Dschubba | 2.29 | 218.70 | -2.00 |
18 | ज्येष्ठा | α Scorpionis, Antares | 1.06 | 225.87 | -4.59 |
19 | मूल | λ Scorpionis, Shaula | 1.62 | 240.79 | -13.79 |
20 | पू. आषा. | σ Sagittarii | 1.06 | 258.53 | -3.45 |
21 | उ. आषा. | 62 Sgr, c Sagittarii | 4.43 | 273.34 | -7.13 |
22 | अभिजित | β Cap | 3.05 | 280.24 | 4.59 |
23 | श्रावण | θ Cap | 4.08 | 290.06 | -0.59 |
24 | धनिष्ठा | δ Cap | 2.85 | 299.73 | -2.60 |
25 | शतभिषा | λ Aqr | 3.73 | 317.86 | -0.43 |
26 | पू. भाद्र. | γ Psc | 3.70 | 327.62 | 7.27 |
27 | उ. भाद्र. | γ Pegasi, Algenib | 2.84 | 345.30 | 12.62 |
28 | रेवती | ε Psc | 4.27 | 353.74 | 1.08 |
कुछ द्वितीयक तारे भी नीचे दिये गये हैं जिन्हें जोड़ने से आकाशीय प्रेक्षण में सुविधा रहेगी। ऐसे तारे जो क्रांतिवृत्त से अत्यधिक दूरी के कारण छोड़ दिये गये किंतु पहले से लोग उनकी कांति के कारण मानते थे, उन्हें प्रेक्षण की सुविधा हेतु प्रदर्श-तारकों की भाँति लिया जा सकता है जो निकटवर्ती योगतारे के अभिज्ञान में सहायक हों यथा Altair (α Aquilae), Arcturus (α Boötis), Betelgeuse (α Orionis)।
क्रमाङ्क | नक्षत्र | योगतारा | कांतिमान | देशांतर | अक्षांश |
2 | भरणी | 41 Arietis | 3.61 | 24.41 | 10.45 |
5 | मृग | Betelgeuse, α Orionis | 0.45 | 64.91 | -16.03 |
5 | मृग | ζ Tau | 2.97 | 61.07 | -2.19 |
5 | मृग | λ Orionis, Meissa | 3.39 | 59.87 | -13.37 |
7 | पुनर्वसु | Castor, α Gem | 1.58 | 86.53 | 10.10 |
11 | अश्लेषा | α Cancri, Acubens | 4.26 | 109.73 | -5.12 |
13 | हस्त | δ Corvi | 2.95 | 169.68 | -12.18 |
13 | पू. फाल्गु. | σ Leo | 4.05 | 144.87 | 1.69 |
14 | उ. फाल्गु. | β Vir | 3.60 | 153.36 | 0.73 |
15 | स्वाति | μ Vir | 3.87 | 196.31 | 9.68 |
20 | पू. आषा. | δ Sagittarii, Kaus Media | 2.72 | 250.78 | -6.48 |
22 | पू. आषा. | ε Sgr | 1.79 | 251.24 | -11.05 |
22 | पू. आषा. | ζ Sgr | 2.60 | 259.92 | -7.19 |
22 | पू. आषा. | λ Sgr | 2.82 | 252.52 | -2.13 |
22 | पू. आषा. | π Sgr | 2.88 | 262.51 | 1.44 |
22 | पू. आषा. | φ Sgr | 3.17 | 256.46 | -3.95 |
22 | पू. आषा. | τ Sgr | 3.32 | 261.05 | -5.09 |
22 | पू. आषा. | ξ2 Sgr | 3.52 | 259.72 | 1.66 |
22 | पू. आषा. | ο Sgr | 3.76 | 261.27 | 0.86 |
25 | अभिजित | α2 Cap | 3.58 | 280.05 | 6.93 |
28 | रेवती | δ Psc | 4.44 | 350.42 | 2.41 |
28 | रेवती | ζ Piscium, Revati | 5.28 | 355.91 | -0.14 |
कहते हैं कि रोहिणी से चंद्र को विशेष प्रेम था। चंद्रमा के परिक्रमा पथ का क्रांतिवृत्त से झुकाव ५.१५ अंश है। ज्येष्ठा को भी रोहिणी कहा गया है। रोहिणी और ज्येष्ठा के योगतारकों का अक्षांश देखें तो! इन दो में हमने कोई परिवर्तन नहीं किया, परम्परा से जो हैं, उन्हें ही लिया है। क्या इनके अक्षांशों की चन्द्रपथ से झुकाव मान से इतनी निकटता के कारण वैसा कहा गया? इनकी देशांतर स्थितियाँ भी लगभग एक सरल रेखा में हैं। रोहिणी दो, चंदा एक!
एक बात बताऊँ? आज जब शीत अयनांत के पश्चात गुरु और शनि क्रांतिवृत्त पर सम्पाती दिखेंगे तब दोनों हमारे अभिजित नक्षत्र के घर में होंगे।
यह तथ्य सदैव स्मरण रहे कि परम्परा में विविध नक्षत्रों के तारों की संख्या भी भिन्न भिन्न बताई मिलती है जोकि एक अन्य प्रमाण है कि नक्षत्रों का कोणीय विभाजन विषम था किंतु उसके लिये सैद्धांतिक परम्परा में बताये गये से भिन्न विषम विभाजन हेतु गणित का शून्य से आयोजन करना होगा। अभी हम परम्परा प्रचलित के निकट रहते हुये चल रहे हैं। आगे एक अन्य शाखा में इस पर कार्य किया जा सकता है कि कोणीय परास बताई गई तारक संख्याओं एवं विविध पुरातन प्रेक्षणों के अनुकूल हो।
अगले अङ्क में संवत्सर नाम प्रणाली और मास नाम पर विस्तार से।
बहुत सुंदर