Autumn शरद, चिली, दक्षिण अमेरिका
Winétt de Rokha विनेट डे रोखा
श्वेत धनुतोरण के नीचे,
नील मरुतों से आतङ्कित
मैं करती दृष्टिक्षेप
(जैसे ओठ चुम्बन तत्पर)
आरम्बण से हो कर पीत सिन्धु पर।
कैसे रह जाती है गन्ध
पाटललतिका व नारंगी की वर्षा पश्चात।
एक मार्जार – शीत ऋतु की तपोधना का पुष्प –
स्वयं को कर चमत्कृत, करता है गाना आरम्भ;
मक्खियाँ उत्सुक धूम्रधूसरित किरणों की ओर;
कुक्कुट कुड़कते और लहराते अपने अंतर्वस्त्र;
और मेरा हिय, निज दु:ख धर धीर प्रयास
जब कि वासन समस्त
विदीर्ण खण्ड खण्ड,
चलता है नङ्गे पाँव,
और हो कर अन्ध।
शब्द : (1) धनुतोरण – Arch; (2) आरम्बण – Balustrade; (3) पाटललतिका – Rosebush; (4) मार्जार – Cat; (5) तपोधना – Thistle, एक प्रकार का कँटीला पुष्प जिसकी जाति के भारतीय पुष्पों में गोरखमुण्डी भी आती है। उसे ही एक बहुत सुन्दर नाम ‘तपोधना’ दिया गया है। आयुर्वेद में भिषगीय प्रयोग वाले पौधों को इस प्रकार के काव्यमय नाम दिये जाते रहे हैं। तपोधना शब्द का प्रयोग रामायण में अनेक बार हुआ है। उदाहरण के लिये देखें : अनुसूया – श्लिष्टाञ्जलिपुटा धीरा समुपास्त तपोधनाम्, शबरी – कच्चित्ते नियतः कोप आहारश्च तपोधने, सीता – परिक्षीणां कृशां दीनामल्पाहारां तपोधनाम्; (6) वासन – Covering।
चिली, दक्षिण अमेरिका की कवयित्री Winétt de Rokha विनेट डे रोखा (लेखन नाम) का जीवन बहुत रोचक रहा। एक सौ सत्ताइस वर्ष पूर्व जन्मी ‘लुइसा अनाबोलॉन विक्टोरिया सैण्डर्सन‘ का विवाह प्रसिद्ध कवि पाब्लो डे रोखा से हुआ था। पाब्लो कुछ कवितायें प्रकाशित कर चुके थे तथा जीवन में बहुत निराश अनुभव कर रहे थे। उसी समय उन्हों ने लुइसा का कविता संग्रह Lo que me dijo el silencio (एक अन्य लेखन नाम जुआना इनेस डे ला क्रुज से प्रकाशित) पढ़ा तथा उसकी कटु आलोचना करते करते प्रेम में पड़ गये। उनसे मिलने सेण्टियागो जा पहुँचे। अपने से दो वर्ष बड़ी लुइसा के प्रेम में पड़ते उन्हें समय नहीं लगा तथा दूसरी ओर भी वही स्थिति थी।
उद्धत पाब्लो ने लुइसा के पिता से अपना परिचय एक ‘कर्वीले कवि’ के रूप में दिया जिसे परिवार में अच्छा नहीं माना गया। सेना में जनरल अपने भावी ससुर से पाब्लो की कटुता इतनी बढ़ गई कि दोनों ने एक निश्चित तिथि को द्वंद्व द्वारा विवाद सुलझाना निश्चित किया। उक्त तिथि के पूर्व ही पाब्लो लुइसा को भगा ले गये तथा वह ‘विनेट डे रोखा’ नाम से उनकी पत्नी हुईं। दोनों की कुल नौ संतानें हुईं जिनमें से सात वय प्राप्त कर आगे जीवित रहीं।
‘शरद’ कविता में उन्हों ने समस्त इंद्रियों की अनुभूति के बिम्ब रचे हैं।