लघु दीप अँधेरों में, पिछली कड़ियाँ : 1 , 2 , 3
सुभाषित
प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः,
प्रारभ्य विघ्नविहिता विरमन्ति मध्या।
विघ्नै पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमाना:,
प्रारभ्य चोत्तमजना न परित्यजन्ति॥
[भर्तृहरि नीति शतक, 27]निम्न श्रेणी के जन विघ्न भय से कार्यारम्भ नहीं करते, मध्य श्रेणी के कार्य आरम्भ कर विघ्न पड़ने पर बीच में छोड़ देते हैं, परन्तु उत्तम श्रेणी वाले विघ्नों द्वारा बारम्बार सन्तप्त किये जाने पर भी उसे नहीं छोड़ते (पूरा कर के ही मानते हैं)।
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हरित भवन
गृह शब्द से प्रेरणा ले कर भारत में पर्यावरण की दृष्टि से संधारणीय भवन निर्माण हेतु दिशा निर्देश, प्रबन्धन, प्रक्रिया निर्देश एवं प्रमाणीकरण के लिये TERI (Tata Energy Reserach Institute) द्वारा GRIHA (Green Rating for Integrated Habitat Assessment) मानक भारत सरकार के लिये विकसित किये गये। सरकारी एवं सार्वजनिक संस्थानों द्वारा भवन निर्माण की दशा में GRIHA प्रमाणीकरण अनिवार्य है। मूलत: USGBC (United States Green Building Council) से प्रेरित होकर परिवर्द्धन एवं अनुकूलन के साथ GRIHA मानक विकसित किये गये। भारत में भिन्न संस्था IGBC (Indian Green Building Council) भी प्रमाणीकरण का काम करती है।
Green Building (हरित या संधारणीय भवन) एक ऐसी अवधारणा है जिसमें निर्माण एवं उससे सम्बन्धित विविध प्रक्रियाओं का ‘पर्यावरणीय उत्तरदायित्त्व’ एवं ‘संसाधन उपयोग दक्षता’ को सुनिश्चित किया जाता है एवं तदनुसार उन्हें विविध श्रेणियों में प्रमाणित किया जाता है। किसी भी भवन को यदि ‘हरित’ होने का प्रमाणपत्र पाना है तो उसे योजना, संकल्पना, आरेखण, निर्माण प्रक्रिया, परिचालन, रखरखाव, भविष्य के परिवर्द्धन एवं गिराये जाने तक के सम्पूर्ण जीवन चक्र में ‘पर्यावरणीय उत्तरदायित्त्व’ एवं ‘संसाधन उपयोग दक्षता’ सुनिश्चित करनी होती है। ऐसा करने में प्रारम्भिक निवेश अधिक हो, कोई आवश्यक नहीं किंतु निर्माण पश्चात भवन के उपयोग पर होने वाले विविध व्यय तो घटते ही हैं, पर्यावरण पर उसका नकारात्मक प्रभाव भी न्यूनतम रह जाता है।
कहना न होगा कि यह सरल नहीं है, भारत जैसे देश में अतिरिक्त कठिनाइयाँ भी हैं। परन्तु जैसा कि यहाँ है – आदिम से आधुनिकतम युगों में एक साथ जीना – संधारणीय निर्माण में वैश्विक फलक पर भारत आज गौरवशाली स्थान रखता है।
हरित प्रमाणित भवनों की यहाँ संख्या 2500 से अधिक हो चुकी है जोकि सकल एक अरब वर्ग फीट निर्माण क्षेत्रफल है! हरित भवन निर्माण प्रमाणीकरण में भारत का विश्व में तीसरा स्थान है एवं आगामी दशकों में संधारणीय निर्माण हेतु भारत को ‘इञ्जन’ की भाँति देखा जा रहा है।
लड़की स्कीइङ्ग Skiing चैम्पियन!
हिमाचल प्रदेश की आँचल में कुछ विशेष बात है। यदि इच्छाशक्ति हो तथा तदनुरूप कर्म हो तो बाधायें सिर झुका देती हैं, आँचल प्रमाण हैं। सुदूर मनाली के उत्तर में स्थित गाँव बुरुआ की आँचल ठाकुर ने FIS (Federation Internationale de Ski)द्वारा तुर्की में आयोजित विश्व स्तरीय प्रतियोगिता अल्पाइन एज्देर 3200 में कांस्य पदक जीता।
किसी भी भारतीय द्वारा स्कीइङ्ग (Skiing, ठोस हिम पर ऊँचाई से गुरुत्वीय प्रभाव में तीव्र गति से नीचे आने की क्रीड़ा)में विश्वस्तरीय प्रतियोगिता में जीता गया यह पहला पदक है। दुर्गम पर्वतीय गाँव में रहने वाली 21 वर्षीया आँचल का पथ सरल नहीं था। उनके गाँव में बच्चे घण्टा डेढ़ घण्टा की चढ़ाई कर तीव्र वेग से मिनटों में नीचे सरकते आने का खेल तो खेलते थे किन्तु वैश्विक स्तर पर प्रतियोगी होने की किसी ने नहीं सोची। स्कीइङ्ग उनके परिवार में रही है, पिता रोशन लाल राष्ट्रीय चैम्पियन रहे तो भाई हिमांशु एवं हीरा लाल ओलिम्पिक प्रतियोगी।
स्कीइङ्ग महँगा खेल है। उपकरणों का मूल्य पाँच लाख रुपयों तक पहुँच जाता है। धनाभाव में आँचल केवल तीन महीने यूरोप जा कर प्रशिक्षण ले पाती हैं, प्रतिदिन का शुल्क $300!
आँचल खाली समय में घास काटती हैं, गायों को चारा खिलाती हैं, अपने वस्त्र बुनती हैं एवं भोजन भी पकाती हैं! उनका अपना कक्ष स्वयं की गयी चित्रकारी से भरा हुआ है।
मैदानी क्षेत्र की लड़कियों! मन में कोई हिलोर उठ रही है या नहीं?
[ अर्पिता चक्रबर्ती की ‘द हिन्दू’ में रिपोर्ट पर आधारित]