Dynamo यवनी भाषा के शब्द δύναμις से व्युत्पन्न है। जिसका अर्थ बल या शक्ति से लिया जाता है। इस नाम की जो युक्ति आज प्रचलित है उसके परिवर्द्धित रूप का बिजली उत्पादन में प्रयोग होता है। कहते हैं कि उक्त प्रभाव के आविष्कारक ने अनेक असफलताओं के पश्चात झुँझलाहट में अपनी युक्ति को फेंका तथा उसने पाया कि विद्युत प्रभाव घटित हुआ। बल युक्त चुम्बक था, सुचालक धातु पट्टिका थी, सिद्धांत का आभास था, उत्कट कर्म था किंतु वह घटित नहीं हो पा रहा था जिसकी अपेक्षा थी। जैसे भी हुआ हो, अपेक्षित तभी घटित हुआ जब वांछित गति हुई। बिन गति सब सून !
हिमालय से दक्षिण, कभी समुद्र से उत्तर पश्चिमी सागर से पूर्वी सागर तक तो कभी विंध्य के दक्षिण की भूमि आर्यावर्त कहलाती थी, भरतों की भारत कहलाती थी जिसकी अतुल प्रवाहिनी सरस्वती के तीर पर मानव सभ्यता के अमिट अध्याय लिखे गये। सरस्वती सूखी, अभूतपूर्व दुर्भिक्ष शृंखलाओं में शताब्दियों तक भारत ने जाने क्या-क्या झेला, आगे चल कर जाने कितना विनाश झेल आक्रांताओं को भी अपने में समो लिया, कटता रहा, बँटता रहा किन्तु अप्रतिहत जीवनी शक्ति के साथ बचा रहा।
आज विन्ध्य के उत्तर में सांस्कृतिक दुर्भिक्ष है। आक्रान्ताओं की भाषा, जीवन शैली, अनुकृतियों को अपनाये हिन्दी जन भारत देश के प्राय: समस्त मानक बिंदुओं की लब्धि में पीछे हैं। प्राकृतिक संसाधन देखें, भूमि की उर्वरता देखें, जन संसाधन देखें तो यह क्षेत्र सबसे सम्पन्न है। शेष भारत में उनकी छवि ‘श्रमिक वर्ग’ के उत्पादक क्षेत्र के रूप में ही अधिक है। ऐसा क्यों है?
अनुशासनहीनता, मिथ्या दम्भ एवं गर्व भाव, जातिवाद, अकर्मण्यता, क्षुद्र स्वार्थी प्रवृत्ति, व्यक्तिगत एवं संस्थागत उत्कृष्टता की प्राप्ति के प्रति समर्पण का अभाव — ये कुछ बातें हैं जो तत्काल मन में आती हैं। कोई भी परिवर्तन पहले अनिवार्यत: भीतर, मस्तिष्क के स्तर पर, व्यक्ति में घटित होता है। उससे आगे ही परिवार, समाज, ग्राम, नगर, क्षेत्र एवं देश आते हैं। ऐसा एक दिन में नहीं होता, बहुत ही समय, धैर्य एवं सतत सार्थक कर्म की आवश्यकता होती है जिससे ‘वातावरण’ में वांछित परिवर्तन होते हैं, एक सुचारु एवं सम्यक तन्त्र विकसित होता है किन्तु इन सबकी इकाई व्यक्ति ही होता है।
हिन्दी क्षेत्र की असफलता या कह लें तो दुर्दशा व्यक्ति की असफलता के कारण है, उस व्यक्ति की असफलता के कारण है जो श्रमिक नहीं है, जो किञ्चित ऊपर विराजमान है। वहाँ पर सार्थक परिवर्तन नहीं हो रहे तो नीचे भी नहीं हो रहे। मौलिक एवं स्थायी परिवर्तन कभी भी नीचे से नहीं होते, सदैव ऊपर से होते हैं, उनके द्वारा किये जाते हैं जो अल्पसंख्या में हैं, जो समर्थ हैं। हिन्दी क्षेत्र की असफलता उस अल्पसंख्या, उस विशिष्ट वर्ग की असफलता है जो या तो स्वार्थ के पङ्क में आकण्ठ डूबा हुआ है या जिसकी दृष्टि सङ्कुचित है, दूर तक देख ही नहीं सकती। हिन्दी क्षेत्र की असफलता उस चुम्बक-युक्ति में गति के अभाव से समझी जा सकती है जिसमें बल था, क्षमता थी किंतु नहीं थी तो सार्थक गति नहीं थी। आर्यावर्त का Dynamo मात्र पङ्गु ही नहीं है, वरन चलने की उसमें इच्छा ही नहीं है !
वह तर्क, वितर्क, उहापोह आदि के आवरण में अपने इस ‘मौलिक’ रोग को छिपाता है। वह मनोरञ्जन पश्चात वाह! वाह!! कर के सो जाने में विश्वास रखता है। साँस का क्या ठिकाना, कब जाये छूट? जी ले जैसे जीना है, मिली हुई है छूट ! उसे अपनी सन्तति की चिंता नहीं, पुरखों के सम्मान से ममत्व नहीं तथा भारत तो बहुत बड़ा है, उसका वह क्या कर सकता है ?
आज मौनी अमावस्या है। किसी ने प्रात:काल ही कहा कि आज के दिन तो चुप रह जाते ! मेरे मन में बहुत पहले शब्दों को ले कर कुछ पढ़ा हुआ ध्यान में आया। उस पुस्तक से यथावत प्रस्तुत है :
You cannot drink the word “water.” The formula H2O cannot float a ship. The word “rain” cannot get you wet. You must experience water or rain to truly know what the words mean. Words themselves keep you several steps removed from the experience.
And so it is with everything that I write about in this book. These are words that are meant to lead to the direct experience. If the words that I write ring true, it is very likely that you will take the ideas presented here and create your experience of them. I believe these principles and see them working all the time and want to share my experience of how they have worked for me.
You too see, in your own life, essentially what you believe. If, for example, you believe strongly in scarcity, think about it regularly, and make it the focus of your conversations, I am quite certain that you see a great deal of it in your life. On the other hand, if you believe in happiness and abundance, think only about them, talk about them with others, and act on your belief in them, it is a very good bet that you are seeing what you believe.
Oliver Wendell Holmes once said, “Man’s mind, stretched to a new idea, never goes back to its original dimension.” The principles that I write about in this book may require you to stretch to new ideas. Should you take these words and apply them to your life, you will feel the stretch marks in your mind, and you will never again return to the being that you were before.
– You’ll See It When You Believe It, Wayne W. Dyer.
अनुवाद जान बूझ कर नहीं दे रहा, सरल अंग्रेजी में है। आप इसे पढ़ रहे हैं या पढ़ रही हैं तो निश्चित ही उस ‘अल्पसंख्या’ से हैं जिसके ऊपर हिन्दी क्षेत्र की उन्नति का दायित्त्व है, जो स्वयं Dynamo का बलशाली चुम्बक है तथा उसे स्वयं ही अपने को गति देनी है, सब कुछ आप के ‘अपने हाथ’ है। यदि इस युग में सरल अंगेजी नहीं समझ सकते तो तत्काल गति की आवश्यकता इसमें है कि अंग्रेजी सीखी जाय। आज संसार में जो कुछ भी उत्कृष्ट उपलब्ध है, उसका बहुत बड़ा भाग अंग्रेजी में है। अंग्रेजी में प्रवीण होंगे तो आप के भीतर की ‘हिन्दी’ भी समृद्ध होगी। जानेंगे तो अपनी भाषा में प्रसार भी कर पायेंगे, जानेंगे ही नहीं तो क्या कर लेंगे? इस सूत्र पर मनन करें — You’ll See It When You Believe It.
प्रस्तुत अङ्क में लेख संख्या मात्र पाँच है किन्तु इस अल्पसंख्या में उक्त अल्पसंख्या को ignite करने हेतु बहुत कुछ है। कोई करे तो !