‘बीज माता’ के नाम से अब अपने को स्थापित कर चुकी राहीबाई महाराष्ट्र की एक किसान हैं। कहने को वे आज भी किसान हैं पर अब उनके प्रयासों का प्रकाश देश-विदेश तक पहुँच चुका है।
एक समय राहीबाई और उनका परिवार भी साधारण से किसान की भाँति वर्ष के कुछ महीने मानसून आधारित खेती करते और शेष महीनों में पास के उपनगरीय स्थानों या गन्ना उद्योग में श्रमिक कार््य करते हुये जीवन यापन करते थे। नए समय के आने के साथ साथ अपने आस-पास के लोगों और नयी पीढ़ियों में होने वाली स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं को राहीबई ने देखा। भोजन करते समय वे अपने बाल्यकाल की स्मृतियों को अनुभव करतीं और उन्हें लगता कि अब वैसा स्वाद, वैसी ऊर््जा का भोजन पश्चात अनुभव नहीं होता।
राहीबाई की देशज प्रेरणा जगी और उन्हें शीघ्र ही सन्देह होने लगा कि यह सब संकरित बीजों की उपज के कारण हो रहा है। जिससे हम अल्प पोषण वाला भोजन करने को अभिशप्त हैं। वे बताती हैं कि अनेक बीज तो ऐसे हैं जिन्हें अत्यधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है जो महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त स्थानों के लिए किसी भी प्रकार से उचित नहीं। शनै: शनै: इन संकरित बीजों (या कहें कि बीज से बाजार नियंत्रित करने वाली शक्तियों) से इतनी घृणा हुयी कि उन्होंने लुप्त होते देशज बीजों के संरक्षण को अपना लक्ष्य बना लिया।
वे अपनी सामर्थ्य अनुसार भिन्न-भिन्न स्थानों पर जाने लगीं और यत्र-तत्र जिस किसान से भी उन्हें कोई देशी बीज मिलता उसे एकत्रित करने लगीं। वर्तमान में उन्होंने अपने उद्यम के फलस्वरूप प्राय: ३२ प्रकार के सस्य के १२२ प्रकार के बीजों का संरक्षण किया है। बिना किसी प्रायोजित धन के उन्होंने यह सब अपनी सामर्थ्य एवं अपनी अंत: प्रेरणा से किया। अन्य किसानों को जागृत किया, ‘स्वयं सहायता समूह’ बना कर अपना काम करती रहीं।
विडम्बना ही है कि सरकार प्रत्येक वर्ष लाखों के अंशदान नवीन शोधार्थियों को देती है परन्तु जो कार्य उनमें से किसी को करना चाहिए वह कार्य एक साधारण किसान स्त्री कर लेती है, वह भी बिना किसी प्रायोजित धन के।
कुछ दिवस पूर्व ही’ वृक्ष माता’ कही जाने वाली एक अन्य महिला सालूमरदा थिमक्का को पद्मश्री मिला है।
कुछ दिनों पूर्व ही अच्युतानन्द द्विवेदी ने बीज माता राहीबाई पर एक लघु फिल्म बनायी। इस फिल्म को कान फिल्म महोत्सव में पुरस्कार भी मिला है। बीबीसी ने भी उन पर एक वृत्तचित्र बनाया है।
बीज माता राहीबाई भारत भूमि की उन अनेक अनाम माताओं में से हैं जो बिना किसी स्वार्थ के सार्थक परिवर्तन का प्रकाश प्रसारित कर रही हैं। ऐसे लघु दीपों को नमन।
उन्होंने बीज बचाये और आपने उनका प्रयास लोगों को दिखाया और प्रेरणा दी।
आपको धन्यवाद