कुछ वर्ष पूर्व एक मित्र का अनुभव जो उन्होंने मुझे सुनाया। वे और उनकी मित्र मण्डली फिल्म देखने गयी। फिल्म का नाम ‘अज्ञात’, हाँ वही राम गोपाल वर्मा वाली। फिल्म समाप्त होने पर उनमें कुछ जुगुप्सित थे, कुछ क्रोध में थे, कुछ सन्निपात की अवस्था में थे और ठगे से अनुभव कर रहे थे। क्योंकि फिल्म का मुख्य पात्र हत्या हिंसा आदि करता जाता है, दर्शक सोचते हैं स्यात अगले कुछ क्षणों में उसका पता लग जायेगा। उसका वदन नहीं दिखाया जाता। यह निर्देशक की कला ही थी, विशेषता रही होगी कि उसने बाँधे रखे रहा, दर्शक नख चबाते रह गए परन्तु अतिभूमि पर पहुँच कर भी उस पात्र का मुख मण्डल नहीं दिखाया गया और ‘टू बी कण्टिन्यूड इन नेक्स्ट पार्ट …’ जैसा सन्देश प्रकट हुआ। हाँ, कथा फिल्म आदि में इस विधा को ‘क्लिफ्हैंगर‘ का नाम दिया जाता है।
वर्तमान समय में हम लोग नित्य नवीन होते ‘क्लिफ्हैंगर’ का सामना कर रहे हैं। अनेक अपूर्ण कार्य जिनके बारे में हमारा मस्तिष्क बारम्बार स्मरण कराता है, जिनका चिंतन हम दिन में बहुधा करते हैं और उनमें अटके हुए रहते हैं। यथा,
वह एक अधूरा लेख जिसमें वे कुछ ‘डॉट्स’ अंत में रख दिए गए। आपको स्मरण है कि उसके पश्चात क्या? वे ‘चैट’ में उछल कूद करते डॉट्स जो कहते हैं ‘someone is typing…’ और अन्तत: कुछ नहीं आता। हम पुन: प्रतीक्षा में या लैपटॉप बंद कर के उस अटकन में घूमते रहते हैं कि वह क्या लिख रहा था?
या ‘ओटीटी’ के संसार में ‘सीजन’ और ‘एपिसोड’। जिन्हें दो घंटे की मूवी बनाकर भी समाप्त किया जा सकता है परन्तु इस प्रकार बनाया जाता है कि आप एक कड़ी देखें तो अगली कड़ी को देखने को उत्सुक ही रहें कि आगे क्या? बहुधा तो अंत तक भी यह ‘आगे क्या?’ का प्रश्न प्रश्न ही रह जाता है, अगले ‘सीजन’ की प्रतीक्षा कीजिये।
वे कुछ अनपढ़े ईमेल की स्क्रीन जो आपकी स्मृति में घूमती है और आपको स्मरण कराती रहती है कि हाँ, उन्हें देखना अभी शेष है।
या आपकी कोई ‘टू डू लिस्ट’ जिसमें कुछ कार्य शेष हैं, जो ‘स्टिकी नोट्स’ के रूप में कहीं लगे हैं और प्रात:भ्रमण या परिवार के साथ समय व्यतीत करते हुए भी जो बार-बार सिर उठाती रहती है कि कुछ कार्य अपूर्ण है, उन्हें देखना है, कब देखूँगा?
ऐसे अपूर्ण या अज्ञात विषयों या कार्यों में मस्तिष्क का अटके रहना और रह रह स्मृति में कोंचते रहना, ये वस्तुत: आपकी ऊर्जा को नष्ट भी कर रहे होते हैं और मानसिक तनाव भी दे रहे होते हैं। इसी सप्ताह हार्वर्ड बिज़नस रिव्यु में ठीक ऐसे अनुभव पर वसुंधरा साहनी ने अपने एक लेख में लिखा है। उन्हें यह अनुभव ‘लॉक डाउन’ के समय एक वेब सीरीज देखने के पश्चात हुआ। अनन्तर लेखिका ने पाया कि ऐसी मानसिक अटकनें वे नित्य जीवन में अनेक स्थानों पर देख पा रही हैं। वे वहीं नहीं रुकीं, उन्होंने अपने एक परिचित मनोचिकित्सक से इस पर चर्चा की। उन्हें पता चला कि इस प्रभाव पर आधुनिक विज्ञान में शोध हो चुके हैं और पहली बार Bluma Wulfovna Zeigarnik नामक एक रूसी महिला मनोविद ने उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में इस विषय पर शोध किया और उन्हीं के नाम पर इस मानसिक स्थिति का नाम पड़ा – ज़ीगरनिक प्रभाव।
ज़ीगरनिक प्रभाव इस बात को बताता है कि मानव मस्तिष्क अनेक कार्यों में से जो अपूर्ण कार्य रहते हैं उनको संवेदनात्मक स्मृति (Sensory Memory) में रख लेता है। यह स्मृति अल्पकालिक स्मृति (Short Term Memory) से भी पहले आती है अर्थात् यदि अल्पकालिक स्मृति में रख दिया जाता तो हम शीघ्र ही उसे भूल जाते। परन्तु ज़ीगरनिक प्रभाव कहता है कि मस्तिष्क इन अपूर्ण कार्यों को संवेदनात्मक स्मृति (Sensory Memory) से आगे बढ़कर अल्पकालिक स्मृति (Short Term Memory) में जाने ही नहीं देता और हम उन्हें भूल नहीं पाते हैं। परन्तु इन अपूर्ण कार्यों में से जो कार्य पूर्ण होते जाते हैं उन्हें वह संवेदनात्मक स्मृति (Sensory Memory) से अल्पकालिक स्मृति (Short Term Memory) स्थानांतरित करता जाता है और हम उन पूरे हुए कार्यों को भूलते जाते हैं। परन्तु अपूर्ण कार्य संवेदनात्मक स्मृति में वैसे ही पड़े रहते हैं और हमारा मस्तिष्क उनका बारम्बाार स्मरण करवाता रहता है।
ज़ीगरनिक ने जो अच्छी बात बताई वह यह है कि अपूर्ण कार्यों के कारण स्मृति हमें जो तनाव दे रही है और उसके कारण जो ऊर्जा नष्ट हो रही है, उसका प्रयोग हम ठीक इसके उलट लाभ के लिए भी कर सकते हैं। जो उन्होंने कुछ इस प्रकार बताये।
यथा आपको कोई बड़ा कार्य करना है और आप श्रीगणेश नहीं कर पा रहे हैं तो उसे कुछ छोटे टुकड़ों में बाँट लें, और एक छोटे टुकड़े से अवश्य आरम्भ कर लें। ऐसा करके आप उस विशाल कार्य को ज़ीगरनिक प्रभाव के अंतर्गत ले आते हैं। अब हर छोटे कार्य की समाप्ति पर आपका मस्तिष्क अगले अधूरे टुकड़े को पूरा करने का स्मरण कराता रहेगा और आप उन्हें समय निकाल निकाल बीच बीच में करते रहेंगे। इस प्रक्रिया में आप उस बड़े कार्य को पूरा कर लेंगे जोकि इस प्रभाव का एक अच्छा अनुप्रयोग है।
लोगों का ध्यान आकर्षित करने हेतु, यथा ईमेल के विषय में वाक्य लिखते हुए अधूरा छोड़कर ‘तीन बिन्दु’ लगा देना जो प्राप्तकर्ता द्वारा आपका ईमेल पढ़े जाने की सम्भावना को बढ़ा देता है क्योंकि अपूर्णता जिज्ञासा को बढ़ा देती है – पुुुन: ज़ीगरनिक प्रभाव का एक रोचक उपयोग।
अध्ययन, या परीक्षा काल से पहले की पढाई में जहाँ कण्ठस्थ करना हो वहाँ, जिन सूचनाओं को कण्ठस्थ करना है, उन्हें कुछ टुकड़ों में बाँट लें और एक एक कर उन पर अध्ययन करें, परन्तु अन्तराल लेते रहें। बीच में उठ जायें, कुछ ढील दें, कुछ खाना-पीना करें। अर्थात् एक बार में निरन्तर रह कर पूरी सूचना या सामग्री अपनी स्मृति में भरने का प्रयास न करें। उसे समय देकर, रुक-रुक कर, टुकड़ों में कण्ठस्थ करें। इससे बड़ी सूचना कोो कण्ठस्थ करने में अधिक सहायता मिल सकती है।
कठिन या लम्बे नाम आदि स्मरण करना। उनको तीन चार शब्दों में तोड़ लें और जब तक एक शब्द कण्ठस्थ न हो जाये, तक तक दूसरे पर न बढ़ें।
तो ऐसी किसी परिस्थिति में हम या तो तनाव ले सकते हैं या उस तनाव के कारण व्यर्थ होने वाली ऊर्जा का सदुपयोग कर सकते हैं, चयन हमारा है यदि समझ सकें तो! यथा, कुछ मित्र ‘अज्ञात’ फिल्म देखने के पश्चात क्रोधित हो गए कि कुछ भी ज्ञात नहीं हुआ, ऊपर से निर्माता की निर्लज्जता यह कि अगले भाग में ज्ञात करवायेंगे, यह ‘तनाव‘ है। कुछ अब भी ज्ञात करने के लिए प्रतीक्षा में हैं कि अगला भाग कब आएगा, यह फिल्म निर्देशक का ‘ध्यानाकर्षण‘ प्रयोग है।