उत्तिष्ठ हरि शार्दूल। भीरुता की परिपाटी तोड़ने के लिए समय-समय पर नए हनुमान प्रस्तुत करना ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए। इस देश में हरि शार्दूल तभी उत्पन्न हो पाएंगे। हनुमान जैसे उदाहरण प्रस्तुत करना समय की आवश्यकता भी है, माँग भी। अनेक सदियों से चली आ रही भीरुता यूँ ही, अपने आप हमारे समाज से छूट नहीं जाएगी।
वीर वानरलोकस्य सर्वशास्त्रविदां वर।
तूष्णीमेकान्तमाश्रित्य हनुमन्किंनजल्पसि॥
हे समस्त वानर कुलों में श्रेष्ठ हनुमान! हे सर्व शास्त्र विशारद! तुम अकेले और चुपचाप क्यों बैठे हो? क्यों नहीं कुछ कहते?
मानव समाज में समय-समय पर कुछ व्यक्ति असाधारण संकल्प एवं पौरुष का प्रदर्शन करते रहे हैं तथा अन्यों के प्रेरणा स्रोत बनते रहे हैं। ऐसे कार्य जिन्हें कभी किसी ने होते देखा नहीं होता, सदैव ही असम्भव प्रतीत होते हैं। जब कोई व्यक्ति ऐसे असंभव कार्य को करता है तो वह प्रथम कर्ता मानकर किसी दिव्य की भाँति भी पूजित होता है। इतिहास बने ऐसे व्यक्ति कालान्तर में स्मरण भी रखे जाते हैं, परन्तु एक दीर्घ समय के पश्चात उस प्रेरणा की ऊर्जा, दिव्यता समाजों के भीतर से समाप्त हो जाती है। यदि केवल संस्मरण का पठन-पाठन ही होता रहे तो किसी समाज को उसके लाभ का उत्तरोत्तर ह्रास ही होता जाता है।
ऑस्ट्रिया के फ़ेलिक्स बॉमगार्टनर नामक ऐसे ही धुरंधर ने २०१२ में अन्तरिक्ष से धरती पर लगभग १,३५,००० की दूरी से छलांग लगा कर पराध्वनि (Mach 1.25) की गति सीमा को पीछे छोड़ते हुए कीर्तिमान भी बना दिया। पूरे विश्व ने इसका चलचित्र भी देखा। भले ही यह घटना लगभग साढ़े चार मिनट की थी, पर इसे देखने पर कोई भी ऊर्जा से भर उठता है एवं अन्दर प्रेरणा की ऊर्जा हिलोरे मारती है कि यदि “ये व्यक्ति ऐसा कर सकता है तो…” या “वाह ऐसा तो हम भी…” या “ये नहीं तो कुछ ऐसा बड़ा, महान मैं भी…”। कोई भी पीढ़ी ऐसा ही सोचती होगी। यद्यपि किन्हीं अर्थों में ये नई घटना हो परन्तु ऊँचाई से छलांग का ऐसा कारनामा पूर्व में भी एक अमेरिकी कर चुका था और फ़ेलिक्स के ठीक दो साल बाद भी गूगल के एक वैज्ञानिक ने ऊँचाई के सन्दर्भ में इस कीर्तिमान को ध्वस्त भी कर दिया। समय-समय पर ऐसे उदाहरणों से कई लोगों को उससे भी अधिक कुछ करने की एषणा उत्पन्न होना स्वाभाविक है।
चैत्र पूर्णिमा के दिन भारतीय समाज का युवा हनुमान की वीरता के भजन गायन तक सीमित न रहकर उनके जैसा ऊर्जावान भी बने ऐसा संकल्प कैसे करें। हनुमान ने समुद्र को लाङ्घा परन्तु उससे पूर्व वह एक असम्भव सा कार्य प्रतीत हो रहा था। वानरों का दल जब समुद्र तट पहुंचा तो सभी भयाक्रान्त हो गए। जामवन्त जैसे वृद्धों ने शनैः-शनैः उनके भय को निकला फिर एक-एक कर कुछ योद्धाओं ने अपनी शक्ति का वर्णन किया। स्वयं हनुमान, जो कुछ ही समय पश्चात ये करने वाले थे, वह भी एकान्त में डरे सहमे शंका में जड़वत बैठे थे। उन्हें देखकर जामवन्त ने उन्हें ऊर्जावान होने का स्मरण करवाया। उन्हें बताया कि उनसे पहले भी कई गरुड़ आदि ये करते रहे हैं। उनके पुरखों के बल का वर्णन किया वे जानते थे हनुमान बुद्धिमान भी हैं अत: वे उन्हें दूत के रूप में उचित जान पड़ते थे। ध्यातव्य हो कि फेलिक्स की छलांग सिर्फ शारीरिक शक्ति को ही प्रदर्शित नहीं करती तथापि अन्तरिक्ष से कूदना मानसिक-बौद्धिक शक्ति की भी मांग करता है जिसमें कई तकनीकी पक्षों की जानकारी आवश्यक है। फ़ेलिक्स ने पांच वर्ष तक इसकी तैयारी भी की। एक त्रुटी हुयी नहीं कि शरीर का नाश किसी भी क्षण हो जाता।
वर्तमान भारत में नवीन जागरण जैसा वातावरण है। कुछ उदाहरण हुए हैं एवं कई और होने को हैं। हनुमान जैसे उदहारण प्रस्तुत करना समय की आवश्यकता भी है मांग भी है। यों ही अपने आप पूर्व की कई सदियों से चली आई भीरुता हमारे समाज से छूट नहीं जाएगी। हनुमान जयन्ती के शुभ अवसर पर हमें वर्तमान के महावीरों को, वे किसी भी क्षेत्र से हों, अपनी रूचि से चुन लेना होगा और उनसे प्रेरणा लेकर नए संकल्प कर अन्यों और आगामी पीढ़ियों के लिए कीर्तिमान प्रस्तुत करने होंगे। तभी इस देश में हरि शार्दुल पैदा हो पाएंगे। भीरुता की परिपाटी तोड़ने के लिए समय-समय पर नए हनुमान प्रस्तुत करना ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए। यही आवश्यकता है आज की। जय हनुमान।
उत्तिष्ठ हरि शार्दूल लङ्घयस्व महार्णवम्।
परा हि सर्वभूतानां हनुमन् या गतिस्तव ॥ ४-६६-३६
हे कपिओं में शार्दुल! उठो और इस समुद्र को लान्घों। तुम्हारा समुद्र लांघना प्राणिमात्र के लिए हितकर है।