वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में पिछले वित्तीय वर्ष की इसी तिमाही की तुलना में २३.९% का ह्रास हुआ। स्पष्ट है कि ऐसा चीनी कॅरोना विषाणु CoViD-19 के प्रसार को थामने हेतु लगाई गई बंदी के कारण हुआ। इस ह्रास को लेकर कोलाहल भी चल रहा है। इस पर आगे विचार करने से पूर्व यह जान लें कि यह केवल एक तिमाही का तुलनात्मक आँकड़ा है। ह्रास तो हुआ है किन्तु ऐसा नहीं है कि कोई बड़ी भारी विपदा आन पड़ी है।
आज के समय में औद्योगिक उत्पादन गतिविधियों से अन्य उत्पादन गतिविधियाँ जुड़ी हैं तथा इसमें ह्रास से उपभोग में भी ह्रास होता ही है। परस्पर जुड़े इन कारकों से ह्रास के कारण ह्रास की गति व मात्रा, दोनों बहुत बढ़ जाते हैं। सर्वत्र निराशा देखने वालों को यह भी सोचना चाहिये कि सुधार होने पर इसी गुणन के कारण बढ़ोत्तरी की गति व मात्रा भी उसी गति से बढ़ते हैं। क्या सकल घरेलू उत्पादन सुधार की दिशा में है? क्या आगामी तिमाही में स्थिति ऊर्ध्व दिशा में अग्रसर होगी? उत्तर हैं – हाँ। कैसे?
किसी भी औद्योगिक उत्पादन गतिविधि की स्थिति को विद्युत के उपयोग की मात्रा से जाना जा सकता है। अर्थात यदि विद्युत खपत में बढ़ोत्तरी हो रही है तो औद्योगिक गतिविधियों में भी वृद्धि हो रही है। तुलनात्मक आँकड़ों के विश्लेषण से पूर्व बिजली उत्पादन एवं खपत की इकाइयों को जान लेते हैं।
वाट विद्युत उत्पादन या उपभोग की दर को मापता है। एक जूल ऊर्जा यदि एक सेकण्ड में उपजे तो उसे वाट कहते हैं। अर्थात दर और समय का गुणनफल उपभोग को दर्शायेगा। वाट बहुत छोटी इकाई होती है और सेकण्ड भी। उपभोग की मात्रा दर्शाने के लिये बहुत बड़ी संख्या न लिखनी पड़े, इसके लिये (दरxसमय) हेतु एक इकाई बनाई किलो-वाटxघण्टा, किलो अर्थात हजार गुना और घण्टे में होते हैं ३६०० सेकण्ड। किलोवाट-घण्टा (kWH) को ही कहा गया – unit यूनिट। औद्योगिक प्रतिष्ठान हों या आवास, विद्युत उपभोग को इसी ‘यूनिट’ से मापा जाता है और राष्ट्रीय स्तर पर इसकी सकल मात्रा प्रगति को दर्शाने के एक कारक की भाँति होती है।
देशव्यापी बन्दी २५ मार्च को लागू हुई थी। अप्रैल से ले कर अगस्त तक विद्युत उपभोग में पिछले वर्ष के संगत महीने की तुलना में हुआ ह्रास इस प्रकार है—
अप्रैल – २३.३२%, मई – १४.८६%, जून – १०.९३%, जुलाई – ३.६%, अगस्त – ०.८५%
स्पष्ट है कि बंदी के तत्काल पश्चात के महीने में जहाँ विद्युत उपभोग लगभग तीन चौथाई हो गया था, वहीं बंदी में शनै: शनै: शिथिलता देने के साथ ही विद्युत उपभोग का ह्रास न्यून होता गया और गत अगस्त के महीने में लगभग अपने पूर्व स्तर पर आ गया। पिछले तीन महीनों में विद्युत उपभोग क्रमश: १०५.०८, ११२.२४ व ११०.५७ ‘अरब यूनिट’ रहा।
अधिकतम विद्युत माँग अर्थात खपत की दर का अधिकतम मान औद्योगिक गतिविधि के उच्चतम से सीधे जुड़ा होता है। इसके मान में भी अप्रैल में लगभग ५% का ह्रास हुआ था जोकि अगस्त के १६७.४९ गीगा-वाट (१ गीगा-वाट = १०९ वाट) स्तर पर ५.६५% ह्रास तक ही रह गया था। अगस्त माह में वस्तु एवं सेवा कर GST के रूप में सरकार को ८६४४९ करोड़ रुपये मिले जिसमें कि पिछले वर्ष की तुलना में लगभग १२ प्रतिशत का ह्रास है। स्पष्ट है कि उत्पादन गतिविधियाँ अपने पूर्व स्तर तक तीव्र गति से पहुँच रही हैं तथा भारत, अपनी समस्त सीमाओं के होते हुये भी, विजयपथ पर अग्रसर है।
पुन: ध्यान दें कि सकल घरेलू उत्पादन में ह्रास का आँकड़ा मात्र जून महीने तक का है अर्थात अगली तिमाही के आँकड़े जब अक्टूबर में आयेंगे तो पिछले वर्ष की दूसरी तिमाही की तुलना में स्थिति या तो सम पर आ चुकी होगी या ह्रास अत्यल्प ही बचा रह जायेगा। उत्पादन में ह्रास का सकल प्रभाव तो रहेगा ही रहेगा किंतु वह बढ़ने के स्थान पर या तो स्थिर हो चुका होगा या सरकारी प्रयासों के कारण अर्थव्यवस्था में गति आई तो उसका कुप्रभाव भी घटने लगेगा।
स्थिति कोलाहल जितनी विकट नहीं है परंतु चीनी विषाणु के कुप्रभावों के पूर्णत: समाप्त होने में समय लगेगा और उसमें सरकार के साथ जनता को भी लगना होगा। जीने के ढंग व अनुशासन आदि में मौलिक व स्थायी परिवर्तन करने होंगे क्योंकि CoViD-19 कहीं नहीं गया, हमारे व आपके बीच ही है। हम आप स्वस्थ रहेंगे और सावधानियों का पालन कर कार्यस्थलों को भी सुरक्षित बनाये रखेंगे तो सरकारें भी ढील बढ़ाने के प्रति आश्वस्त होंगी तथा स्वास्थ्य एवं नागरिक सुविधाओं पर सहसा ही बढ़ गया भार घटेगा। माना कि सरकारों से अनेक स्थानों पर चूकें हुई हैं, हमारे तंत्र में भ्रष्टाचार बहुत है और दूरदृष्टि का अभाव है किंतु सरकारें व तंत्र हमसे ही हैं। हमारे ही देश में उन प्रांतों में स्थिति अधिक अच्छी है, जहाँ जनता अधिक अनुशासित, अधिक कर्मठ और अधिक ‘सज्जन’ है। यह परस्पर सहयोग का विषय है, आप जितना व जो देंगे, उतना व वैसा पायेंगे। यह समय संकट को जीवन में, भौतिक या आध्यात्मिक, सकारात्मक परिवर्तन हेतु एक ‘अवसर’ की भाँति देखने का भी है।
सौभाग्य से चीनी विषाणु ने वह रूप नहीं लिया जिसकी आशङ्का आरम्भ में बताई गई थी किंतु यह भी सच है कि सङ्कट टला नहीं है। चक्रवात या कोई आपदा आने पर उससे होने वाले नाश को न्यूनतम करना एक बात है तथा उसके पश्चात के दुष्प्रभावों से पार पाना दूसरी बात। यह कॅरोना हेतु भी सच है। एक देश के रूप में, गड़बड़ियों के होते हुये भी, आपदा के प्रभाव को हमने अब तक नियंत्रित रखा, हानि उठा कर नियंत्रण में रखा किंतु अब आर्थिक गतिविधियों को पुन: आरम्भ करने का समय है, दुष्प्रभावों से पार पाने का समय है तथा जीवन को सामान्य करने का भी। ऐसे में चुनौतियाँ बहुत बढ़ जाती हैं। इस सोपान पर जनता को बहुत ही सावधान, अनुशासित व सकारात्मक रूप से सक्रिय होना होगा।
आर्थिक रूप से मूर्ख व अकर्मण्य होना भी हिंदी सामान्य जनता का एक बड़ा रोग है। वैसे यह रोग पूरे देश में ही है जिसका पता इससे लगता है कि चीनी विषाणु CoViD-19 से संक्रमित वे जन जो चिकित्सा कराने गये, उनमें से मात्र चार प्रतिशत के पास अपनी कराई कोई स्वास्थ्य बीमा सुविधा थी। व्यय के आंशिक या पूर्ण भुगतान का प्रश्न तो तब न उठेगा, जब बीमा कराये रहेंगे? सिगरेट, मदिरा, अन्य व्यसन एवं अनावश्यक व्ययों में धन फूँकते रहने वाले अपने हित के लिये इतने ‘भगवान भरोसे’ कैसे हो सकते हैं? स्थायी परिवर्तन एक दिन में नहीं होते, मंद प्रक्रिया है किंतु श्रीगणेश ही नहीं करेंगे तो परिवर्तन तो अनंत समय में भी नहीं होने! हर व्यक्ति दूसरे को, सिस्टम को एवं सरकारों को दोष देने में व्यस्त है किंतु स्वयं कूड़ा कचरा करना नहीं छोड़ता!
पितृपक्ष है। क्यों न इस कालखण्ड का उपयोग स्वयं में मौलिक व स्थायी सकारात्मक परिवर्तन लाने हेतु किया जाय जिससे कि हमारी, हमारे पुरखों की पुण्यभू सदैव प्रगति की दिशा में अग्रसर रहे, हम सशक्त व सुदृढ़ हों तथा मानवता हमसे गौरवान्वित हो!
- बिना मास्क के घर से बाहर नहीं निकलें। मास्क गले में लटकाने के लिये नहीं है, मुँह और नाक पर ठीक से लगा कर रखने के लिये है।
- हाथों की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें। युगों युगों से इस देश में प्रचलित शुचिता के विधि-विधानों का पालन करें।
- समूह में या लोगों से मिलते समय छ: फीट की दूरी बनाये रखें।
- यहाँ वहाँ न थूकें और न ही कूड़ा फेंकें।
- बासी भोजन न करें। किसी की जूठन भी न खायें।
- प्राणायाम, सूर्यनमस्कार, व्यायाम, योगासन आदि नियमित रूप से करें।
- मितव्ययी बनें। व्यसनों व अनावश्यक विलासिता की वस्तुओं पर धन का अपव्यय न करें।
- गाढ़े समय हेतु नियमित बचत करें।
- अपनी सीमा में, अपनी आवश्यकता जान, हानि-लाभ का विश्लेषण कर स्वास्थ्य बीमा करायें। पूरा न हो तो भी कुछ तो सहायता मिलेगी ही।
आर्थिक विषयों व व्यक्तिगत अर्थ-प्रबंधन से जुड़े कुछ लेख मघा पर भी यहाँ उपलब्ध हैं। अन्तर्जाल पर स्वयंशिक्षा से सम्बंधित अपार सामग्री उपलब्ध है। भारत कुछ उन देशों में आता है, जिनमें इण्टरनेट तुलनात्मक रूप से अधिक मूल्यदक्ष रूप में सुलभ है। उसका सदुपयोग ज्ञानार्जन में एवं अपने जीवन को सुखद व सार्थक बनाने में करें, व्यर्थ के चुटकुलों एवं दूषित सामग्री के अवगाहन में समय और सुविधाओं का नाश न करें।