आज मघा का शतकाङ्क है अर्थात इसे प्रकाशित होते हुये सौ पक्ष पूरे हो गये, कुल १४७७ दिन। विक्रम संवत २०७३ की पौष पूर्णिमा को इसका शून्याङ्क प्रकाशित हुआ था। पाठकों, लेखकों तथा नेपथ्य तकनीकी सहयोगी की निरन्तर सहायता से यह पत्रिका अपने प्रकाशन के पाँचवें संवत्सर में है। पत्रिका में संस्कृत, हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषाओं में साहित्येतर विषयों पर लेख प्रकाशित होते रहे हैं तथा मघा नक्षत्र पर सूर्य एवं चन्द्र के एक होने पर साहित्य विशेषाङ्क भी प्रकाशित हुये हैं जिनमें प्रमुखता विदेशी साहित्य के अनुवादों की रही है। मुख्यतया हिन्दी भाषा में ही लेख प्रकाशित हुये जिनकी पहुँच मुख्य रूप से हिन्दी क्षेत्र सहित देश विदेश के हिन्दीप्रेमियों तक है।
पत्रिका निश्शुल्क व विज्ञापनरहित है तथा लेखकों को भी कोई आर्थिक मानदेय नहीं देती। इस पर भी उन सबने सहर्ष उत्कृष्ट सामग्री प्रदान की, इसके लिये उन सबको बहुत बहुत धन्यवाद। लेखों की गुणवत्ता का निर्णय तो पाठक ही कर सकते हैं किन्तु मघा प्रबन्धन ने गुणवत्ता को एकमात्र निकष रखा है।
साहित्येतर विविध विषयों पर सामग्री उपलब्ध कराने के घोषित उद्देश्य की लब्धि में सफलता सीमित ही रही जिसके अनेक कारणों में से एक इसका हिन्दी केन्द्रित होना है। यह एक कटु सचाई है कि हिन्दी क्षेत्र का बहुसङ्ख्य शेरो-शायरी व कथित कविताओं को ही अध्ययन का शीर्ष और सम्पूर्ण मानता है। बचा खुचा समय अधकचरे व छिछ्ले धार्मिक विषयों पर गाल बजाने में चला जाता है, अधिकांश तो वह भी नहीं करते! अन्य विषयों हेतु लिखने तथा पढ़ने वाले अत्यल्प ही हैं। भाषिक शुद्धता के प्रति निरादर व आलस्य भाव तो हैं ही, अरबी, तुर्की व फारसी दूषण को ‘भाषा बहता नीर’ बताते हुये गले लगाने की प्रवृत्ति भी बहुत अधिक है।
अगले अङ्क से कलेवर में कुछ परिवर्तन होंगे जिनमें भारती संवत को चरणबद्ध रूप में अपनाया जाना प्रमुख होगा। संस्कृत एवं अङ्ग्रेजी भाषाओं में लेख बढ़ाने पर बल दिया जायेगा क्योंकि किसी भी पत्रिका को चलाने के लिये विषय-विविधता के साथ लेखक भी चाहिये जोकि हिन्दी में नहीं हैं। यदि ऐसे ही चलता रहा तो सम्भव है कि लेखों के अभाव में एक दिन इस पत्रिका का प्रकाशन ही स्थगित कर देना पड़े!
समस्त सीमाओं के होते हुये भी पत्रिका में मनोविज्ञान, भारत-विद्या, नाक्षत्रिकी, ललित-विज्ञान, गणित, इलेक्ट्रॉनिक्स, सङ्गणक अभियान्त्रिकी, वेद, ज्यौतिष, पुराण, आख्यान, संस्कृत, व्याकरण, विधि, महाकाव्य, शिल्प, अर्थ, शोध, यायावरी आदि से जुड़े लेख एवं ध्वनि प्रस्तुतियाँ प्रकाशित हुईं, जिसे सन्तोषजनक कहा जा सकता है।
आवागमन बढ़ने के साथ ही उच्चतर क्षमता वाले सेवा-प्रदाता के पास जाने की आवश्यकता पड़ी तो पिछले वर्ष आर्थिक सहयोग का निवेदन भी किया गया। कोई बड़ी धन-राशि तो नहीं मिली किन्तु जिन लोगों ने भी जितना योगदान किया, वह सहायक ही हुआ। उनके प्रति मघा प्रबन्धन आभारी है। आवक-जावक का लेखा जोखा अगले अङ्क के आमुख में लगा दिया जायेगा। जो योगदानकर्ता अपने नाम की गोपनीयता बनाये रखना चाहते हैं, कृपया ई मेल द्वारा सूचित कर दें।
एक बार पुन: सभी शुभेच्छुओं व सहयोगियों को धन्यवाद।
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गत २६ जनवरी, राष्ट्रीय पर्व के दिन लालकिले पर उपद्रवियों द्वारा पांथिक निशान एवं कथित खालिस्तानी ध्वज को फहराने का जो अभूतपूर्व कुकृत्य किया गया, वह अक्षम्य है। शाहीन बाग से आरम्भ हुये राष्ट्रीय राजधानी के बलात्कार की वह चरम परिणति थी। प्रत्येक सङ्कट को वोटों में परिवर्तित करने की कुत्सित मानसिकता के कारण ही शाहीन बाग हुआ और लाल किले पर एक साम्प्रदायिक झण्डा फहरा। जो लोग देश-रक्षा की शपथ ले कर सत्तासीन हुये हैं, उनके द्वारा इस प्रकार की धूर्त लद्धड़ई का प्रदर्शन भी अभूतपूर्व है।
कालो वा कारणं राज्ञो राजा वा कालकारणम्।
इति ते संशयो मा भूद्राजा कालस्य कारणं ॥
जिस दुर्घटना की आशङ्का देश के हर चैतन्य नागरिक को थी, उसका आभास सत्तासीनों को न हो, हो ही नहीं सकता। इस पर भी उपद्रवियों को लाल किले तक पहुँचने देना राष्ट्र के साथ एक प्रकार का विश्वासघात ही था जिसके मूल में स्वार्थी गणनात्मकता है जो सत्तालाभ के लिये किसी भी स्तर की नीचता तक उतर सकती है।
प्रश्न यह है कि इसका हल क्या है? विकृत हो चुके लोकतन्त्र में मौलिक सुधार कैसे हों?
इसके लिये हमें शून्य से सोचना विचारना होगा। वर्तमान संविधान के स्थान पर नये विधान की आवश्यकता है क्योंकि उसे ले कर ऊपर से ले कर नीचे तक लोगों के मन में इतना जड़त्व भर गया है कि न तो उसके दोष दिखते हैं, न ही उसके कारण हो रही दुर्दशा। Government of India Act, 1935 की लगभग अनुकृति सङ्क्रमण काल के किये भले ठीक रही हो, अब अप्रासङ्गिक एवं घातक भी हो चली है। नया विधान बनाना सरल नहीं होगा और समय भी लगेगा किन्तु कोई भी आरम्भ पहले वैचारिक धरातल पर होता है। हम उस दिशा में सोचना तो आरम्भ करें, इससे पूर्व कि संविधान की आड़ ले कर सत्ता का खेल खेलते षड्यन्त्रकारी देश ही चट कर जायें! इस विषय पर एक आङ्ग्ल लेख पहले छप चुका है, देख सकते हैं।
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आज पौष पूर्णिमा को चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र पर होते हैं जिसे नये अभियानों हेतु पुराकाल से ही बहुत शुभ माना जाता रहा है। इसका योगतारा δ Cancri क्रान्तिवृत्त से लगभग सम्पाती है अर्थात सूर्य के वार्षिक पथ के सबसे निकट का कान्तिमान तारा है। यह दिवस शाकम्भरी देवी से जुड़ा है, जिस पर यहाँ एक लेख पहले प्रकाशित हो चुका है। दक्षिण में यह पूर्णिमा सुब्रह्मण्यम देव (कार्त्तिकेय, मुरुगन) से जुड़ी है और इसे दइपूसम के रूप में मनाया जाता है। दइ दशम् से है, पौष दसवाँ महीना होता है और पूसम पुष्य नक्षत्र से।
पर्व की शुभकामनायें। सब मङ्गल हो।
Why discontinued maghaa..?
We are again starting from Chaitra Poornima. Thanks.
इंटरनेट पर पक्षियों संबंधी जानकारी खोजने के क्रम में ‘मघा’ पर आगमन हुआ, सहसा विश्वास न हुआ कि इंटरनेट पर भी शुद्ध हिंदी के यूँ दर्शन होंगे, विचारों का प्रवाह बहुत ही सुरुचिपूर्ण , उत्तेजक और भावपूर्ण बन पड़ा है…ये कहने में तनिक भी सँकोच न होगा कि ‘मघा’ के प्रथम लेख ने ही रोमाँचित कर दिया है… इसके लिये संपूर्ण सदस्यों का हृदय से आभार और हो सके तो मेरे वर्तनी संबंधी त्रुटियों पर ध्यान न दीजिएगा. एक आग्रह है यदि कोई समसामयिक विषय पर लेख लिखने का अवसर प्रदान करें तो ये मेरे लिए निश्चित तौर पर गौरवपूर्ण क्षण होगा. आभार और धन्यवाद
धन्यवाद। आप अपने लेख infoATmaghaaDOTcom ईमेल पर प्रेषित कर सकते हैं। उससे पूर्व AT को @ एवं DOT को . से प्रतिस्थापित कर लें।
Well done team Magha and all the best for future work!
लेख पढ़ना आरंभ किया तो भाषा की शुद्धता पर मोहित हो गया और लेख में इस पर चर्चा भी की गई जो अच्छी भी लगी ।
शायद एक जगह वर्तनी की अशुद्धि है ।
बाकी मघा के लेख हमेशा की तरह ज्ञानवर्धक होते है और आज भी नए विधान की चर्चा हुई जो आवश्यक भी है ।
आज का तंत्र केवल अपने बाड़े में भेड़ों की संख्या पर ही कार्य करता है ।