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5S कार्यस्थल प्रबंधन की एक जापानी युक्ति है जिसे बड़े व्यावसायिक एवं उत्पादन समूहों ने अपनाया हुआ है। इस युक्ति का प्रयोग अनजाने ही सभी ऐसे व्यक्ति करते रहे हैं जो अनुशासन, व्यवस्था, सुघड़ता एवं स्वच्छता के आग्रही होते हैं। भारत की दक्ष गृहिणियों हेतु सुघड़ शब्द का प्रयोग अनायास ही नहीं है। पुरातन एशियाई सभ्यताओं में 5S का प्रयोग सामान्य है, जापानियों ने इसे औपचारिक नाम व आधुनिक संस्कार दिया।
जापानी शब्द एवं उनके तुल्य अंग्रेजी शब्द निम्नवत हैं। 5S के जो परिणाम होंगे, उनके लगभग हिंदी शब्द भी दिये गये हैं :
整理 Seiri – Sort – सुघड़
整頓 Seiton – Set in Order – सम्यक
清掃 Seiso – Shine – स्वच्छ
清潔 Seiketsu – Standardize – संविन्यस्त
躾 Shitsuke – Sustain – सतत
दीपावली पूजा के पूर्व घरों में जो वार्षिक अभियान चलाया जाता है, वह दैनिक 5S का ही व्यापक रूप होता है। यदि प्रतिदिन दीपावली मान लिया जाय तो दीपावली पर्व के समय किये जाने वाले बृहद स्तरीय स्वच्छता, देख रेख, संशोधन से सम्बंधित काम अत्यल्प रह जायें।
- पहले शब्द 整理 में आवश्यक व अनावश्यक का अभिज्ञान एवं तदनुसार दिक्काल सापेक्ष कर्म है कि जो जहाँ जब चाहिये, वहीं रहे, तब ही मिले।
- दूसरे शब्द 整頓 में आवश्यक उपादानों को ऐसे क्रम में लगाना समाहित है जिससे कि न्यूनतम स्थान एवं समय में उनका उपयोग सुनिश्चित हो सके।
- तीसरे शब्द 清掃 में स्वच्छता का भाव है कि जो उपादान व वस्तुयें प्रयोग में लाई जा रही हैं, उन्हें स्वच्छ रखा जाय।
- चौथे शब्द 清潔 का आशय ऐसी प्रक्रिया के निर्माण से है कि व्यक्ति निरपेक्ष रूप से पहले तीन का होना सुनिश्चित हो सके, मानकीकरण।
- पाँचवे शब्द 躾 का आशय अनुशासन से है कि इससे पूर्व के चारों को अनिवार्यत: किया जाता रहे, सतत समर्पण।
पहले चार शब्दों में जो आरम्भ का Sei है, वह वास्तविक कर्म से जुड़ा है तथा अंतिम शब्द का Shi एक और काम नहीं वरन जो कर रहे हैं, उसके नैरन्तर्य से है।
अपने हर काम में, प्रतिदिन 5S अपनायें, सुखी रहें, प्रसन्न रहें तथा निज परिवेश के अन्यों को भी रखें।
सरस्वती स्तुति:
शारदे, महिमा तवाऽनन्तो मत:, वेदवाचामप्यगोचरतां गत: ।
मादृशस्तद्वर्णने शक्ता: कथम्, नेश्वरा ऋषयोऽपि यं वक्तुं यत: ॥
शारदे …
हे जनन्यादाय वीणां पाणिना, त्वं मन: स्थैर्यं दिशस्यात्माश्रितान् ।
शब्द एव ब्रह्म नित्यं मृग्यताम्, वीणया त्वं शिक्षसे भक्ताँस्तत: ॥
शारदे …
हंसवाहनगा पदा रक्ताम्बुजम्, सम्पीड्य करुण्याक्तचेता: स्वाञ्जनान् ।
सत्वमाधायाऽवधूयैवं रज:, प्राप्यतामात्मेति मार्ग: शिक्षित: ॥
शारदे …
अक्षमालाऽलङ्कृतस्तेऽयं करोऽभ्यासदीक्षां शिक्षते मोक्षार्थिंनाम् ।
पुस्ताकाङ्कितपाणिना सन्देहिनाम्, शास्त्रचिन्तोपाय आर्ये ! सन्तत: ॥
शारदे …
मुग्धमनसां त्वं जनन्यालम्बनम्, मूकवाचां त्वं यत: शरणं मता ।
तत्परित्यज्याऽन्यदेवाँश्चारुणो:, त्वत्पदाम्बुजयोरिमे भक्तया रता: ॥
शारदे …