भाषा-संकट राष्ट्रभाषा व जीविका

भाषा-संकट राष्ट्रभाषा व जीविका

एक बार पुनः भाषाओं को लेकर विवाद चल पड़ा है। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने पर कुछ क्षेत्रीय दलों, बुद्धिजीवियों द्वारा विरोध का क्रम चल पड़ा है। आने वाले २०-३० वर्षों में बहुत ‌से कार्य जो अभी लोग बोल कर करते हैं, उन्हें कम्‍प्यूटर करने लगेंगे। ये कार्य सर्वप्रथम अंग्रेजी भाषा के ही होंगे इसमें भी कोई संशय नहीं है।  बचे खुचे ऐसे कार्यों के लिए मूल अंग्रेजी भाषी को और अधिक प्राथमिकता मिलनी निश्चित ही है। तो हमारे लोग क्या बनेंगे? अंग्रेजी बोलने वाले वेटर?

नीलगाय गाय नहीं, मृग है – घड़रोज

नीलगाय गाय नहीं। ब्रिटिश काल से पहले इसका नाम किसी स्रोत में नीलगाय मिले तो बताइये। कतिपय जन जङ्‍गली गाय भी कहने लगे हैं जो ठीक नहीं है।

Thick-Billed Flower Pecker फुलसुंघी, चित्र सर्वाधिकार: आजाद सिंह, © Ajad Singh, सरयू नदी का कछार,माझा, अयोध्या, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश, July 28, 2019

Thick-Billed Flower Pecker फुलसुंघी

फुलसुंघी घने नम जंगलों, आम, महुआ, अमरुद आदि की वाटिकाओं में पाई जाती है। इसे वृक्षों की एक से दूसरी लघु शाखाओं पर फुदकते हुए देखा जा सकता है।

Autumn शरद

श्वेत धनुतोरण के नीचे,

और मेरा हिय, निज दु:ख धर धीर प्रयास
जब कि वासन समस्त
विदीर्ण खण्ड खण्ड,
चलता है नङ्गे पाँव,
और हो कर अन्‍ध।

Ego Trap Narcissism आत्मप्रशंसा शत्रु : सनातन बोध – 59

सनातन दर्शन में आत्मश्लाघा, आत्मप्रेम, आत्मप्रवञ्‍चना इत्यादि को स्पष्ट रूप से मिथ्याभिमान तथा अविद्या कहा गया है। वहीं स्वाभिमान की भूरि भूरि प्रशंसा भी की गयी है तथा उसे सद्गुण कहा गया है। अर्थात दोनों का विभाजन स्पष्ट है।

सारी धरती से

इस बार के विशेषाङ्क में हमने वैश्विक साहित्य से उन सम्वेदनाओं को अनुवादों के माध्यम से सँजोया है जो देश काल से परे सबको झङ्कृत करती हैं। एशिया, यूरोप, दोनों अमेरिका, अफ्रीका एवं ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपों से विविध कालखण्डों की ऐसी रचनायें प्रस्तुत हैं जिनमें मानवीय प्रेम, उत्साह, विलास एवं हताशा से उठती आशायें दिखती हैं।

Wake उत्सवी अवसर

प्रेमी वही जो बहने दे जैसे जल जाने देता। प्रस्तुत कविता सम्भोग समय स्त्री मन की अपेक्षाओं को उपमाओं एवं अन्योक्ति शैली में अभिव्यक्ति देती है।

धूप घमछहियाँ बारिश धीर समीर

पद्मश्री सम्मानित आचार्य सुभाष काक की कवितायें पढ़ना उनके बहुआयामी व्यक्तित्त्व के एक अनूठे पक्ष को उद्घाटित करता है। इन क्षणिकाओं में युग समाये हैं, शब्द संयम में जाने कितने भाष्य। लयमयी रचनाओं में जापानी हाइकू सा प्रभाव है जो प्रेक्षण एवं अनुभूतियों की सहस्र विमाओं में पसरा है।

दिन सदैव सूरज का

अरुणोदय हो रहा था। क्षितिज कांतिमान एवं पाटल हो चला था, मानो एक बहुत ही उज्ज्वल भविष्य का आगम बाँच रहा हो। मौसी मुझे अलिंद की ओर ले चलीं एवं शनै: शनै: उदित होते सूर्य की ओर इङ्गित कीं,“जानती हो? दिन सदैव सूरज का होता है।“

Muri muri hui hui मौन से भी मृदु

माओरी गीतों में युद्ध, प्रतिद्वंद्विता एवं उदात्त मानवीयता के आदिम भाव मिलते हैं। भावना एवं अभिव्यक्ति में उनकी साम्यता कुछ वैदिक स्वस्तियों से भी है। सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया, जीवन शरद शत जैसे काव्य भाव उनके यहाँ भी हैं यद्यपि आधुनिक काल की रचनाओं में मिलते हैं। उन्हें रचने वालों ने वेद पढ़े या नहीं, इस पर कोई सामग्री नहीं मिली।