लघु दीप अँधेरों में , पिछली कड़ियाँ : 1 , 2 , 3 , 4, 5, 6
सुभाषित (भर्तृहरि रचित नीति शतक से)
व्यालं बालमृणालतन्तुभिरसौ रोद्धुं समुज्जृम्भते
छेत्तुं वज्रमणिं शिरीषकुसुमप्रान्तेन सन्नह्यति ।
माधुर्यं मधुबिन्दुना रचयितुं क्षारामुधेरीहते
नेतुं वाञ्छन्ति यः खलान्पथि सतां सूक्तैः सुधास्यन्दिभिः॥1.6॥
जो मनुष्य अपने अमृत समान सदुपदेशों से खल दुर्जनों को सन्मार्ग पर लाना चाहता है, वह मानों कमल के कोमल नाल तंतुओं से हाथी को बाँधना, शिरीष की पुष्प पङ्खुड़ी से हीरे में छेद करना एवं खारे समुद्र के जल को मधु की बूँदों से मीठा करना चाहता है।
(अर्थात खल दुर्जनों के लिये उपदेश नहीं, दण्ड प्रभावी होता है।)सन्त्यन्येऽपि बृहस्पतिप्रभृतय: सम्भाविता: पञ्चषा-
स्तान्प्रत्येषविशेषविक्रमरुची राहुर्न वैरायते।
द्वावेव ग्रसते दिनेश्वरनिशाप्राणेश्वरौ भास्करौ भ्रात:!
पर्वणि पश्य दानवपति: शीर्षावशेषाकृति: ॥1.36॥
आकाश में बृहस्पति एवं उसके समान पाँचेक अन्य भी हैं, किन्तु अपने विशेष पराक्रम में रुचि रखने वाला शिरमात्र शेष राहु उनसे वैर न करके परम तेजस्वी सूर्य एवं चन्द्र को ही ग्रसता है।दुर्जनः परिहर्तव्यो विद्ययाऽलङ्कृतोऽपि सन्।
मणिना भूषितः सर्पः किमसौ न भयङ्करः ॥1.53॥
दुर्जन विद्वान है तो भी त्याग देने योग्य है। क्या मणि से अलङ्कृत किसी सर्प में भयङ्करता नहीं होती?
पूजा के फूल, ‘मिट्टी’ खाद
कभी आप ने सोचा है कि मन्दिरों में चढ़ाये गये लाखों टन फूलों का मुरझाने के पश्चात क्या होता है? नदी नाले में बहा देते हैं – यही उत्तर है न?
अंकित अग्रवाल एवं करन रस्तोगी इस समाधान पर ही नहीं रुके। अभी तीस वर्ष की अवस्था भी नहीं प्राप्त इन दो युवाओं ने कानपुर के निकटवर्ती क्षेत्रों से फूलों को एकत्रित कर विविध उपभोक्ता उत्पाद यथा अगरबत्तियाँ, ऑर्गेनिक खाद इत्यादि बनाने का StartUp प्रकल्प HelpUsGreen आरम्भ किया।
फूलों को एकत्रित करने के काम में लगा कर 1200 महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम होने में सहयोग किया। ग्रामीण स्वयं सहायता समूह इनके प्रकल्प के माध्यम से बढ़ई, राजगीर, बिजली मेकेनिक इत्यादि का काम सिखा लोगों को अपने पैरों पर खड़ा होने में सहयोग कर रहे हैं। फूल उत्पादन में प्रयुक्त विविध हानिकारक रसायनों के गङ्गा नदी में पहुँचने से रोकने में भी इनके प्रकल्प का योगदान रहा है। आश्चर्य नहीं कि ये अपने प्रकल्प के लिये ध्वज वाक्य Reviving the Ganges through Livelihoods का प्रयोग करते हैं।
‘मिट्टी’ नाम से विपणित इनकी ऑर्गेनिक खाद शनै: शनै: लोकप्रिय हो रही है। इनके इस योगदान के लिये Fast Company’s 2018 World Changing Ideas Awards के उपभोक्ता उत्पादन वर्ग का पुरस्कार भी HelpUsGreen को मिला।स्रोत, आभार: helpusgreen.com, fastcompany.com
मौन वाणी निर्देश, कृत्रिम प्रज्ञान एवं अपर स्वरूप Silent Speech, AI, AlterEgo
कृत्रिम प्रज्ञान (Artificial Intelligence) भविष्य है। चीन सहित लगभग समस्त विकसित देश इस क्षेत्र में शोध में बहुत तन्मयता से लगे हुये हैं। अपनी सुंदरता के लिये प्रसिद्ध एवं कभी मॉडल रही बेल्जियम की पैट्टी मीज (Pattie Maes) अब मेसाचुसेट तकनीकी संस्थान (MIT) में मीडिया लैब से सम्बंधित आचार्या हैं। भारतीय छात्रों अर्णव एवं श्रेयस कपूर के साथ मिल कर वह एक ऐसा यंत्र प्रतिरूप ले कर आई हैं जो भविष्य में मानव संगणक संवाद (HCI – Human-Computer Interaction) की संभावनाओं को तो असीम बना ही सकता है, मानव-मानव संवाद को भी जाने कितने नये आयाम दे सकता है। मनुष्य से सक्रिय मौन-संवाद कर मशीनें कृत्रिम प्रज्ञान की परास को विस्तृत कर सकती हैं।
मनोविज्ञान की एक अवधारणा Alter Ego (एक प्राण दो शरीर, अपर स्वरूप) के नाम पर ही इस युक्ति का नाम AlterEgo रखा गया है। Silent Speech (मौन वाचा) का आधार ले कर विकसित की गयी यह युक्ति शब्दहीन ‘खुद दिल से दिल की बात कही’ को व्यावहारिक भौतिकता प्रदान करती है।
इस युक्ति के विकास में बहुविषयक ज्ञान का सफल प्रयोग हुआ है किंतु आधारभूत सिद्धांत सरल ही है। जब हमें कुछ कहना होता है तो शब्दों का जीभ से होते हुये मुख द्वारा उच्चारण होने से पहले भीतर कई आंतरिक क्रियायें सम्पन्न होती हैं। मस्तिष्क की लहर विद्युत संकेत बन कर आंतरिक वाचिक पेशियों को सक्रिय करती है। यदि आप बोलें न, केवल चुप रह कर स्वयं से स्वयं ही बात करें तो भी ये संकेत उत्पन्न होते हैं।
AlterEgo पर लगे हुये सुग्राही अवयव इन संकेतों को ग्रहण करते हैं एवं विश्लेषण हेतु एक जटिल केंद्रीय संगणक तंत्र में भेजते हैं। विश्लेषण द्वारा यंत्र शब्द, अर्थ, संगति, संदर्भ इत्यादि को जोड़ कर समझने योग्य वाक्यों में उसे प्रेषित करता है जिससे व्यक्ति को संवादित होना होता है। वह दूसरा व्यक्ति भी हो सकता है, कोई यंत्र भी यथा टी वी, फ्रिज, घर का ए सी, लॉकिंग तंत्र इत्यादि इत्यादि। इस प्रकार आप बिना शब्द कहे, बिना किसी दूसरे के जाने, बिना किसी अन्य को बाधा पहुँचाये वांछित यंत्र या व्यक्ति से ‘मौन संवाद’ स्थापित कर सकते हैं। परीक्षणों में इस युक्ति की परिशुद्धता 92% पायी गयी जोकि आरम्भ के लिये बहुत उत्साहजनक है। अपने मोबाइल फोन की विकास यात्रा पर ध्यान दें तो भविष्य का अनुमान सहज ही हो जायेगा।
इस प्रकार मानव एवं संगणक का समेकित रूप गणना, अंतर्जाल एवं कृत्रिम संज्ञान के योग से एक ‘अपर स्वरूप’ में विकसित होगा जिसकी क्षमता एवं कार्यसम्पादन योग्यता में कई गुना वृद्धि होगी। किसी भी ज्ञान एवं तकनीक की भाँति इसका दुरुपयोग भी हो सकता है, कैसे? आप स्वयं सोचिये। अभी तो प्रसन्न होइये कि विज्ञान गल्प यथार्थ होने की दिशा में एक पग आगे बढ़ गया है।स्रोत आभार: https://www.media.mit.edu
संदर्भ : AlterEgo: A Personalized Wearable Silent Speech Interface, IUI 2018, March 7–11, 2018, Tokyo, Japan