Ecological and environmental role to Monotheism and Polytheism of Anthropologies
धर्म का तार्किक अर्थ तथा मान्यताओं की सटीक व्याख्या सबसे सहज एवं सुंदर रूप में स्वामी विवेकानंद ने किया है। सनातन धर्म एवं वेदांत ही नहीं, अन्य मत मतान्तरों की मान्यताओं की भी व्याख्या स्वामीजी के व्याख्यानों में मिलती है। उनके दिए गए अनेक उदाहरण कालांतर में दर्शन ही नहीं, विज्ञान के तथ्यों पर भी सत्य सिद्ध हुए तथा विज्ञान के शोधों की प्रेरणा भी बने। स्वामीजी से प्रभावित नामों में लीयो टोलस्टोय, निकोलस टेस्ला, जे डी सैलिंगर जैसे लोग थे। वर्ष २०१२ में वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित इस आलेख में उनके प्रभाव के एक रूप का सारांश मिलता है।
बृहद रूप में धर्म तथा दर्शन की गूढ़ बातों की सहज शब्दों में व्याख्या करने के अतिरिक्त स्वामी विवेकानंद की बातों में आधुनिक दर्शन, मनोविज्ञान तथा अन्य विषयों के भी सुंदर सिद्धांत सहज ही दिख जाते हैं। व्याख्यानों में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा भी कि किस प्रकार पश्चिम में अन्वेशियों का ध्यान बाहरी संसार की ओर रहा, वहीं सनातन दर्शन ने मनोविज्ञान तथा आंतरिक विज्ञान के गूढ़ रहस्यों की हर बात का उत्तर प्रदान किया। व्यावहारिक वेदांत पर दिए गए व्याख्यान में स्वामी जी ने स्वर्ग की परिकल्पना तथा उपनिषदों में उस परिकल्पना के परिष्कृत तार्किक रूप से विकसित होने की बात करते हुए अन्य मतों में भी स्वर्ग की कल्पना की बात की। स्वर्ग की परिकल्पना का विकास तथा वेदांत में उसकी सटीक परिभाषा के परे एक व्याख्यान में उन्होंने एक साधारण सी लगने वाली बात कही —
In the desert of Arabia, water is very desirable, so the Mohammedan always conceives of his heaven as containing much water. I was born in a country where there are six months of rain every year. I should think of heaven, I suppose, as a dry place, and so also would the English people.
अरबी मरुस्थल में पानी का अत्यंत अभाव है, इस कारण एक मोहम्मडन अपने स्वर्ग की कल्पना जलप्रचुर स्थान के रूप में करता है। मैंने ऐसे क्षेत्र में जन्म लिया जहाँ प्रत्येक वर्ष छ: मास वर्षा होती है। मेरी समझ से मेरा स्वर्ग एक शुष्क स्थान के रूप में होना चाहिए। अंग्रेजों के लिए भी ऐसा ही होना चाहिए।
एक अन्य व्याख्यान में उन्होंने ऐसी बात की —
This is the one point we must all try to understand, and it is one of the last superstitions to leave us. Everyone’s idea of pleasure is different. I have seen a man who is not happy unless he swallows a lump of opium every day. He may dream of a heaven where the land is made of opium. That would be a very bad heaven for me. Again and again in Arabian poetry we read of heaven with beautiful gardens, through which rivers run. I lived much of my life in a country where there is too much water; many villages are flooded and thousands of lives are sacrificed every year. So, my heaven would not have gardens through which rivers flow; I would have a land where very little rain falls.
यह एक ऐसा बिंदु है जिसे हम सबको समझने का प्रयास करना चाहिये, और यह उन अंधविश्वासों में से एक है जिनसे सबसे अंत में हम मुक्ति पाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के सुख की अवधारणा भिन्न होती है। मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जो तब तक प्रसन्न नहीं होता, जब तक पुलोमही (अफीम) की एक गोली न गटक ले, प्रतिदिन! उसका स्वर्ग तो ऐसा होगा जहाँ की धरती पुलोमही से निर्मित होगी। जबकि मेरे लिये ऐसा स्वर्ग बहुत ही बुरा होगा। अरबी काव्य में हम बारम्बार ऐसे स्वर्ग से साक्षात होते हैं जिसके सुंदर उद्यानों से नदियाँ प्रवाहित होती हैं। मैंने अपने जीवन का अधिकांश ऐसे क्षेत्र में बिताया जहाँ जल का प्राचुर्य है; गाँव के गाँव नदी की बाढ़ के पानी में डूब जाते हैं और प्रतिवर्ष हजारो जीवन उसकी भेंट चढ़ जाते हैं। इस कारण मेरे स्वर्ग में वे उद्यान नहीं होंगे जिनके बीच से नदियाँ बहती हों; मेरे स्वर्ग की धरा ऐसी होगी जिसमें अत्यल्प वर्षा होती हो।
साथ ही उन्होंने अन्य व्याख्यानों में मरुभूमि की प्रजातियों के बारे में यह भी कहा कि किस प्रकार मरुभूमि की घुमंतू प्रजातियाँ युद्ध करने को तथा अन्य सभ्यताओं को विध्वंस करने को तत्पर रहती हैं।
गहन बातों से परे इन छोटे उदाहरणों में भी कितना गहन दर्शन है, वह कालांतर में नृविज्ञान (anthropology) तथा परिस्थितिकी (ecology) में हुए शोधों से पता चलता है।
नृविज्ञान में १९६० से प्रारम्भ हुए शोधों में एक रोचक सिद्धांत यह निकला कि मरुभूमि तथा शस्य-श्यामला धरती वाले वर्षा-वन में रहे पूर्वज वाले मानवों की धार्मिक तथा सांस्कृतिक मान्यताएँ भिन्न होते हैं। आश्चर्य नहीं कि निष्कर्ष वही था। स्टैंफ़र्ड विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध जीव वैज्ञानिक रॉबर्ट सपोल्सकी इन शोधों के निष्कर्ष रूप में कहते हैं —
Worldwide, monotheism is relatively rare; to the extent that it does occur, it is disproportionately likely among desert pastoralists (while rain forest dwellers are atypically likely to be polytheistic). This makes sense. Deserts teach tough, singular things, a world reduced to simple, desiccated, furnace-blasted basics that are approached with a deep fatalism. “I am the Lord your God” and “There is but one god and his name is Allah” and “There will be no gods before me”— dictates like these proliferate. As implied in the final quote, desert monotheism does not always come with only one supernatural being —monotheistic religions are replete with angels and djinns and devils. But, they sure come with a hierarchy, minor deities paling before the Omnipotent One, who tends to be highly interventionist both in the heavens and on earth. In contrast, think of tropical rain forest, teeming with life, where you can find more species of ants on a single tree than in all of Britain. Letting a hundred deities bloom in equilibrium must seem the most natural thing in the world.
वैश्विक स्तर पर एकेश्वरवाद प्रसार वैविध्य की दृष्टि से अपेक्षतया संकेंद्रित है जोकि मरुस्थली पशुचारियों में व्यनुपाती रूप से अधिक पाया जाता है, जबकि वनप्रांतर में रहने वालों के असामान्य रूप से बहुदेववादी होने की सम्भावना अधिक रहती है। ऐसा होना ठीक भी है। मरुस्थल कठोर व एकक सीखें देते हैं, एक ऐसा संसार जो सरल, शुष्क व दाहसंस्कारित मूलभूत बातों तक सीमित रहता है जिन्हें गहन नियतिवाद के साथ जिया जाता है। “मैं सर्वस्व हूँ तुम्हारा ईश्वर” तथा “एक और केवल एक अल्लाह ही सब कुछ” तथा “मेरे रहते अन्य देवता नहीं” – इस प्रकार की बातें व आदेश बढ़ते जाते हैं। जैसा कि अंतिम कथ्य में अंतर्निहित है, मरुस्थली एकेश्वरवाद सदैव एक ही अलौकिक सत्ता के साथ नहीं उपस्थित होता – एकेश्ववादी मतों में देवदूत और जिन और शैतानी शक्तियाँ भरी पड़ी हैं। परन्तु, वे निश्चित रूप से अनुक्रम में उपस्थित होती हैं, क्षुद्र शक्तियाँ उस सर्वशक्तिमान के समक्ष नत रहती हैं जोकि स्वर्ग एवं धरती, दोनों में अति हस्तक्षेपी होता है। इसके विपरीत, ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वन पर विचार करें जोकि जीवन से भरपूर होता है, परिपूर्ण होता है, जहाँ के एक वृक्ष पर आप को सारे ब्रिटेन से अधिक चींटियों की प्रजातियाँ मिल सकती हैं। संतुलन के साथ शताधिक आराध्यों को प्रफुल्लित होने देना इस संसार में अवश्य ही सबसे स्वाभाविक बात होनी चाहिये।
स्टैंफ़र्ड विश्वविद्यालय के नृविज्ञानि प्रो रॉबर्ट टेक्स्टर की १९६७ में प्रकाशित A Cross-Cultural Summary में अनेकों सांस्कृतिक मान्यताओं में विभिन्नता का उत्तर इससे दिया गया है कि प्रजातियाँ किन विशेष प्रकार के वातावरणों में पनपीं।
नृविज्ञानि मेल्विन एंबलर और रॉबर्ट टेक्स्टर के शोध कार्य से मरुभूमि तथा शस्य श्यामला परिवेश में रहे मानव जातियों के अंतर का सारांश कुछ इस प्रकार से लिखा जा सकता है —
प्राचल (t) | वन्य | मरुभूमि |
वातावरण | मिश्रित | विरल |
सूर्य | जीवनदायी | निर्मम |
संसाधन | प्रचुर | सीमित |
विवाद | पुनर्वास | प्रतिशोध, युद्ध |
समाज | समतावादी | स्तरीकृत |
यौन सम्बंध | सहिष्णु | मृत्यदंड |
स्त्री अधिकार | पर्याप्त | पुरुष प्रधान |
धर्म | बहुदेववाद | एकेश्वरवाद |
स्वामी विवेकानंद के १८९३-९६ में दिए गए व्याख्यानों तथा १९६० के पश्चात हुए शोधों को समांतर पढ़ते हुए भला कैसे समानता नहीं दिखेगी?