भारतीय तथा अन्य नाम
हिन्दी : सात भाई, सतबहिनी चरखी, गौगाई, पेंगिया मैना, गयंगा, जंगली खैर
संस्कृत : अरण्य हहोलिका
पञ्जाब : ਸੇਰੜ੍ਹੀ
गुजराती : વન લલેડુ
असामी : সাতভনী
बांग्ला : সাতভাই ছাতারে
उड़िया : କୁଣ୍ଡାଖିଆ ଚଢ଼େଇ
तमिळ : காட்டுச் சிலம்பன்
मळयाळम : കരിയിലക്കിളി
वैज्ञानिक नाम (Zoological Name) : Turdoidus striatus पर अब कुछ वैज्ञानिकों ने इसे Argya striata नाम भी दिया है।
Kingdom: Animalia
Phylum: Chordata
Class: Aves
Order: Passeriformes
Family: Leiothrichidae
Genus: Turdoidus
Species: striatus
जनसङ्ख्या : स्थिर
Population: Stable
संरक्षण स्थिति (IUCN) : सङ्कट-मुक्त
Conservation Status (IUCN): LC (Least Concern)
वन्य जीव संरक्षण अनुसूची : ४
Wildlife Schedule: IV
नीड़-काल : सम्पूर्ण वर्ष। परन्तु उत्तर भारत में मुख्यतया मार्च से जुलाई तक और दक्षिण भारत में नवम्बर तक।
Nesting Period: Whole year. Primarily, March to July in North India and till November in Southern India.
आकार : लगभग १० इंच
Size: 10 in
प्रव्रजन स्थिति : अनुवासी
Migratory Status: Resident
दृश्यता : सामान्य (प्राय: दृष्टिगोचर होने वाला)
Visibility: Common
लैङ्गिक द्विरूपता : अनुपस्थित (नर और मादा समरूप)
Sexual Dimorphism: Not Present (Alike)
भोजन : कीड़े-मकोड़े, वनस्पतियाँ।
Diet: Insects, Vegetation.
अभिज्ञान एवं रङ्ग-रूप
सतबहिनी चरखी भारत का बारहमासी पक्षी है और लगभग १० इंच के इस चञ्चल पक्षी को पूरे भारत के गाँवों के खेत खलिहान, उद्यानों एवं जंगलो में भूमि पर भोजन खोजते या पेड़ों की निचली शाखाओं पर कलरव कोलाहल (हहोलिका नाम इस कारण से) करते ७-१० के झुण्ड में देखा जा सकता है। इनके नर एवं मादा एक जैसे होते हैं । श्याव (भूरे) रंग की इस चरखी की चोंच का रंग पीला और आँख की पुतली का रंग पीलापन लिए हुए श्वेत होता है ।
निवास
सतबहिनी चरखी हमारे देश की बहुत ही प्रसिद्ध चिड़िया है, जो पूरे देश में पाई जाती है। इसे हिमालय में भी २००० मीटर की ऊँचाई तक देखा जा सकता है। प्राय: झुण्ड में देखे जाने के कारण इसे सात भाई या सात बहिनी या सतबहिनी कहा जाता है। यह एक निडर पक्षी है जो खेत-खलिहान में मनुष्यों के अत्यंत निकट आ जाने में कोई सङ्कोच नहीं करता। ये प्राय: भूमि पर रहकर दाना चुगती रहती हैं, अत: सावधान रहने के लिए अधिक रव करती हैं और सम्भवत: इसके कारण ही इस परिवार के सभी पक्षियों को ‘चरखी’ नाम दिया गया है।
वितरण
सतबहिनी चरखी सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप अर्थात भारत के अतिरिक्त बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी पाया जाता है।
प्रजनन काल तथा नीड़ निर्माण
सतबहिनी चरखी पक्षी वर्ष में अनेक बार प्रजनन करते हैं। मुख्यतया इनके नीड़ निर्माण का समय उत्तर भारत में मार्च से जुलाई तक और दक्षिण भारत में नवम्बर तक होता है। इनके नीड़ कर्पर (cup) की भाँति होते हैं जो वृक्षों पर पर ८-१० फीट की ऊँचाई पर स्थित होते हैं। नीड़-निर्माण के लिए ये घास-फूस तथा मृदु जड़ों का प्रयोग करते हैं और कँटीली झाड़ियों से छिपा देते हैं, तब भी चातक और पपीहे चोरी से इनके नीड़ में अपने अण्डे रख ही देते हैं। मादा समय आने पर एक बार में ३-४ अंडे देती है, जिनका रंग हरापन लिए हुए तनु-नील होता है। अण्डों का आकार लगभग १.०१ * ०.७८ इंच तक होता है।
सम्पादकीय टिप्पणी :
ऋग्वेद और अन्य वैदिक वाङ्मय में विषहारी के रूप में सप्त स्वसार (सप्तभगिनी>सतबहिनी) पक्षियों का उल्लेख मिलता है। ऐसे रहस्यमय मन्त्रों में उल्लिखित पक्षी सम्भवत: किसी अन्य जाति वर्ग का पक्षी है –
त्रिः सप्त मयूर्यः सप्त स्वसारो अग्रुवः । तास्ते विषं वि जभ्रिर उदकं कुम्भिनीरिव ॥
परिंदों बारे में , के निकटतम जानकरियां देना,यह एक
सर्मे पण भाव ,अति सराहनीय है।जीवन लगाना परता है
तब कभी प्रकृति को कुछ समझ पाते हैं ।
यह एक आप का सराहनीय कार्य है , इसमें (काम) में
आप के परिवार सहयोग भी सराहनीय है जो आप को
प्रेरणा रूप में मिलता रहता है।
परिंदे समाज को , जीवन मै संघर्स की लिए ( जीना)
के लिए प्रेरित करते हैं।