शबरीमाला या सबरीमाला या सबरीमला (भौगोलिक स्थिति – अक्षांश 9.44 उ., देशांतर 77.08 पू., ऊँ. 468 मी.), केरल में हिन्दू आस्था का बचा रह गया अंतिम सशक्त केन्द्र, वाम-इस्लाम-ख्रिस्तान दुरभिसन्धि द्वारा नाश हेतु चिह्नित है। वहाँ विराजमान देवता अय्यप्पा स्वामी मोहिनी रूपी विष्णु एवं शिव की सन्तान हैं जिन्हें महाशास्ता भी कहा जाता है। वै नैष्ठिक ब्रह्मचारी हैं तथा आज अब्राहमी इसाइयों द्वारा किये जा रहे मतान्तरण के विरुद्ध केरल के हिंदुओं के सबसे प्रभावी कवच हैं।
स्थिति को ऐसे समझें कि कुछ दिनों पहले एक मित्र केरल गये थे तो उनके एक लेख पर मैंने पूछा था – वहाँ के 54% हिन्दू कहाँ हैं? उत्तर यह है कि apartheid अर्थात जातिभेद के केरलीय संस्करण के शिकार हो दोयम श्रेणी के नागरिक बन चुके हैं।
हिन्दुओं की जनसंख्या में 20% पिछड़े समुदाय से आने वाले एझावा हैं जिनसे मतांतरण के अभियान में लगे अब्राहमी इस कारण रुष्ट हैं कि ‘पिछड़े’ मोदी के उदय के साथ ही यह वर्ग राजनीतिक निष्ठा बदलने लगा।
सबरीमाला की स्थिति जटिल है जिसके नेपथ्य में मिथ्या इसाई स्थापनायें तथा मतान्तरण हैं। इसाई प्रचार तन्त्र द्वारा यह बताया गया तथा जिसे जनसामान्य सहित सरकारों ने भी स्वीकार भी कर लिया कि इसाई मत केरल में पहली शताब्दी में ही पहुँच गया था। सावधानी से अध्ययन करने पर यह बात असत्य सिद्ध होती है। भारत के इस क्षेत्र में इसाइयत तीसरी चौथी शताब्दी से पूर्व पहुँची हो ही नहीं सकती। एक दूसरा बड़ा झूठ सेण्ट थॉमस का भारत आगमन तथा उसका एक तमिळ ब्राह्मण द्वारा वध बताया जाना है। सदियों दूर के दो थॉमस मिला कर एक कर दिये गये तथा वे दक्षिण क्षेत्र में कभी आये ही नहीं। तमिळनाडु के सागर तट स्थित प्रसिद्ध शैव कपालीश्वर मंदिर को ध्वस्त कर उस पर गढ़े हुये थॉमस की कब्र बता दी गयी जिसकी कि कब्र अन्यत्र है। यह काम विशिष्ट इसाई शैली में शनै: शनै: व्यवस्थित रूप से किया गया तथा वैधता प्रदान करने के लिये ढेर सारे झूठे साहित्य गढ़े गये। और तो और, उस कथित कल्पित थॉमस के शव की एक हड्डी वहाँ ला कर स्थापित की गयी। इस बार में विस्तार से जानने के लिये ईश्वर शरण की सप्रमाण एवं बहुत गहरे शोध के पश्चात लिखी गयी पुस्तक ‘The Myth of Saint Thomas and the Mylapore Shiva Temple’ देखी जा सकती है।
इतना तो था ही, देखें कि इस इसाई मिथक ने कैसे जटिल रूप ले लिया। केरल के लोग सबरीमला विवाद का एक यह पक्ष भी बताते हैं कि वहाँ के इसाई सीरियन चर्च के अनुयायी हैं तथा नीलक्कल(नीलाचल?)-सबरीमला-कुमिली तमिळनाडु जाने वाला प्राचीन मार्ग था। नीलक्कल में कल्पित थॉमस ने चर्च बनाया जिसमें पर्सिया से आया एक संत(?) मर सबोर रहता था तथा सबरीमला वास्तव में सबोर हिल है ! भाले के अर्थ वाले शब्द ब्रुम्हे को ब्राह्मण कर अनर्थ कर देने वाले चर्च अनुयाइयों से और क्या अपेक्षा रखी जा सकती है?
जब ब्रिटिश सत्ता ने मल्लापेरियार बाँध बनवाया तो वह प्राचीन मार्ग पूर्णत: लुप्त हो गया। १९ वीं शताब्दी तक सबरीमला में मला आरयन (आर्य?) लोग पुजारी होते थे। ये लोग केरल के पहले समुदायों में से थे जिन्हों ने इसाइयत अपनाया। अब उनमें लगभग आधे इसाई हैं, शेष हिंदू। जब मतांतरित हुये उन पुजारियों ने सबरीमला को इसाई तीर्थ केंद्र के रूप में (कपालीश्वर मंदिर की ही भाँति) परिवर्तित करने के प्रयास किये तो स्थानीय राज परिवार ने उसका नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया।
इस बात को जब इन तथ्यों से जोड़ कर देखेंगे कि १९०२ एवं १९५० में, दो बार, मन्दिर को जलाने, प्रतिमा भङ्ग करने एवं अपवित्र करने के प्रयास हुये थे, १९०२ ग्रे. के पश्चात तो उसका पुनर्निर्माण करवाना पड़ा था; तो समझ में आयेगा कि वर्तमान में चल रहा खेल भी एक प्रकार का आक्रमण ही है जिसमें कथित समानता का सिद्धांत एवं संविधान का छल पूर्वक उपयोग किया गया है।
उसी केरल में ऐसे चर्च हैं जहाँ इसाई स्त्रियाँ नहीं जा सकतीं। उनमें प्रवेश हेतु कभी किसी इसाई संगठन ने पहल या आंदोलन नहीं किया। सबरीमला पर जो हुआ या जो हो रहा है, वह सुविचारित आक्रमण है जिससे कि हिंदुओं की आस्था टूटे तथा चर्च द्वारा झूठ, छल एवं धूर्तता द्वारा मतांतरण का मार्ग कण्टकहीन हो जाय।
सबरीमला दूसरा कपालीश्वर है, काल भेद के कारण मात्र युक्तियाँ भिन्न हैं, उद्देश्य समान है – soul harvesting, मतान्तरण। स्त्री अधिकार की बातें आदि आवरण मात्र हैं। एक बुतखाने में प्रवेश के समर्थन में बुर्का से सिर से पाँव तक लदी मुस्लिम औरतों का खड़े होना विडम्बना की पराकाष्ठा है।
उन्हें स्त्री अधिकार के प्रति इतनी ही सजगता है तो पहले बुर्का, तीन तलाक, बहुविवाह, मस्जिद में प्रवेश आदि को ले कर तो खड़ी हों! वास्तव में वे अपने मजहब का पालन ही कर रही थीं, उन्हें स्त्री मुक्ति से कुछ नहीं लेना देना। क़ुर’आन का यह आयत अंश (२.१९०) पढ़ें, सब स्पष्ट हो जायेगा :
उल्लेखनीय है कि सबरीमला में विराजमान अय्यप्पा के अनेक मंदिर हैं तथा केवल उसी एक मंदिर में प्रजनन समर्थ स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है, बालायें एवं वृद्धायें दर्शन हेतु जाती ही हैं। ऐसे मंदिर भी हैं जहाँ पुरुषों को प्रवेश नहीं। इन विधि निषेधों का सम्बंध रीति से है, न कि किसी नागरिक स्वतंत्रता से। एक पक्ष जिस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा कि सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय तो अन्य समुदायों के पूजा स्थलों पर भी लागू किया जाना चाहिये, समानता सुनिश्चित करने में मत आधारित भेदभाव भी तो असंवैधानिक हैं !
सबरीमाला एकमात्र स्थान है जो वर्ष में एक करोड़ श्रद्धालु आकृष्ट करता है। अन्य कई तीर्थों की तरह यह तीर्थ भी हिन्दू एकता को पुष्ट करने वाला केन्द्र है और इसीलिये अयोध्या-काशी-मथुरा-प्रयाग की तरह ही अब्राहमियों की आँखों में खटकता रहा है। इस कारण पहले से जाँची परखी वामी रीति से कथित कुरीति गढ़ कर आक्रमण की नीति अपनायी गयी।
सबरीमाला ऐरण, उज्जयिनी आदि प्राचीन हिन्दू स्थानों की तरह ही नाक्षत्रिक प्रेक्षण का भी केन्द्र था। कारण थे इसकी स्थिति, अक्षांश और ऊँचाई। हिन्दू धर्म में नाक्षत्रिक घटनाओं को धार्मिक रूपक के साथ सुरक्षित कर दिया जाता है, यहाँ भी वही हुआ।
शीत अयनांत अर्थात 22 दिसम्बर के आसपास प्राची में उष:काल के समय अभिजित (Vega) नक्षत्र उदित होना प्रारम्भ करता जिसका कि उस ऊँचाई से प्रेक्षण आसान होता। मकर संक्रांति तक आते आते एक घटना और होती, हमारे रुद्र देवता (मृगव्याध) अर्थात लुब्धक नक्षत्र (Sirius) ब्रह्ममुहुर्त में पश्चिम में अस्त होते और विष्णु स्वरूप अभिजित नक्षत्र प्राची में उसी समय उदित होते। इन दो का दर्शन ‘मकरज्योति’ का दर्शन कहा जाता और इस तरह सबरीमाला वैष्णव और शैव दोनों का समन्वय स्थान हो हिन्दू आस्था के विराट केन्द्र के रूप में उभरा।
केरल बहुत पहले से गणित ज्योतिष का केन्द्र रहा है, यहाँ तक कि कुछ विद्वान आर्यभट को भी केरल से जोड़ते हैं। जैसा कि शेष भारत में हुआ, सैद्धांतिक ज्योतिष के प्रभाव में हमलोग आकाश निहारना भूलते गये और सबरीमाला में भी मकरज्योति मनुष्यों द्वारा दूर ऊँचे स्थान पर जला कर दिखाई जाने लगी। 2011 में इस पर विवाद भी हुआ था।
अब आते हैं रजस्वला स्त्रियों के इस मन्दिर में प्रवेश प्रतिबन्ध पर। एक अन्य पक्ष जो विषय से सम्बन्धित नहीं है किन्तु विचारणीय है – विग्रह स्पर्श। गर्भगृह में प्रवेश और विग्रहस्पर्श केवल सेवक पुजारियों के लिये ही अनुमन्य है क्यों कि विग्रह में देव देवी की ‘प्राणप्रतिष्ठा’ होती है। विशिष्ट जन के साथ भी व्यवहार और स्पर्श के विधि निषेध हैं तो वे तो देवी देवता हैं! तमिळनाडु के लगभग समस्त मन्दिरों में आप न तो गर्भगृह में प्रवेश कर सकते हैं और न ही प्रतिमा का स्पर्श। उत्तर में इस्लामी अत्याचार और भक्तिधारा के प्रभाव में सख्य भाव ने अपना स्थान बनाया, बड़े मन्दिर नष्ट कर दिये गये, नयों में वह धाक नहीं रही, परम्परा तनु हुई – अनेक कारण हैं। आगम शास्त्र यही कहते हैं कि गर्भगृह में जाना नहीं, प्रतिमा छूना नहीं! ‘गर्भ’ गोपन होता है, है कि नहीं?
सबसे बड़ी बात यह कि आज भी यदि आप उन दिनों में किसी हिंदू स्त्री से किसी सामान्य से मन्दिर में भी जाने की बात कहेंगे तो वह भरसक नहीं जाना चाहेगी जिसके कई कारण हैं। जो न्यायी और जो कथित प्रगतिशील इसे संवैधानिक अधिकार से जोड़ देख रहे हैं उन्हें अब्राहमी पंथों में व्याप्त सामान्य भेदभाव तक नहीं दिखते !
जो कुछ हो रहा है, उसके नेपथ्य में स्त्री अधिकार की इच्छा नहीं है, पंथपरिवर्तन द्वारा केरल को दारुल इस्लाम या मसीही प्रांत बनाने के मार्ग में जो अन्तिम पहाड़ खड़ा है उसे कैसे ध्वस्त किया जाय, यह षड़यंत्र काम कर रहा है।
जो आज केरल में हो रहा है, वह कल उत्तरप्रदेश में होगा, समय की बात है। उत्तर के अभी के हिन्दू नहीं देखेंगे तो उनकी सन्तानें देखेंगी।
कथित प्रगतिशीलों के आक्रमण को समझने की आवश्यकता है तथा समस्त भारत के हिन्दुओं को सीख ले कर अपने धर्म एवं परम्पराओं के प्रति जागृत हो सक्रिय कार्य करने की भी। इस समय केरल के संघर्षरत हिंदुओं के पक्ष में आंदोलन समस्त भारत से उठना चाहिये।
आगामी मकर सङ्क्रान्ति को घर में एवं मन्दिरों में सबरीमाला के अय्यप्पा स्वामी के सम्मान में ‘मकरज्योति‘ दीप अवश्य जलायें, अन्यों को भी प्रेरित करें।
स्वामिये शरणं अय्यप्पा ।
(लेख की कुछ सामग्री girijeshrao.blogspot.in से अनुमति पश्चात ली गयी।)