जिहादी मुल्क एवं बनिया देश: चूँकि युद्ध एवं विनाश एक दूसरे के पर्याय हैं, कोई भी विकसित उत्पादक समाज युद्ध नहीं चाहता, जब कि लुटेरा सदैव चाहता है जिसकी युद्ध की अपनी परिभाषा होती है — संरक्षण हेतु नहीं, लूट हेतु। जिहाद उसी प्रकार का युद्ध है।
मुत्रपान करने वाले, लिंग पूजने वाले; इन दो के अतिरिक्त पाकिस्तानी (विशेषकर पंजाबी) हिंदुओं के प्रति जिस तिरस्कार संबोधन का प्रयोग करते हैं, वह है ‘हिंदू बनिया’। इसके पीछे क्या मानसिकता है?
वैश्य उत्पादन से जुड़ा है, धन एवं संसाधन सृजन से। कृषि, पशु पालन, व्यापार; सभी समृद्धि से जुड़ते हैं। बनिया समाज की सुख, समृद्धि एवं जीवन स्तर में बढ़ोत्तरी हेतु लगता है। उसके स्वार्थ से समस्त समाज का स्वार्थ जुड़ा होता है। इस सबके लिये जिस की आवश्यकता है या कहें कि जो अनिवार्य तत्त्व है, वह है शांति, उपद्रवहीनता, विधि के अनुसार जीता एक उन्नत समाज। दोनों पक्ष एक दूसरे से जुड़े हुये हैं, एक से दूसरा तथा दूसरे से पहला – चक्रीय सम्बंध।
पाकिस्तान एक मुसलमानी जिहादी देश है जिसके मूल में न्यायपूर्वक उत्पादन नहीं, उत्पादन को छीन कर बाँटना है। इस्लाम में उस उत्पादन को छीनना एवं बाँटना ‘जायज’ है जिसे एक काफिर ने या उसने उपजाया हो जो मुसलमान न हो। उस छीन बाँट हेतु सब पाक है — हत्या,बलात्कार, दास बनाना, मानव का क्रय विक्रय, उसके सम्मान की हानि आदि सब। मुसलमान बहुल क्षेत्रों में बँटवारे के पूर्व मुसलमान जहाँ अपने दीनी विधि विधान के बारे में बहुत स्पष्ट थे, ‘हिंदू बनिये’ ईश्वर अल्ला तेरो नाम की गफलत में थे कि जैसा है, वैसे ही चलता रहेगा।
बनिया या वैश्य को किसी जाति से न जोड़ एक उन्नत वर्ग से समझें। आज के संसार में भी वही देश उन्नत है जो बणिक कर्म एवं उसके संरक्षण अभिवर्द्धन में अधिक निष्णात है। युद्ध मानव प्रगति के मार्ग में एक अवांछित घटना क्रम होता है। चूँकि युद्ध एवं विनाश एक दूसरे के पर्याय हैं, कोई भी विकसित उत्पादक समाज युद्ध नहीं चाहता, जब कि लुटेरा सदैव चाहता है जिसकी युद्ध की अपनी परिभाषा होती है — संरक्षण हेतु नहीं, लूट हेतु। जिहाद उसी प्रकार का युद्ध है।
किसी पुरातन समाज का जो राजन्य वर्ग होता है, वह वैश्य वर्ग से ही निस्सृत होता है। शांति काल में तथा एक सुव्यवस्थित समाज में युद्ध की आवश्यकता अल्प होने एवं उत्पादन में वृद्धि की आवश्यकता बढ़ते रहने से क्षत्रिय वर्ग वैश्य कर्म में प्रवृत्त होता है। पञ्जाब का खत्री वर्ग उसी प्रकार का वर्ग है। लाहौर में हिंदू खत्रियों की एवं लालाओं की बड़ी प्रतिष्ठा थी, बहुत सम्पदा थी किन्तु सदाशयता में उन्होंने इस्लाम के भय को भुलाये रखा तथा अन्तत: सब गँवाना पड़ा।
लुटेरे जिहादियों द्वारा काफिरों को तिरस्कार से हिंदू बनिया कहना लूट की जिहादी विजय को पीढ़ी दर पीढ़ी सुरक्षित रखना है। जिस भारत के विश् से प्रतिष्ठा जुड़ी है, जिसने व्यापारिक अभियानों से समस्त विश्व में अपनी ध्वजा फहरायी, उस भारत को ‘बनिया देश’ मानने अर्थात ‘हानि सह लेगा किंतु पलट कर मारेगा नहीं’; यह मान्यता ग्रंथि जिहादी मुल्क पाकिस्तान में 1947 से ही रही है।
विडम्बना ही है कि पलट कर मारने वाला भारत आज जाति से एक बनिया के ही नेतृत्त्व में है। किसी पाकिस्तानी से खोद कर पूछेंगे तो उसका सबसे बड़ा दु:ख यही मिलेगा कि बनिया देश ने मारना आरम्भ कर दिया ! लाहौल बिला … यह एक सामान्य पाकिस्तानी प्रभु वर्ग के नागरिक का सबसे बड़ा दुख है।
यदि आप सोचते हैं कि वहाँ भी लोग हम जैसे ही हैं तो भारी भूल कर रहे हैं। वे सभी मूलत: जिहादी असभ्य लुटेरे हैं तथा हम सभ्य बनिये। हम उनके मित्र कभी न थे, न होंगे। मित्रता या शत्रुता का तिरोहण तब ही सम्भव हैं जब हम में से एक का नाश हो जाय – या तो वे इस्लाम छोड़ दें या हम कबूल लें। दोनों असम्भव हैं।
सचाई सचाई ही रहनी है, आप को बुरी लगे तो लगे।
(लेखक: गिरिजेश राव, अनुमति से)