आज आषाढ़ मास की पूर्णिमा है जोकि गुरु पूर्णिमा कहलाती है। क्यों? गुरु कौन?
आज चन्द्र उत्तराषाढ़ नक्षत्र पर होंगे। कल से श्रावण मास आरम्भ होगा, वर्षाकाल अब संयम प्रधान होगा। ऐसे में विशेष अध्ययन अध्यापन हेतु गुरु वांछनीय होंगे ही।
प्राय: 21 जून को सूर्य के आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश के साथ ही मृगशिरस की तपन से मुक्ति मिलती है। भारत का अधिकांश वर्षा की पहली झड़ियों का अनुभव कर चुका होता है या करने लगता है। गाँव गिराम में कहते हैं ‘हथिया के पेटे जाड़’। सूर्य हस्त नक्षत्र में 27 सितम्बर को प्रवेश करते हैं। उदर में जाड़े को रखी हस्त अपभ्रंश हाथी उसे 10 अक्टूबर को चित्रा को सौंप देता है और जाड़े का आरम्भ मान लिया जाता है।
अभी सूर्य पुनर्वसु नक्षत्र में हैं। पुन: वसु, स्वयं को पुन: प्राप्त करने हेतु आरम्भ कीजिये, अध्ययन उद्योग का काल 10 अक्टूबर तक है जिसके आगे उत्सव समय है।
सत्यकाम जाबाल को उपनयन के पश्चात आचार्य गौतम ने कृशानामबलानां चतु:शता गा, चार सौ दुबली और अबला गायें सौंपी और कहा इन्हें तब तक वन में चराना जब तक हजार न हो जायें। देखें तो यह कठिन श्रम परीक्षा थी जिसमें सत्यकाम लग गये। आचार्य के निर्देश पालन में ऐसे लीन हुये कि मनुष्येतर से भी संवादित हो उठे।
पहला ज्ञान गो झुण्ड में से ऋषभ ने दिया, हम अब हजार हो गये हैं, हमें आचार्य के पास ले चलो। सुनो, मैं तुम्हें ब्रह्म का एक चरण बताता हूँ – प्राची दिक्कला प्रतीची दिक्कला दक्षिणा दिक्कलोदीची। चार दिक्कलाओं में प्रकाशवान नामधारी ब्रह्म एक पाद व्याप्त करता है।
दूसरा संवाद अग्नि से हुआ। अनंतवान संज्ञक ब्रह्म का दूसरा पाद पृथ्वी, अंतरिक्ष, द्यौ और समुद्र में व्याप्त है।
तीसरा संवाद हंस से हुआ। ज्योतिष्मान नामधारी ब्रह्म का तीसरा पाद अग्नि, सूर्य, चन्द्र और विद्युत इन चार कलाओं में व्याप्त है।
चौथा संवाद जलीय पक्षी मद्गु से हुआ। प्राण, चक्षु, श्रोत्र और मन, इनमें आयतनवान नामधारी ब्रह्म का चौथा पाद व्याप्त है।
सत्यकाम आचार्य के पास पहुँचे और आचार्य ने कहा – ब्रह्मविदिव वै सोम्य भासि को नु त्वानुशशासे? हे सौम्य! तुम ब्रह्मविद की भाँति प्रदीप्त हो रहे हो। तुम्हें किसने उपदेश दिया? सत्यकाम के बताने पर आचार्य ने उन्हें आगे की विद्या दे पूर्णता प्रदान की। परम्परा, समर्पण, उद्योग और अप्रतिहत चेतना साथ हों तो कोई भी गुरु हो सकता है। ऐसे शिष्य की प्रारम्भिक गुरु समूची सृष्टि होती है।
मघा के इस अंक में अभिषेक ओझा आधुनिक विद्या अनुशासनों में सनातन परम्परा के सूत्र दर्शा रहे हैं। हिन्दुत्त्व के अनूठे ब्रह्मव्याप्ति गुण को ईसाई और इस्लाम मजहबों में पूर्णत: अनुपस्थित बताती उनकी हानिकारक प्रवृत्ति को रेखांकित करती मारिया विर्थ पतञ्जलि मार्ग के अनुसरण पर एक रहस्योद्घाटन सी की हैं।
चन्द्र भी सहस्रशृंग वृषभ हो रात में गृहस्थ से लोरी गवा सकता है। वैदिक साहित्य की अगली कड़ी में सम्बन्धित सूक्त का काव्य भावानुवाद प्रस्तुत है। संस्कृत भाषा में अङ्कों की कूट शब्द और अक्षरों से अभिव्यक्ति और गणित के सूत्रों की श्लोक संरचना पर अलङ्कार शर्मा के आलेख की दूसरी कड़ी भी इस अङ्क में प्रस्तुत है।
अवधी क्षेत्र में विचरते आजाद सिंह से मघा के सभी पाठक परिचित हैं। भारतीय पक्षियों पर फोटो फीचर की अगली कड़ी जलीय पक्षी घोंघिल को समर्पित है। किसी न किसी दिन वह सत्यकाम के गुरु पक्षी मद्गु से भी परिचय करा ही देंगे।
सत्तर वर्ष की प्रतीक्षा के पश्चात पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इजराइल की आधिकारिक यात्रा की। ऊष्म भाव दोनों ओर दर्शनीय रहे। यात्रा की लब्धियों पर विशेषज्ञ चर्चा करते रहेंगे किंतु यह यात्रा अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में भारत के बढ़ते आत्मविश्वास को दर्शाती है। इस यात्रा से भारत एक परिपक्व राष्ट्र के रूप में उभरा है। इस अङ्क में आचार्य सुभाष काक यहूदियों के भारतीय मूल के बारे में अरस्तू के कथन की डोर पकड़ संभावनाओं की अद्भुत कालयात्रा किये हैं। ऋग्वेद एवं मितान्नी और प्राचीन मिस्री अभिलेखों से होती हुई यह यात्रा भारत को ढूँढ़ती सम्भावनाओं की बानगी भी है। यशार्क पाण्डेय का लेख बता रहा है कि इजरायल से भारत क्या सीख सकता है?
आप के लिये पूर्णिमा सहस्र धारामयी हो।
‘मघा’