CoViD-19 और भारतीय मीडिया : प्रतिदिन उस पर एंकर एक हिंदू और एक मुसलमान को बुलाता है, दोनों में झड़प करवाता है और भारतीय जनता उसको ताली पीट-पीटकर चटखारे लेकर प्रतिदिन देखती है।
एक अन्य चैनल पर मुसलमान पैरोकार हिन्दू को ‘गौमूत्र वाला’ बोलता है तो हिन्दू उसे ‘सूअर के मूत्र’ वाला बोलता है और मुसलमान माइक पटक कर निकल लेता है! जनता तालियाँ पीटती है। बहुतेरे इसकी क्लिप बना व सोशल मीडिया में वायरल कर अपने सनसनी फैलाने वाले कीड़े को शांत करते हैं और इस प्रकार से टीवी चैनल अपनी उद्देश्यपूर्ति करते हैं, रेटिंग के लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।
समूचा विश्व आज चीनी वाइरस CoViD-19 के प्रकोप से पीड़ित है। समूची मानव जाति पर आया यह एक ‘अभूतपूर्व’ संकट है। ऐसा नहीं है की पहले महामारियाँ नहीं आईं और मानव जाति ने संघर्ष करके जीत न पायी, CoViD-19 संकट अभूतपूर्व इसलिए है कि इससे पहले मानव इतना साधन सम्पन्न नहीं था, ‘एकोऽहं द्वितीयो नास्ति’ पूर्व काल में आज की तुल्यता में गुंजायमान नहीं था।
ऐसे समय में एक मानव का, एक नागरिक का क्या कर्तव्य होना चाहिए, यह सर्वविदित तो है किन्तु इस कर्तव्य के अनुपालन में शैथिल्य सर्वव्याप्त है। क्या एक नागरिक के साथ साथ देश की ढेरो संस्थाओं, राजनीतिक दलों और मीडिया हाउस का समाज के प्रति कोई कर्तव्य नहीं बनता है? आज जब सारी मानव जाति ही संकट में है तो मानव निर्मित हर एक संस्था का दायित्व बढ़ जाता है ।
एक सामान्य नागरिक की भाँति मैं भी विगत 19 मार्च से lockdown के अनुपालन में घर में बंद हूँ। घर मे बैठा व्यक्ति स्वाभाविक रूप से टीवी पर समाचार देख अपनी जिज्ञासा और घिर आई नीरसता दूर करने का प्रयास करता है । Lockdown के दिनों में समाचार देखने वालों की संख्या में 250% की वृद्धि हुई है और यह वृद्धि बताती है कि एक सामान्य नागरिक के लिए टीवी समाचार कितना महत्व रखता है। भारत के टीवी समाचार चैनल कभी भी मुझे आकर्षित नहीं कर सके। कारण सबको पता है – ये सभी मीडिया संस्थान किसी न किसी राजनीतिक दल द्वारा प्रायोजित से प्रतीत होते हैं, ऐसा मात्र मैं ही नहीं अपितु हर एक पढ़ा लिखा दायित्वबोधी नागरिक समझता है। हमारे यहाँ समाचारपत्र आ नहीं रहे हैं तो थक हार कर भी देश विश्व पर अद्यतन रहने के लिए टीवी समाचार ही देखना है।
अपने देश के समाचार चैनलों के अतिरिक्त 5 विदेशी समाचार चैनल (NBC News, ABC7, Aljazeera, Geo News, Samaa News ) भी नित्य देखता हूँ। उनकी गुणवत्ता और विषयवस्तु की तुलना में अपने टीवी समाचार चैनल हास्यास्पद से लगते हैं। आज जब समूचा विश्व इस आपदा से जूझने में लगा हुआ है, मैंने यह पाया कि विदेशी चैनलों में अपने देश के प्रति कर्तव्यबोध कूट-कूट कर भरा हुआ है ।
मीडिया का समाज के प्रति कर्तव्य अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसे लोकतन्त्र में चौथा स्तम्भ भी कहा गया है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतवर्ष में मीडिया समाज के प्रति अपने दायित्व का सम्यक निर्वहन नहीं कर रही है। यदि हम विदेशी मीडिया के साथ भारतीय मीडिया, विशेषकर टीवी समाचार चैनलों की तुलना करें तो पाएंगे कि वैश्विक स्तर पर भारत की मीडिया की गुणवत्ता बहुत निम्नस्तरीय है। एक मीडियाविद होने के नाते मीडिया के समाज के प्रति क्या कर्तव्य हैं यह बताना मेरा नैतिक दायित्व है। मीडिया का सर्वप्रथम कर्तव्य जनता में राष्ट्रप्रेम की भावना को जगाना होता है, निष्पक्ष समाचार दिखाना और समाज को जागरूक बनाना भी उसका कर्तव्य है। मीडिया राष्ट्रनिर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। जनमानस में सच्चरित्र के प्रति दीर्घकालिक सम्मान के निर्माण में मीडिया सबसे बड़ी भूमिका निभा सकती है।
भारतीय समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग बौद्धिक रूप से अपरिपक्व है, यह बात थोड़ी सी कटु है किंतु सच है। मुझे स्मरण है कि विद्यार्थी जीवन में हमें एक निबंध लिखने को दिया जाता था – सिनेमा समाज को प्रभावित करता है या समाज से प्रभावित होता है? ठीक उसी प्रकार हमारे समाज का बहुत बड़ा वर्ग जिसे मैंने बौद्धिक रूप से अपरिपक्व कहा है, वह मीडिया विशेषकर, टीवी मीडिया से प्रभावित है। वह ठीक वैसा ही सोचता है जैसा टीवी मीडिया उसे दिखाता है। ऐसा लगता है कि जैसे मीडिया ने ब्रेनवाश कर दिया हो। ऐसे समय व वस्तुस्थिति में मीडिया का दायित्व बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।
वर्तमान संदर्भ में इस चीनी विषाणु आधारित रोग की टीवी कवरेज यदि हम ध्यान से देखें तो पायेंगे कि भारत में मीडिया का स्तर कितना नीचे है। उनका प्रस्तुतिकरण प्रतिदिन के अनेकों मनोरंजन आइटम परोसने के समान ही होता है। प्रतिदिन का वही ड्रामा है, प्रतिदिन पैनल में बैठने वाले वही लोग हैं, उनके प्रायोजित वक्तव्य हैं। प्रतिदिन एक दूसरे को गाली देता है और दूसरा माइक पटक कर भाग जाता है। विडम्बना यह है कि हमारे समाज की सोच भी ऐसी हो गई है कि उसे भी इसी प्रकार के ड्रामे प्रतिदिन देखने में आनंद आता है।
यदि हम निष्पक्ष रुप से देखें तो इस भयानक महामारी में जो मीडिया का कर्तव्य होना चाहिए उसे भारतीय टीवी समाचार चैनल कदापि नहीं निभा रहे हैं। उदाहरण के लिए ‘आ_ _क’ बहुत लोकप्रिय चैनल है। प्रतिदिन उस पर एंकर एक हिंदू और एक मुसलमान को बुलाता है, दोनों में झड़प करवाता है और भारतीय जनता उसको ताली पीट-पीटकर चटखारे लेकर प्रतिदिन देखती है।
एक अन्य चैनल पर मुसलमान पैरोकार हिन्दू को ‘गौमूत्र वाला’ बोलता है तो हिन्दू उसे ‘सूअर के मूत्र’ वाला बोलता है और मुसलमान माइक पटक कर निकल लेता है! जनता तालियाँ पीटती है। बहुतेरे इसकी क्लिप बना व सोशल मीडिया में वायरल कर अपने सनसनी फैलाने वाले कीड़े को शांत करते हैं और इस प्रकार से टीवी चैनल अपनी उद्देश्यपूर्ति करते हैं, रेटिंग के लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।
भारतीय मीडिया का यही यथार्थ है!
अब प्रश्न यह है कि होना क्या चाहिए? सर्वप्रथम सरकार को मीडिया को अनुशासित करने हेतु निष्पक्ष एवं मनीषी व्यक्तियों का एक मण्डल नियुक्त करना चाहिए जिसे बिना रोक टोक के व्यापक अधिकार हों। यदि प्रसार भारती अपना काम नहीं कर पा रही तो विकल्प लाये जाने चाहिये। सबसे पहले जितने भी ड्रामा दिखाने वाले निजी चैनल हैं उनको राष्ट्रहित में सामग्री व प्रस्तुतिकरण पूर्णत: परिवर्तित करने को कहा जाना चाहिये, न मानें तो उन्हें बंद किया जाना चाहिये। सभी न मानें तो सबको बंद कर केवल ‘दूरदर्शन’ का प्रसारण होना चाहिए। यद्यपि विदेशी मीडिया चैनलों का अंधानुकरण नहीं होना चाहिए किंतु उनके द्वारा अपने देश के हित में अनुपालित मीडिया के मूल सिद्धांतों को यहाँ भी समीक्षा पश्चात लागू किया जाना चाहिए। टीवी समाचार चैनलों पर राजनीतिक दलों के पक्षकारों के पैनल बंद होनें चाहिए। केवल द्वारा अधिकृत स्वास्थ्य विभाग के विशेषज्ञों की बाइट प्रसारित होनीं चाहिए।
इन सब बातों को लागू करते हुए मीडिया के प्रमुख कर्तव्य विस्मृत नहीं किये जाने चाहिए जो कि जनता को निष्पक्ष समाचार देना, समाज में विभिन्न ज्वलंत मुद्दों के प्रति जागरूकता का प्रसार, नूतन आशा का संचार करना और समाज को राष्ट्रहित हेतु प्रेरित और जागरूक करना है। मीडिया समाज के बौद्धिक विकास और राष्ट्रोत्थान के प्रति उत्तरदायी है। राष्ट्रहित सर्वोपरि है, राष्ट्र का अस्तित्व रहेगा तो राजनीतिक दल भी रहेंगे, राजनीति भी हो सकेगी, ड्रामा भी हो सकेगा, मूढ़ लोगों का मनोविलास भी हो सकेगा। राष्ट्र माने मनोरोगी व अनियंत्रित क्षुद्र नागरिकों से भरी इकाई नहीं, ऐसे जन का सुव्यवस्थित समूह जो एक समूह के रूप में निज-हित के अल्प एवं दीर्घकालिक प्राथमिकताओं से बद्ध हो, बुद्धिमान घटक स्वप्रेरणा द्वारा व मूढ़ बलात।
लेखक ‘मघा’ के नियमित पाठक हैं तथा इस लेख को अनाम ही प्रकाशित करने के अनुरोध के साथ प्रेषित किये हैं। CoViD-19 और भारतीय मीडिया