संस्कृत प्रहेलिका आलाप
(1) गुप्त श्रेणी (क्रिया-गुप्त प्रहेलिका) :
इस श्रेणी में क्रियापद गुप्त होता है जिसके कारण सामान्य प्रतीत होता अर्थ वास्तव में कुछ दूजा ही इङ्गित कर रहा होता है।
पाण्डवानां सभामध्ये दुर्योधन: उपागत: ।
तस्मै गां च हिरण्यं च सर्वाण्याभरणानि च ॥प्रतीत होता अर्थ जो कि वस्तुत: नहीं हो सकता : पाण्डवों की सभा में दुर्योधन आया। उसे गायें, धन एवं समस्त आभरण (दिये गये)।
वास्तविक अर्थ : इस पहेली में अदु: (उन्होंने दिया) क्रिया गुप्त है। दुर्योधन को सन्धि सहित इस प्रकार पढ़ा जाना चाहिये – अ-दु:+य:+अधन:- अर्थात पाण्डवों की सभा में जो निर्धन आया उसे उन्हों ने गायें, धन एवं समस्त आभरण दिये ।(2) च्युत श्रेणी (च्युतदत्ताक्षर पहेली) :
इस श्रेणी में शब्दों को कुछ अक्षरों से च्युत कर दिया जाता है (एवं जोड़ भी दिया जाता है) जिससे अर्थ परिवर्तित हो जाता है।
कूजन्ति कोकिला: साले यौवने फुल्लमम्बुजम् ।
किं करोतु कुराङ्गाक्षी वदनेन निपीडिता ॥प्रकटत: इसका अर्थ होगा साल वृक्ष पर कोकिल गाते हैं, यौवन आने पर कमल फुला जाते हैं, मृगनयनी क्या कर सकती है, उसका तो मुख मुरझाया हुआ है !
किन्तु इस पहेली में ‘साल’ शब्द के आरम्भ से ‘र’ की च्युति है जो कि वस्तुत: रसाल अर्थात आम है। ‘वदन’ शब्द वस्तुत: ‘मदन’ (कामदेव) है जिसमें से ‘म’ की च्युति हो कर ‘व’ का जोड़ है अर्थात मदन -म +व = वदन । ऐसा करने पर श्लोक ऐसा हो जायेगा :
कूजन्ति कोकिला: रसाले यौवने फुल्लमम्बुजम् ।
किं करोतु कुराङ्गाक्षी मदनेन निपीडिता ॥
आम के वृक्ष पर कोकिल गाते हैं, यौवन आने पर कमल फुला गये हैं, मृगनयनी क्या कर सकती है, वह तो कामदेव द्वारा पीड़ित है !
(3) कूट श्रेणी :इस श्रेणी में गणित, सन्धि आदि के प्रयोग द्वारा भ्रम उत्पन्न कर पहेली का सृजन किया जाता है।
एकोना विंशति: स्त्रीणां स्नानार्थं सरयूं गता ।
विंशति पुनरायाता एको व्याघ्रेण भक्षित : ॥एकोना विंशति – एक घटा कर बीस अर्थात उन्नीस स्त्रियाँ स्नान करने सरयू नदी गईं। बीस लौट आईं, एक को बाघ खा गया। (कैसे?)
बाघ द्वारा एक को खा जाने पर उन्नीस से एक घटा कर अट्ठारह लौटनी चाहिये किन्तु एक बढ़ कर बीस लौटीं, कैसे?
उत्तर सन्धि में है। पहले अर्थ में एकोना = एक+ऊना अर्थात एक घट कर होगा किन्तु छिपा अर्थ एको+ना में है जिसका अर्थ एक पुरुष होगा अर्थात एक पुरुष एवं बीस स्त्रियाँ सरयू नहाने गये, पुरुष को बाघ ने खा लिया, बीस स्त्रियाँ लौट आईं।प्रहेलिका से भिन्न श्रेणी आलाप की है जिसके कि दो प्रकार होते हैं – अन्तरालाप एवं बहिरालाप । अन्तरालाप श्रेणी में उत्तर प्रश्न छन्द में ही होता है जब कि बहिरालाप में बताना पड़ता है।
(4) अन्तरालाप :कामपि धत्ते सूकररूपी कामपि रहितामिच्छति भूप: ।
केनाकारि च मन्मथजननं केन विराजति तरुणीवदनम् ॥सूकर रूप में विष्णु किसे (काम्) धारण करते हैं? उत्तर प्रश्न में ही है – काम् अर्थात पृथ्वी।
राजा लोग किससे (काम्) मुक्त रहना चाहते हैं? उत्तर प्रश्न में ही है – काम् अर्थात प्रतिद्वन्द्वी राजा ।
किससे (केन) मन्मथ अर्थात कामदेव का जन्म हुआ ? उत्तर प्रश्न में ही है – केन अर्थात कृष्ण ।
तरुणी का मुख किससे (केन) शोभता है? उत्तर प्रश्न में ही है – केन अर्थात केशराशि से ।(5) बहिरालाप :
इसके अनेक प्रकार हो सकते हैं। निम्न उदाहरण देखें :
क: कर्णारिपिता गिरीन्द्रतनया कस्य प्रिया कस्य तुक्
को जानाति परेङ्गितं विषमगु: कुत्रोदभूत्कामिनाम् ।
भार्या कस्य विदेहजा तुदति का भौमेऽह्नि निन्द्यश्च कस्
तत्प्रत्युत्तरमध्यमाक्षरपदं सर्वार्थसंपत्करम् ॥कर्ण के अरि अर्थात अर्जुन का जनक कौन है?
पर्वतराज की पुत्री किसकी पत्नी हैं?
किसके अन्त में तुक् लगता है?
दूसरों का मन्तव्य कौन जान लेता है?
काम का उद्भव कहाँ होता है?
वैदेही किसकी भार्या हैं?
किससे चिन्ता होती है?
सप्ताह के दूसरे दिन भौमवार को क्या वर्जित है?
इन प्रश्नों के उत्तरों के मध्य अक्षर मिलाने समस्त अर्थ एवं सम्पत्ति का कारक प्राप्त होता है।ऐसे आलापों के उत्तर हेतु पौराणिक घटनाओं एवं पर्यायवाचियों का ज्ञान परमावश्यक है। जानने हेतु पहले समस्त प्रश्नों के उत्तर एक स्थान पर रखते हैं :
इन्द्र (वासव), शिव की (हरस्य), ह्रस्व ध्वनि के अन्त में (ह्रस्वस्य), बुद्धिमान (मतिमान्), मन में (मनसि), श्रीराम की (रामस्य), झूठी प्रशंसा (कुस्तुति), तेल मर्दन (अभ्यङ्ग)।
इनके मध्य अक्षर मिलाने पर बनता है – सरस्वति नमस्तुभ्यं अर्थात इस मन्त्र के जप से या सरस्वती की शरण में जाने या विद्या से अर्थ एवं सम्पत्ति प्राप्त होते हैं।
अतीव सुन्दरम् च शोभनं। एतत् कार्यम् सदा करणीयम् । शुभ कामना
अतीव शोभनम् । तथा अध्ययनार्थम् उपयुक्तम् अस्ति।
धन्यवादः।
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